मातृ-सूक्त
1. और मरियम ने कहा : मेरा प्राण – अंत:करण – प्रभु को महान मानता है।
2. और मेरी आत्मा मेरे उद्धारकर्ता ईश्वर से आनंदित हुए हैं,
3. क्योंकि उसने अपनी दासी की दीन अवस्था पर दयादृष्टि की; इसलिए देखो, आगामी युग की सब पीढ़ियां मुझे धन्य-धन्य कहेंगी,
4. क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिए बड़े-बड़े काम किये हैं और उसका नाम पवित्र है,
5. और जो उससे डरते हैं, उन पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी उसकी दया बनी रहती है।
6. उसने अपना भुज-बल दिखाया और जो अपने-आपको बड़ा समझते थे, उन्हें तितर-बितर किया है।
7. उसने बलवानों को सिंहासनों से गिराया है और दीन-दरिद्रों को ऊंचा किया है।
8. उसने भूखों को अच्छी वस्तुओं से तृप्त किया है और धनवानों को छूछे हाथ निकाल दिया है। (लूका 1.46-53)
गुरु-दीक्षा
1. उन दिनों बपतिस्मा देने वाला यूहन्ना यहूदिया के जंगल में आकर यह प्रचार करने लगा कि
2. तुम लोग पश्चात्ताप करो, क्योंकि ईश्वर का राज्य निकट आ गया है।
3. यह वही है, जिसकी चर्चा ईश-दूत यशायाह के द्वारा की गयी कि जंगल में किसी की पुकार सुनाई पड़ रही है कि प्रभु का मार्ग तैयार रखो, उसका रास्ता सीधा करो।
4. यह यूहन्ना ऊंट के रोम का वस्त्र पहने था, उसकी कमर में चमड़े का कमरबंद था और उसका भोजन लोकस्ट (एक शामदेशीय फल) और वनमधु था।
5. तब यरूशलम के, सारे यहूदिया के और यरदन के आसपास के सारे देशों के लोग उसके पास आ पहुंचे
6. और अपने-अपने पापों को स्वीकार कर उन्होंने यरदन नदी में उससे बपतिस्मा लिया। (मत्ती 3.1-6)
7. तब लोगों ने उससे पूछा : तो हम क्या करें?
8. उसने उन्हें उत्तर दिया कि जिसके पास दो कुरते हैं, वह उनमें से एक उसे दे दे, जिसके पास एक भी नहीं है और जिसके पास भोजन हो, वह भी ऐसा ही करे।
9. फिर महसूल वसूल करने वाले भी वपतिस्मा लेने आये और उन्होंने उससे पूछा कि गुरुजी, हम क्या करें?
10. उसने उनसे कहा : जो तुम्हारे लिए ठहराया गया है, उससे अधिक न लेना
11. और सिपाहियों ने भी उससे पूछा : हम क्या करें? उसने उनसे कहा : किसी पर अत्याचार न करना, न किसी पर झूठा दोष लगाना और अपने वेतन पर संतुष्ट रहना। (लूका 3.10-14)
ख्रिस्त का दीक्षा-संस्कार
1. तब यीशु गलील से यरदन के किनारे पर यूहन्ना के पास उससे बपतिस्मा लेने आया,
2. पर यूहन्ना यह कहकर उसे रोकने लगा कि मुझे तुझसे बपतिस्मा लेना चाहिए और तू मेरे पास बपतिस्मा लेने आया है?
3. यीशु ने उसे उत्तर दिया : अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से धार्मिकता को पूरा करना उचित है। तब उसने उसकी बात मान ली
4. और यीशु बपतिस्मा लेकर तुरंत पानी में से ऊपर आया और देखो, उसके लिए आकाश खुल गया और उसने परमेश्वर की आत्मा को कबूतर की भांति उतरते और अपने ऊपर आते देखा और देखो, यह आकाशवाणी हुई कि यह मेरा परम प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं। (मत्ती 3. 13-17)
तपश्चर्या
1. फिर यीशु पवित्रात्मा से भरा हुआ यरदन से लौटा और आत्मा द्वारा प्रेरित होकर वन में चला गया।
2. चालीस दिन तक शैतान उसकी परीक्षा करता रहा और उन दिनों में उसने कुछ नहीं खाया और जब वे दिन पूरे हो गये, तो उसे भूख लगी। (लूका 4.1, 2)
3. तब परीक्षा करने वाले ने उसके पास आकर कहा : यदि तू परमात्मा का पुत्र है, तो कह दें िक ये पत्थर रोटियां बन जायं,
4. पर उसने उत्तर दिया : लिखा है कि मनुष्य केवल रोटी से ही नहीं, परन्तु परमात्मा के मुख से िनकलने वाले प्रत्येक शब्द से जीवित रहेगा।
5. तब शतान उसे पवित्र नगर में ले गया और मंदिर के कंगूरे पर खड़ा किया
6. और उससे कहा : यदि तू परमात्मा का पुत्र है, तो अपने-आपको नीचे गिरा दे; क्योंकि लिखा है कि वह तेरे विषय में अपने देवदूतों को आज्ञा देगा और वे तुझे हाथों-हाथ उठा लेंगे; कहीं ऐसा न हो कि तेरे पांवों में पत्थर से ठेस लगे।
7. यीशु ने उससे कहा : यह भी लिखा है कि तू अपने प्रभु ईश्वर की परीक्षा न कर।
8. फिर शैतान उसे एक बहुत बड़े पहाड़ पर ले गया और सारे जगत के राज्य व वैभव दिखाकर
9. उसने उससे कहा कि यदि तू (मेरे चरणों में) गिरकर मुझे प्रणाम करेगा तो यह सब कुछ तुझे दे दूंगा।
10. तब यीशु ने उससे कहा : दूर हो जा, शैतान, क्योंकि लिखा है कि तू अपने प्रभु परमेश्वर को प्रणाम कर और केवल उसी की उपासना कर।
11. तब शैतान उसके पास से चला गया और देखो, स्वर्ग-दूत आकर उसकी सेवा करने लगे।
(मत्ती 4.3-11)
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