रॉबर्ट्सगंज तब एक जीवंत साहित्यिक और राजनीतिक नगर था। यहाँ से साप्ताहिक अखबार ‘गिरिद्वार’ छपा करता था। भव्य कवि-सम्मेलन हुआ करते थे। 1971-72 में मैं समाजवादी युवजन सभा की राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य था। उसी दौरान गुजरात के एक छात्रावास से शुरू होकर छात्र आंदोलन बिहार और पूरे देश में दावानल की तरह फैला। इसे व्यापक आयाम तब मिला, जब 1942 के नेता जयप्रकाश नारायण ने इसका नेतृत्व स्वीकार कर लिया। हम बनारस का रिसर्च छोड़कर रॉबर्ट्सगंज रेलवे फाटक पर अपने घर आ गये। यहां हमने छात्र संघर्ष समिति और जन संघर्ष समिति का गठन किया। मिर्जापुर के अरुण कुमारे हमारे साथी थे। रॉबर्ट्सगंज में अरविंद चतुर्वेदी, सुरेश तिवारी, श्यामानंद, जितेंद्र, हरिशंकर तिवारी, रामेश्वर शुक्ल, कपिल देव आदि अनेक साथी सक्रिय थे। हरिशंकर सिंह मास्टर साहब जन संघर्ष समिति के जिला संयोजक थे। उनके साथ तेज बहादुर सिंह, अवध नारायण राय, सूर्यबली सिन्हा, व्यास शुक्ल, राजबहादुर सिंह, सबल सिंह, चंद्रमोहन यादव, ओपी शुक्ल, महेंद्र प्रताप सिंह आदि ने आंदोलनकारियों को संबल दिया। कन्हैयालाल गुप्त, तीरथ राज, राम सिंगार पासवान, योगेश शुक्ल, निरंजन जालान, दुर्गा प्रसाद सर्राफ आदि हमारे मुद्दों और रचनात्मक संघर्ष को समर्थन दे रहे थे।
छ:माह में हमने रॉबर्ट्सगंज नगर, आस-पास के गांवों और विद्यालयों में संगठन तैयार किया तथा जेपी की संपूर्ण क्रांति में जो भूमिका निभायी, वह अतुलनीय है। हमने किसी भी हालत में हिंसा, बाजार बंदी और एक पैसे की भी चंदा उगाही नहीं की। नगर के सभी कवि और रचनाकार हमें नैतिक समर्थन दे रहे थे। एक घटना उल्लेखनीय है। रॉबर्ट्सगंज के रामलीला मैदान में वामपंथी श्रमिकों का बड़ा सम्मेलन था। उसी दिन हमने छात्र युवा संघर्ष समिति का जुलूस रखा था। तभी बाज़ार में एक अफवाह फैला दी गयी कि वामपंथी नगर में जुलूस निकालेंगे और जेपी के खिलाफ नारे लगायेंगे। जनसंघ के नेता रामकृष्ण द्विवेदी ने पोस्ट आफिस के पास मुझसे कहा कि हमने छतों पर खौलता पानी रखवा दिया है, जो वामपंथियों पर डाल देना है। मैं सावधान था। पोस्ट आफिस के पास लगभग पांच सौ छात्र और नगर में हजारों लोग किसी अनहोनी की प्रतीक्षा कर रहे थे। रिक्शे पर हमारा माइक बंधा था। लगभग 30 मीटर दूर वामपंथी श्रमिक रामलीला मैदान में खड़े थे। त्रिलोकी सिंह तपे तपाये दरोगा थे। तभी रामकृष्ण तिवारी ने माइक लेकर नारा लगाया-रूसी बेटों, भारत छोड़ो! मैंने माइक छीनकर कहा कि कम्युनिस्ट हो जाने से कोई रूसी नहीं हो जाता। मैंने माइक सुरेश को दिया तथा अकेले रामलीला मैदान में चला गया। वहां कॉमरेड लल्लनराय और कॉमरेड द्वारका सिंह आदि ने कहा कि नीरव जी, हम यहां ट्रेड यूनियन के लोग हैं। हम यहां पार्टी नहीं हैं। हम कोई आपत्तिजनक नारा नहीं लगा रहे हैं। जुलूस निकालना चाहते हैं। मैंने कहा कि जुलूस कैंसिल कर दें, सारी समस्या ही खत्म हो जायेगी। ऐसा ही हुआ। इस बीच दरोगा त्रिलोकी सिंह के चंगुल से बचने के प्रयास में एक लड़का गिर गया। साथी सुरेश तिवारी तब छात्रसंघ अध्यक्ष थे। उन्होंने एक पत्थर उठाया और ललकारा-अरे तिरलोकिया! तभी मैने उनका पत्थर छीन लिया और नारा लगाया-‘हाथ हमारा नहीं उठेगा, हमला चाहे जैसा हो।’ हमने देखा कि जो लड़का गिरा हुआ था, उसके सिर से खून गिर रहा था। एक पत्थर उसके हाथ के पास पड़ा था। उसने भी कहा-हाथ हमारा नहीं उठेगा…।
जिस रात आपातकाल की घोषणा हुई, हम रॉबर्ट्सगंज में थे। पुलिस से भूमिगत रह कर बचते रहे। लेकिन अंततः भारत रक्षा कानून ( 33/43 डीआईआर) में जेल भेज दिए गये। प्राथमिकी में लिखा था कि पिस्तौल की नोक पर छपका पावर हाउस में वेतन बंटवाया और देशद्रोह के लिए उकसाया। आठ माह बाद रिहा हुआ तो उसी दिन मेंटेनेन्स ऑफ़ इंडिया सेक्योरिटी एक्ट (मीसा) में बांध लिया गया। आरोप लगा कि हिंदुआरी पुल उड़ाने की साजिश रची। उस दिन रक्षाबंधन था। बहन को राखी नहीं बांधने दी गयी। मुझे मालूम नहीं, क्या हुआ? बनारस से मेरी फाइल मंगा ली गयी। छ:माह बाद एक दिन सूर्यास्त के बाद मिर्जापुर के संबंधित मजिस्ट्रेट मेहरोत्रा जेल में आये। बैरक तीन से मुझे बुलाया गया। उन्होंने जेलर को आदेश दिया कि इन्हें अभी छोड़िये। जेलर बोले, सर सूर्यास्त के बाद नहीं छोड़ सकते। तब मैंने कहा कि मजिस्ट्रेट साहब, यदि आपकी सहमति हो तो आज रात यहीं जेल में बिता लूं। रॉबर्ट्सगंज की आखिरी बस चली गयी होगी। इस वक्त बाहर निकल कर कहां रात काटूंगा?
हमलोगों की साहित्यिक संस्था ‘विचार-मंच’ ने जेपी आंदोलन में जोरदार भूमिका निभायी। आपातकाल लगने से पहले हमने संपूर्ण क्रांति पर केन्द्रित ‘बिहार-74’ पुस्तक भी छापी।
-नरेंद्र नीरव
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