बागी आत्मसमर्पण की स्वर्ण जयंती समारोह के समापन सत्र में तीन दिन हुई चर्चाओं के आधार पर यह तय हुआ कि परिवार, समाज, गांव, शहर और देश में शांति व न्याय की स्थापना के लिए देश के हर घर में गांधी और हर घर में संविधान पहुंचाने के लिए व्यापक और देशव्यापी अभियान चलाया जायेगा। यह आह्वान करते हुए पीवी राजगोपाल ने कहा कि हर कालखंड में समाज परिवर्तन में युवाओं की निर्णायक भूमिका रही है. आज एक बार फिर इस बात की अपरिहार्य जरूरत आ पड़ी है कि देश के नौजवान राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के सपनों का भारत बनाने के लिए एकता, अखण्डता, भाई-चारे और साम्प्रदायिक सद्भावना पर काम करने आगे बढ़ें। समापन सत्र से ठीक पहले के सत्र में देश के विभिन्न प्रान्तों से जौरा में जुटे प्रतिनिधियों ने भी भविष्य के अपने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। उल्लेखनीय है कि 14 अप्रैल 1972 को महात्मा गाँधी सेवा आश्रम, जौरा में हुए चम्बल के लगभग साढ़े छह सौ बागियों के हृदय-परिवर्तन और आत्मसमर्पण की अनूठी मिसाल के पचास वर्ष पूरा होने पर जौरा आश्रम में आयोजित इस स्वर्ण जयंती समारोह में देश भर से लोग पहुंचे थे.
इस अवसर पर उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष रामधीरज ने समारोह में सामाजिक महत्व के 10 प्रस्ताव पेश किये, जिन्हें सर्वसम्मति से स्वीकृत और पारित किया गया। इनमें प्राकृतिक संसाधनों जल, जंगल और जमीन पर स्थानीय समुदाय का अधिकार स्वीकार किये जाने, अंतहीन दोहन के स्थान पर व्यापक जनहित में इनका सदुपयोग किये जाने, स्वावलम्बन के लिए सामूहिक उपक्रमों यथा कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिए जाने, विवादों का स्थानीय स्तर पर आपसी प्रेम व भाईचारे की भावना से समाधान निकालने, गांव की कमाई गांव में ही रुक सके, इसके लिए ग्राम-कोश की स्थापना किये जाने, हर घर गांधी; हर घर संविधान के आह्वान को जन-जन तक पहुँचाने, नशा मुक्त भारत का अभियान शुरू करने, प्रकृति व पर्यावरण की हर हाल में सुरक्षा करने तथा मन व समाज की शांति के लिए सर्वधर्म प्रार्थना की शरण में जाने के प्रस्ताव शामिल हैं।
इस सत्र में देश के प्रधानमंत्री रहे स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी के राजनैतिक सलाहकार और प्रख्यात स्तम्भकार सुधीन्द्र कुलकर्णी ने आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में आगामी 25 वर्षो के लिए जनता की भागीदारी के साथ गांधी को केन्द्र में रखकर एक महाअभियान चलाए जाने की जरूरत पर बल दिया। इस अभियान के तहत गांधीजनों को समाज की सभी सकारात्मक शक्तियों के साथ समाजवादियों, अम्बेडकरवादियों, मार्क्सवादियों, संघियों और सभी राजनीतिक दलों से संवाद का सिलसिला प्रारंभ करना चाहिए, ताकि देश की सम्यक उन्नति में सर्वसम्मति शामिल हो। सुधीन्द्र कुलकर्णी ने लेखक और पत्रकार जगदीश शुक्ला की पुस्तक ‘गांधीवाद के मंत्र से बदली चम्बल की तकदीर’ का विमोचन भी किया।
इस मौके पर जौरा के अनुविभागीय अधिकारी विनोद सिंह ने कहा कि सभी नौजवान यह संकल्प लें कि गांधी और इस समारोह की चर्चाओं को सभी अपने-अपने गांव, शहर और परिवार में ले जायेंगे। पुलिस अनुविभागीय अधिकारी मानवेन्द्र सिंह ने कहा कि विकास की अंधाधुंध दौड़ में आज दुनिया जिस मुकाम पर पहुंची है, वहां से देखने पर महसूस होता है कि गांधी और गांधी विचार के अलावा मानवता की कोई दूसरी जीवनरेखा नहीं हो सकती। मध्य प्रदेश एकता परिषद के संयोजक डोंगर शर्मा ने जन-समस्याओं के समाधान के लिए एकजुट होकर अहिंसक आंदोलन की अपील की। पूर्व विधायक महेश मिश्रा ने देश के युवाओं को देश की ताकत बताया और देश के हालात बदलने का गुरुतर दायित्व उनके कंधों पर डाला। उन्होंने कहा कि बीते आठ वर्षों में देश के गरीब परिवारों की संख्या 32 करोड़ से बढ़कर 81 करोड़ हो गयी है, यह अचम्भित करने वाला सत्य है. उन्होंने इस तरह के प्रकल्प शुरू किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे गरीबी का यह भयावह दृश्य समाप्त किया जा सके। आयोजन समिति की ओर से कैलाश मित्तल ने सभी अभ्यागतों को धन्यवाद ज्ञापित किया। इन तीन दिनों में इस मंच से बोलने वालों में जल पुरुष राजेन्द्र सिंह, प्रोफेसर आनन्द कुमार और डॉ सुधीन्द्र कुलकर्णी के नाम प्रमुख हैं. केंद्र सरकार के कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर समारोह के मुख्य वक्ता थे.
चम्बल घाटी का जौरा आश्रम, हिंसा मुक्ति, प्रतिकार मुक्ति और शोषण मुक्ति के अभियान की जननी रहा है। 1970 के दशक में बागी आत्मसमर्पण, इस प्रतिकार मुक्ति का पहला कदम था, जो आदिवासियों को जागरूक कर उनके भूमि अधिकार की लड़ाई शोषण मुक्ति पर केन्द्रित था। चम्बल के बागी आत्मसमर्पण ने दुनिया को संदेश दिया कि गांधी विचार के बल पर हदय-परिवर्तन से समाज को हिंसामुक्त किया जा सकता है। उन स्मृतियों के इतिहास से दुनिया को शांति का संदेश जाये, हिंसा के सामने प्रतिहिंसा के सहारे जूझ रही आज की दुनिया गांधी के विचारों में अपने अस्तित्व की तलाश करे, इसी उद्देश्य से बागी हृदय परिवर्तन और आत्मसमर्पण की स्वर्ण जयंती का यह आयोजन उसी जौरा आश्रम में किया गया, जहाँ अपने हालत से असंतुष्ट, अपने हकों से वंचित और बरजोरों से पीड़ित बागियों की बंदूकें गरजा करती थीं। गैर बराबरी, शोषण, अत्याचार और अंतहीन गरीबी का एक दुश्चक्र है, जिसमें पिसकर मनुष्यता कराह रही है. यह तब भी हो रहा था, जब दुनिया ने गाँधी का आविभाव देखा और यह अब भी हो रहा है, जब दुनिया गाँधी की जरूरत महसूस कर रही है. वहीं दूसरी तरफ गरीबों की हकतल्फी करके बनी मुट्ठी भर अमीरों की दुनिया में आज गांधीवाद और अणुबम के बीच टकराव हो रहा है। अणुबम के समर्थक और अस्त्र-शस्त्र निर्माता व विक्रेता कम्पनियां गांधीवाद को समाप्त करना चाहती हैं, जिससे समाज, देश व दुनिया में हिंसा बढ़ती रहे और उनका कारोबार फैलता जाए। समाज में हिंसा, नफरत, अत्याचार व शोषण करने वालों की संख्या में जहाँ एक तरफ निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही है, वहीं दूसरी तरफ अहिंसा, प्रेम, करुणा व भाईचारा बढ़ाने वालों की कमी महसूस हो रही है।
अंदरखाने लगभग अराजक हो चुके ऐसे वैश्विक परिवेश में किसी भी समाज को सत्य, प्रेम, करुणा और अहिंसा के मजबूत आधारों पर खड़ी उसकी गौरवशाली विरासत रास्ता दिखाती है. अपने इतिहास के इन पन्नों से गुजरना, अपने बुजुर्गों की रवायतों को याद करना और लगभग आधी सदी के बाद उन चेहरों को एक बार फिर से देखना, जो तब नौजवान थे और अपने शोषण की पीड़ा से व्यथित अपने मन में आक्रोश भरे, कंधों पर बंदूकें लिए बीहड़ वनों में भटकते थे, लेकिन अब बूढ़े हो चले हैं, बहुत पुरसुकून लगता है. ऐसी कोई दूसरी नजीर दुनिया के किसी दूसरे देश में नहीं मिलती कि व्यवस्था से आजिज़ आकर हथियार उठाये नौजवानों को किसी व्यक्ति, किसी विचार या किसी विरासत की प्रेरणा ने इस तरह बदल डाला हो कि उन्होंने अपने हथियार छोडकर अपने अपराध की सजा भुगतना क़ुबूल कर लिया हो. इस दुनिया के शासकीय रस्मोरिवाज ऐसे हैं कि वे बंदूक के सामने बंदूक, हिंसा के सामने प्रतिहिंसा और थप्पड़ के बदले थप्पड़ वाले न्यायविधान की पैरोकारी करते हैं. दुनिया आज भी वैश्विक आतंकवाद से ऐसे ही लड़ रही है. हमारा देश भी आतंकवाद और नक्सलवाद की समस्या से ऐसे ही लड़ रहा है.
खुद को कष्ट सहन करने की अंतिम सीमा तक कष्ट देकर सामने खड़े प्रतिद्वंद्वी के हृदय में करुणा उत्पन्न कर देने की अपनी निष्ठा पर गांधी जी ने जो सफल और दुनिया को चकित कर देने वाले प्रयोग किये, वह सुगंध चम्बल की वादियों में भी टकराई. गांधी को तो हमने जीने नहीं दिया पर मरते-मरते भी वे कह गये थे कि मैं ऐसे नहीं मरूँगा, अपनी कब्र से भी बोलता रहूँगा. और दुनिया ने देखा कि गांधी अपनी कब्र से बोले, क्या खूब बोले! जाते ही संत विनोबा के कंठ में समाये और जो दुनिया के इतिहास में किसी कालखंड में कभी कहीं नहीं हुआ, भूदान की वह गंगा बहा दी. हजारों, लाखों वंचित, पीड़ित, दलित दरिद्र्नारायण उस गंगा में नहाकर तृप्त हुए. विनोबा की इसी तपःपूत वाणी पर भरोसा आ गया था बागियों का. लोकनायक के कंठ से भी गाँधी कम नहीं बोले. इसीलिए जेपी भी निमित्त हुए. यह दो पल ठहरकर विचार करने की जगह है. अपनों से लेकर परायों तक, गाँवों से लेकर राजधानियों तक जिन बागियों और उनके गिरोहों के पास हरेक पर अविश्वास करने और उन पर टूट पड़ने, उन्हें लूट लेने की जायज़ वजहें थीं, अपने समाज और देश की मुख्यधारा से छूटे हुए उन सशस्त्र और लामबंद बागियों को विश्वास हुआ दो बूढ़ों पर और क्रोध से तिलमिलाते हुए वे बागी चेहरे इस अजस्र प्रेम की धारा में पिघलकर समा गये. यह कब्र में सोये गाँधी का चमत्कार था. यह कब्र से बोलते गाँधी की विरासत है. यह हमारी विरासत है. इस देश की साझी विरासत है.
-प्रेम प्रकाश
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