Writers

जलवायु परिवर्तन, गांधी और वैश्विक परिदृश्य

लालच, उपभोग और शोषण पर अंकुश होना चाहिए। विघटनरहित और टिकाऊ विकास का केंद्र बिंदु समाज की मौलिक जरूरतों को पूरा करना होना चाहिए। ऐसा सतत विकास के लिए गांधी जी के विचारों को पुन: समझना और लागू करना ही होगा।

गांधीजी ने कहा था कि धरती सारे मनुष्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है, लेकिन किसी एक का भी लालच पूरा करने में वह असमर्थ है। जलवायु परिवर्तन या जलवायु विघटन के मूल में गांधी जी का यही विचार निहित है।

जलवायु परिवर्तन का आशय लम्बे समयकाल में जलवायु में होने वाले महत्वपूर्ण परिवर्तनों से है, जो मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन यानि कोयला, प्राकृतिक गैस और तेल को जलाने की वजह से पृथ्वी के वातावरण में तेजी से बढ़ती ग्रीनहाउस गैसों के कारण होता है। ये हानिकारक गैसें पृथ्वी और समुद्र को गर्म कर रही हैं, जिसके कारण समुद्र का स्तर बढ़ रहा है. तूफानों के स्वभाव में बेहिसाब बदलाव, समुद्र की धाराओं में बदलाव, वर्षा चक्र में परिवर्तन, अत्यधिक बर्फ (ग्लेशियर) का पिघलना, अचानक गर्मी का बढ़ना, जंगलों में आग और विश्व के कई भागों में सूखे का प्रकोप इसी कारण दिखाई पड़ता है।

जलवायु जस्टिस की बात पिछ्ले दिनों ग्लासगो सम्मलेन में उठी थी, जिसमें विकसित और अमीर अद्यौगिक दशों से कार्बन उत्सर्जन 2030 तक घटाने और नियन्त्रित करने की अपील की गई थी। इसके अलवा 2030 तक धरती के तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री तक लाने की मांग प्रमुख है। उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में ग्लोबल वार्मिंग की दर 2.4 डिग्री सेल्शियस है। ऐसे में जैव विविधता को बचाने की मुहिम जरूरी है। प्रकृति के अंधाधुंध दोहन ने कार्बन उत्सर्जन और जैव विविधता के अनेक खतरे बढ़ा दिये हैं, जिनसे गांधी ने 100 साल पहले ही आगाह किया था। इसी सम्मलेन में जलवायु विस्थापन और मानव स्वास्थ्य के खतरे का भी मुद्दा छाया रहा, हालांकि इस पर कोई ठोस सहमति नहीं बन सकी। विश्व की एक तिहाई आबादी आज समुद्र का जलस्तर और धरती का तापमान बढ़ने से आवास, विस्थापन और जन स्वास्थ्य के मुद्दे पर प्रभावित है। इससे प्रभावित देशों में जन-संघर्ष और जन-असन्तोष बढ़ने के आसार हैं तथा प्रभावित क्षेत्रों में गृहयुद्ध जैसी स्थिति बन रही है। इनमें से ज्यादातर देश ऐसे हैं, जिनका स्वयं का कार्बन उत्सर्जन विकसित देशों से कम है और इनके पास जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के क्षमता का अभाव भी है।

एक मुद्दा ये भी है जलवायु परिवर्तन और उसके दुष्प्रभाव एक व्यापार का रूप ले रहे हैं। करीब एक दशक पहले एक बड़े राष्ट्र ने मुंबई को जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचाने के लिए 50 बिलियन डॉलर की टेक्नोलॉजी भारत को बेचने की कोशिश की थी। विकसित देश अभी तक जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अपने वादे से चूकते नज़र आये हैं। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को मदद के मामले में उनकी चुप्पी आश्चर्यजनक है। इस दिशा में यह बात अत्यंत निराशाजनक है।

गांधी जी ने अपने लेख ‘स्वास्थ्य की कुंजी’ में साफ हवा की जरूरत पर रोशनी डाली है, जिसमें कहा गया है कि मानव शरीर को हवा, पानी और भोजन तीन प्रकार के प्राकृतिक पोषण की आवश्यकता होती है, लेकिन साफ हवा अति आवश्यक है। गांधी सौ साल पहले ही कहते हैं कि प्रकृति ने हमारी जरूरत के हिसाब से पर्याप्त हवा मुफ्त में दी है, लेकिन दुख का विषय है कि आधुनिक सभ्यता ने इसका भी भाव बाज़ार के हिसाब से तय कर दिया है। 100 साल पहले 1 जनवरी 1918 को अहमदाबाद में एक बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने भारत की आजादी को तीन मुख्य तत्वों वायु, जल और अनाज की आजादी के रूप में परिभाषित किया था। उन्होंने 1918 में जो कहा, आज उसे पर्यावरणविद और कई सरकारें जीवन के अधिकार कानून के रूप में शुद्ध हवा, साफ पानी और पर्याप्त भोजन के अधिकार और मानवाधिकार के रूप में अपने एजेंडा मे शामिल कर चुके हैं। ग्लासगो सम्मेलन में अमरीकी दूत जान केरी ने कहा कि हम जलवायु परिवर्तन की अराजकता, शुद्ध हवा और पानी के साथ एक स्वस्थ ग्रह हासिल करने के लक्ष्य के ज्यादा करीब हैं।

100 साल पहले पर्यावरण पर गांधी की समझ, चिंतन और भारत की स्वतंत्रता व लोकतंत्र के प्रति उनके विचार आज इक्कीसवीं सदी में उन्हें दूरद्रष्टा साबित करते हैं। विश्व के अनेक देशों में ‘ग्रीन पार्टी’ गांधीजी के विचारों को ही आगे बढ़ा रही है। प्रोफेसर हर्बर्ट गिरार्डेट द्वारा संपादित पुस्तक ‘सर्वाइविंग द सेंचुरी: फेसिंग क्लाउड केओस’ में चार मानक सिद्धांतों अहिंसा, स्थायित्व, सम्मान और न्याय को इस सदी और पृथ्वी को बचाने के लिए जरूरी बताया गया है। दुनिया गांधीजी और उनके उन सिद्धांतों को मान और अपना रही है, जो सदैव उनके जीवन और कार्यों के केंद्र में रहे।
1992 के रियो डी जिनेरियो से 2021के ग्लासगो जलवायु परिवर्तन सम्मेलन तक इस मुद्दे पर कोई व्यापक आम राय नही बन पाई है। वजह ये कि विकसित देश अपनी इकोनॉमी और लाइफ स्टाइल में किसी भी प्रकार के बदलाव के लिए तैयार नहीं हैं। कुछ साल पहले अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रम्प को जलवायु परिवर्तन के एजेंडे से इतनी दिक्कत थी कि उन्होंने पेरिस समझौते से ही अमेरिका को अलग कर दिया था। गांधी यहां फिर जिंदा हो उठते हैं. सतत विकास के लिए गांधी जी के विचारों को पुन: समझना और लागू करना अनिवार्य है।

ग्लासगो जलवायु परिवर्तन सम्मलेन में जी-20 देशों का रवैया बहुत निराशजनक रहा। इसमें भारत भी शामिल है। उल्लेखनीय है कि यह समूह विश्व के 80 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। इन देशों ने महत्वपूर्ण मुद्दे 2050 और 2070 तक पूरा करने का वायदा किया है। गांधी ने जिसे लालच कहा था, वह आज पश्चिमी देशों और वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के देशों का विस्तृत ऐजेंडा है, जिसमें भारत भी शामिल है।

-सौरभ सिंह

Sarvodaya Jagat

Share
Published by
Sarvodaya Jagat

Recent Posts

क्या इस साजिश में महादेव विद्रोही भी शामिल हैं?

इस सवाल का जवाब तलाशने के पहले राजघाट परिसर, वाराणसी के जमीन कब्जे के संदर्भ…

5 days ago

सर्वोदय जगत – 01-15 मई 2023

  सर्वोदय जगत पत्रिका डाक से नियमित प्राप्त करने के लिए आपका वित्तीय सहयोग चाहिए।…

8 months ago

बनारस में अब सर्व सेवा संघ के मुख्य भवनों को ध्वस्त करने का खतरा

पिछले कुछ महीनों में बहुत तेजी से घटे घटनाक्रम के दौरान जहां सर्व सेवा संघ…

1 year ago

विकास के लिए शराबबंदी जरूरी शर्त

जनमन आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था।…

1 year ago

डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत थे

साहिबगंज में मनायी गयी 132 वीं जयंती जिला लोक समिति एवं जिला सर्वोदय मंडल कार्यालय…

1 year ago

सर्व सेवा संघ मुख्यालय में मनाई गई ज्योति बा फुले जयंती

कस्तूरबा को भी किया गया नमन सर्वोदय समाज के संयोजक प्रो सोमनाथ रोडे ने कहा…

1 year ago

This website uses cookies.