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हमारा नेता चला गया है, लेकिन उसे मानने वाले अभी भी हैं

जनसंघ के राज्य सभा सदस्य के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने जवाहर लाल नेहरू का मई 1964 में निधन होने के बाद उन्हें जिन शब्दों में श्र्द्धांजलि दी, वह आज भी प्रासंगिक है। – सं.

आज एक सपना खत्म हो गया है, एक गीत खामोश हो गया है, एक लौ हमेशा के लिए बुझ गई है। यह एक ऐसा सपना था, जिसमें भुखमरी का भय नहीं था. यह एक ऐसा गीत था, जिसमें गीता की गूंज थी तो गुलाब की महक भी थी। यह चिराग की ऐसी लौ थी, जो पूरी रात जलती रही, हर अंधेरे का इसने सामना किया, इसने हमें रास्ता दिखाया और एक सुबह निर्वाण की प्राप्ति कर ली।


मृत्यु निश्चित है

मृत्यु निश्चित है, शरीर नश्वर है। वह सुनहरा शरीर जिसे कल हमने चिता के हवाले किया उसे तो खत्म होना ही था, लेकिन क्या मौत को भी इतना धीरे से आना था, जब दोस्त सो रहे थे, गार्ड भी झपकी ले रहे थे, हमसे हमारे जीवन के अमूल्य तोहफे को लूट लिया गया। आज भारत माता दुखी हैं, उन्होंने अपने सबसे कीमती सपूत को खो दिया। मानवता आज दुखी है, उसने अपना सेवक खो दिया। शांति बेचैन है, उसने अपना संरक्षक खो दिया। आम आदमी ने अपनी आंखों की रोशनी खो दी है, पर्दा नीचे गिर गया है। मुख्य किरदार ने दुनिया के रंगमंच पर अपना अंतिम दृश्य पूरा किया और सर झुकाकर आखिरी विदाई ले ली है।


वे क्रांति के अग्रदूत थे

रामायण में महर्षि वाल्मीकि ने भगवान राम के बारे में कहा था कि वह असंभव को साथ लेकर आए थे। पंडित जी के जीवन में हमने उस महान कवि की झलक देखी है। वह शांति के साधक थे तो साथ ही क्रांति के अग्रदूत भी थे। वह अहिंसा के भी साधक थे, लेकिन हथियारों की वकालत की और देश की आजादी और प्रतिष्ठा की रक्षा की। वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थक थे, साथ ही आर्थिक समानता के पक्षधर थे। वे किसी से भी समझौता करने से नहीं डरते थे, लेकिन उन्होंने किसी के भय से समझौता नहीं किया। पाकिस्तान और चीन को लेकर उनकी नीति जबरदस्त मिश्रण का उदाहरण थी। यह एक तरफ सहज थी तो दूसरी तरफ दृढ़ भी थी। यह दुर्भाग्य है कि उनकी सहजता को कमजोरी समझा गया, लेकिन कुछ लोगों को पता था कि वे कितने दृढ़ थे।


कमजोर नहीं थे नेहरू
मुझे याद है कि एक दिन मैंने उन्हें काफी नाराज होते हुए देखा था, जबकि उनके दोस्त चीन ने सीमा पर तनाव को बढ़ा दिया था । उस वक्त चीन भारत को पाकिस्तान के साथ कश्मीर के मुद्दे पर समझौता करने के लिए मजबूर कर रहा था। लेकिन जब उन्हें बताया गया कि उन्हें दो तरफ से लड़ाई लड़नी पड़ेगी तो वे समझौते के बिल्कुल भी पक्ष में नहीं थे। नेहरू जिस आजादी के समर्थक थे, वह आज खतरे में है। हमें उसे बचाना होगा। जिस राष्ट्रीय एकता और सम्मान के वे पक्षधर थे, वह आज खतरे में है। हमें इसे किसी भी कीमत पर बचाना होगा। जिस भारतीय लोकतंत्र को उन्होंने स्थापित किया, उसका भी भविष्य खतरे में है।


हमें अपनी एकजुटता, अनुशासन और आत्मविश्वास से एक बार फिर से लोकतंत्र को सफल बनाना होगा।


सूरज ढल चुका है

हमारा नेता चला गया है, लेकिन उसे मानने वाले अभी भी हैं। सूरज ढल चुका है, लेकिन अब हमें सितारों की रोशनी से ही अपना रास्ता तलाशना होगा। यह परीक्षा का समय है, अगर हम सब खुद को उनके विचारों पर आगे लेकर चले तो समृद्ध भारत के सपने को सच कर सकते हैं, विश्व में शांति ला सकते हैं, यह सच में पंडित नेहरू को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। संसद के लिए यह अपूर्णनीय क्षति है, ऐसा निवासी दोबारा तीन मूर्ति मार्ग पर नहीं आएगा। जबरदस्त व्यक्तित्व, विपक्ष को भी साथ लेकर चलने की क्षमता, उनके व्यक्तित्व को बार-बार परिभाषित करता है, ऐसी महानता शायद हम भविष्य में फिर कभी नहीं देख पाएंगे। विचारों में मतभेद के बाद भी उनके विचारों के लिए मेरे अंदर सम्मान है, उनकी प्रतिष्ठा के लिए प्रेम है, देश के प्रति उनके प्रेम और अदम्य साहस का मैं सम्मान करता हूं। इन्ही शब्दों के साथ मैं उस महान आत्मा को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

– अटल बिहारी वाजपेयी

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