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हम एक ही परिवार, एक ही रक्त और एक ही नस्ल हैं

तीन भारतीयों ने पाकिस्तान में की शांति तीर्थयात्रा

75 साल पहले हुए देश के बंटवारे के बाद बने दो देशों के बीच सीमा रेखा ही नहीं खिंची, तलवारें भी तन गयीं. एक स्थायी शत्रुता, अंतहीन तनाव और परस्पर अविश्वास की खाइयों ने दोनों समाजों को बराबर दूर किये रखा. लेकिन इस बीच सीमा के दोनों तरफ से शांति और प्रेम की रवायत कायम करने के प्रयास भी चलते रहे हैं. इन प्रयासों में गांधी से प्रेरणा पाने वाली जमातें सदैव सक्रिय और मुखर रही हैं. पढ़ें, गांधी से ही प्रेरणा और ताकत पाने वाले तीन भारतीय नागरिकों की पाकिस्तान यात्रा की यह हालिया दास्तान.

पाकिस्तान के बारे बहुत सुना था कि वहां सबसे ज्यादा धार्मिक कट्टरता है. वहां घर-घर में बंदूकें मिलती हैं, खाने को नहीं मिलता, वहा बहुत मंहगाई है आदि आदि. पाकिस्तान में 24 दिन रहकर हमने जाना कि पाकिस्तानी विपश्यना में भी रूचि रखते हैं और उसके लिए नेपाल तक जाते हैं. पाकिस्तान में भी योग और ध्यान के अनेक सेंटर हैं. वहां शाकाहार या जीवदया पर काम करने वाले भी मिले. हम भारत से आये हैं, हमारे मुंह से यह सुनकर वे भावविभोर हो जाते हैं. उनकी आँखों में हिंदुस्तान और हिन्दुस्तानियों के लिए जो प्यार झलकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है, शब्दों में कहना मुश्किल है. वहां मंहगाई की स्थिति लगभग भारत जैसी ही है। उनकी सड़कें बहुत सुंदर हैं और आदतें हमारे जैसी ही हैं। इतना सारा देखने के बाद महसूस होता है की सारी दुनिया एक ही चीज से बनी है. प्रेम ही वह सीमेंट है, जो इंसान से इंसान को जोड़ता है. जैसे नफरत की बुनियाद में अहंकार होता है, वैसे ही इंसानियत की बुनियाद में प्रेम होता है. जब हम एक दूसरे से मिलते हैं, एक दूसरे को समझते हैं, तो नफ़रत के भाव सूखने लगते हैं. प्यार से गले मिलते ही ऐसा लगने लगता है कि क्या भारत और क्या पाकिस्तान, हम तो एक ही परिवार हैं, एक ही रक्त हैं, एक ही नस्ल हैं.


हम तीन भारतीयों ने, जो शांति का संदेश फैलाने के लिए दुनिया के विभिन्न देशों की यात्रा करते रहते हैं, इस वर्ष 22 जुलाई को वाघा सीमा से पाकिस्तान में प्रवेश किया। अपनी इस यात्रा में हमने कराची, शिकारपुर और लाहौर शहरों का दौरा किया और हजारों पाकिस्तानी नागरिकों से मुलाकात की। पाकिस्तान के विभिन्न शहरों में 24 दिन बिताकर हमने 14 अगस्त को पाकिस्तान में स्थानीय लोगों के साथ उनका स्वतंत्रता दिवस मनाया और उसी दिन वाघा सीमा से भारत लौटकर, दिल्ली में अपना 76 वां स्वतंत्रता दिवस मनाया।

सतीश कुमार और ईपी मेनन ने 1962 में विश्व शांति के लिए दुनिया के कई देशों से गुजरते हुए पाकिस्तान की यात्रा की थी, निर्मला देशपांडे 2007 में पाकिस्तान गयी थीं. उसके 15 साल के अंतराल के बाद इस वर्ष हम तीन भारतीयों ने पाकिस्तान का दौरा किया. 24 दिनों की इस ‘जय जगत शांति तीर्थयात्रा’ के दौरान हम हजारों पाकिस्तानी नागरिकों से मिले. कराची शहर में हम पाकिस्तानी नागरिकों, पत्रकारों, सामाजिक संगठनों और भारत-पाकिस्तान शांति समूहों से मिले, स्कूलों और कॉलेजों का दौरा किया। हमने वहां संदेश दिया कि हम जय जगत का नारा लगाते हैं और सबकी जीत चाहते हैं. किसी की हार न हो, इस दुनिया में प्यार आए, समानता कायम हो, गरीबी और भेदभाव खत्म हो, यदि ऐसा हो, तो दुनिया खूबसूरत हो जायेगी. भारत-पाकिस्तान के आपसी संबंध सुधारने के लिए ऐसी यात्राएं महत्व की हो सकती हैं। यदि दोनों देशों के बीच लोगों से लोगों का संपर्क बढ़ता है, तो स्थायी शांति की दिशा में बढ़ा जा सकता है।


पाकिस्तान का वीजा मिलने में हमें 6 महीने लगे, 22 जुलाई को हमने वाघा बॉर्डर से पाकिस्तान में प्रवेश किया। 23 को ट्रेन से कराची शहर पहुंचे। कराची में गायचंद पिंजयनी के एक हिंदू परिवार ने हमारा स्वागत किया और अगले 7 दिनों के लिए हम उनके ही घर में ठहरे। ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालय और साधु वासवानी मिशन में हमारे भाषण हुए। सोशल मीडिया पर हमारी साथी रिहाना अल्लावाला ने अपने घर पर हमारे लिए भोजन की व्यवस्था की। कराची शहर में जय जगत का उद्घोष करते हुए हमने एक मार्च निकाला। इस मार्च में 50 से 60 पाकिस्तानी नागरिकों ने हिस्सा लिया। इसका समापन प्रेस क्लब, कराची में हुआ। पाकिस्तान के राष्ट्रीय समाचार चैनल ने हमारी इस शांति पहल का कवरेज किया। पाकिस्तान में शांति के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को हमारे इस कार्यक्रम से काफी प्रेरणा मिली। कराची रोटरी क्लब ने तीनों भारतीय शांति तीर्थयात्रियों के लिए एक स्वागत समारोह का आयोजन किया।


शिकारपुर, सिंध राज्य का एक शहर है, जहां डॉ अमीर अब्बास सुमरो ने अपने घर में हम तीनों तीर्थयात्रियों के रहने की व्यवस्था की। शहर के कई वरिष्ठ नागरिकों और युवाओं के साथ कार्यक्रम आयोजित कर हमने अपने विचार व्यक्त किए। लाहौर में हमारे ठहरने की व्यवस्था तहसीन अहमद ने मानवाधिकार आयोग, पाकिस्तान के गेस्टहाउस में की। मोहम्मद इम्तियाज ने लाहौर शहर में यूनाइटेड स्कूल के छात्रों से हमारे मिलने की व्यवस्था की. हमने उनके साथ मिलकर ‘वॉल ऑफ पीस’ का उद्घाटन किया।

लाहौर में इरशाद अहमद ने हमें आम का एक बड़ा पौधा दिया। हम तीनों यात्री इसे लेकर भारत-पाकिस्तान सीमा पर पहुंचे। पाकिस्तानी आव्रजन अधिकारियों ने हमें पौधा साथ ले जाने की अनुमति दी। हालांकि, भारतीय आव्रजन अधिकारियों ने आम के पौधे को अनुमति देने से इनकार कर दिया और उसे अपनी कस्टडी में ले लिया। हमारे सामान में एक बांसुरी देखकर भारतीय अधिकारियों ने हमसे इसे बजाने का अनुरोध किया। जालंधर भाई ने उस पर ‘वैष्णव जन तो..’ भजन की धुन बजाई। इसके बाद हम तीनों ने शांति गीत ‘जय जगत’ गाया। हमारा गीत सुनकर और विश्व शांति के हमारे प्रयास को समझते हुए, उन्होंने हमारे साथ आम के पौधे को ले जाने की अनुमति दे दी. उन्होंने उस पौधे का नाम ‘इंडो-पाक फ्रेंडशिप ट्री’ रखा।

हम तीनों अब भारत वापस लौट आये हैं और पाकिस्तान के अपने अनुभव साझा करने के लिए लोगों, संगठनों और मीडिया से मिल रहे हैं। आप हमारी कहानियों को अपने सोशल मीडिया हैंडल, समाचार मीडिया और टीवी मीडिया पर साझा करके तथा हमें भारत में ऑनलाइन और ऑफलाइन आमंत्रित करके भी इस यात्रा का हिस्सा बन सकते हैं।

-सर्वोदय जगत डेस्क

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