ये ‘गुजरात माॅडल’ है!

आज ही खबर छपी है कि जमशेदपुर, झारखंड की एक अदालत ने जेल के अंदर हुई एक हत्या के 15 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई है. कुछ को दस साल कैद की सजा मिली है. निजी तौर पर मैं मृत्युदंड का विरोधी हूं, मगर यह भी मानता हूं कि जब तक यह कानून है, न्यायाधीश अपने विवेक के अनुसार किसी को मृत्युदंड देते हैं, तो अपने कर्तव्य का निर्वाह ही करते हैं. संबद्ध जज ने उस हत्या को ‘रेयरेस्ट आफ रेयर’ मामला मानकर ही दोषियों को मौत की सजा दी. सुप्रीम कोर्ट ने भी ‘रेयरेस्ट आफ रेयर’ मामले में ही मृत्युदंड को जरूरी माना है.

अब इसकी तुलना 2002 में हुए गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो और उनके परिजनों के साथ हुई दरिंदगी से करें. 21 वर्ष की उम्र में गर्भवती बिलकिस के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया; साथ ही उसके परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी गयी. जमशेदपुर मामले में वह हत्या दो अपराधी गिरोहों की रंजिश में हुई थी. यानी जिसकी हत्या हुई, वह खुद भी अपराधी ही था.यह खबर ‘दैनिक जागरण’ में छपी है. मैं यह अखबार नहीं लेता. किसी ने आज गलती से दे दिया. सुखद आश्चर्य हुआ कि अखबार ने 15 हत्यारों को मिली फांसी की सजा के समर्थन में संपादकीय भी लिखा है. पता नहीं गुजरात के उन हत्यारों, दुष्कर्मियों की रिहाई का इस अखबार ने विरोध किया था या समर्थन.


उधर गुजरात में बिलकिस या उसके परिवार से हत्यारों, दुष्कर्मियों की कोई दुश्मनी नहीं थी. बस उनको विधर्मी होने की ‘सजा’ दी गयी. मगर अदालत की नजर में वह ‘रेयरेस्ट आफ रेयर’ मामला नहीं था. फिर भी अपराध को इतना गंभीर माना गया कि सबों को उम्रकैद की सजा मिली. लेकिन सजा माफ करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि इस पर राज्य सरकार ही विचार कर सकती है. और लगता है कि राज्य सरकार पहले से ‘विचार’ किये बैठी थी. उसने मामला, इसके लिए गठित एक कमेटी के पास भेज दिया. कमेटी ने ‘विचार’ किया और माफी दिये जाने की अनुशंसा कर दी. ‘स्वाभाविक’ ही कमेटी में भाजपा के या भाजपा समर्थक लोग अधिक होंगे. ऐसा किसी ने सोशल मीडिया पर लिखा भी है. कमेटी ने पीड़ित पक्ष, यानी बिलकिस और उसके परिजनों से कुछ पूछना भी जरूरी नहीं समझा. शायद कमेटी के सदस्यों को पता चल गया हो कि कई वर्ष जेल में रहने के दौरान इन दुर्दांत अपराधियों का हृदय परिवर्तन हो चुका है, या वे अपने किये पर शर्मिंदा हैं या पश्चाताप की अग्नि में जल रहे हैं और अब सभ्य समाज में सभ्य नागरिक की तरह रहने लायक हो गये हैं. लेकिन जेल से बाहर आने पर उनका जिस उत्साह से, फूल मालाओं से स्वागत हुआ, उससे तो यही आभास होता है कि स्वागत करने वालों की नजर में उनको किसी महान लक्ष्य के लिए कुछ महान कृत्य करने के कारण उम्रकैद हुई थी; और अब वे अपने उसी ‘सत्कर्म’ कारण समाज में सम्मानित रहेंगे.

कैसा है वह समाज, जो ऐसे हत्यारों और दुष्कर्मियों का सम्मान करता है! उस समाज में क्या कुछ लोग भी ऐसे नहीं हैं, जो आगे आकर कहते कि इनको रिहा करना, फिर उनका स्वागत करना गलत है, कि इससे हमारा समाज कलंकित हुआ है?

कहां पहुंचा दिया गया है, गुजरात के अपेक्षाकृत शांत समाज को! यह सोच कर भी सिहरन होती है कि धीरे धीरे सारा देश ‘गुजरात’ बनने की राह पर है. यहीं है वह ‘गुजरात माडल’, जिसके अनुरूप अन्य राज्यों को भी ढालने की योजना है; और क्या इसी के अनुरूप ‘नया भारत’ भी बनेगा, जिसका संकल्प प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को किया है?

 

हत्यारी भीड़ में बदलते देश और समाज की त्रासद कथा : कीर्तिगान

चन्दन पाण्डेय का मोबलिंचिंग की घटनाओं पर आधारित उपन्यास ‘कीर्तिगान’ पढ़ गया. पूरे उपन्यास में एक अव्यक्त प्रेम कथा भी चलती रहती है. सनोद और सुनंदा की. तभी तो यह उपन्यास है, अन्यथा रिपर्ताज बन कर रह जाता. पूरी कहानी बारी बारी से सनोद और सुनंदा की डायरी की शक्ल में आगे बढ़ती है. दोनों के बीच एक सहज आकर्षण भी है, जो कभी सघन होता है, फिर दूरी भी बनती है.किताब में सितम्बर-2015 से लेकर दिसंबर-2019 तक की घटनाओं की सूची दी गयी है. मृतक की जाति, धर्म और हत्या के कारण सहित. इन भीड़ हत्याओं की कर्मभूमि झारखंड, यूपी, राजस्थान, गुजरात, कश्मीर, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और असम तक फ़ैली हुई है. बीफ और लव जिहाद जैसे कारणों के अलावा कुछ ‘अकारण’ भी. मानो शौक के लिए हत्या कर दी हो.

पुस्तक की शुरुआत तबरेज अंसारी की हत्या से होती है, जिसे मोटर साइकिल चोर बताकर मार डाला गया था. इसका ब्योरा किसी को भी सिहरा देने के लिए काफी है. यह एहसास होता है कि यह देश किस दिशा में बढ़ रहा है और समाज में नफ़रत तथा उन्माद किस हद तक फैल चुका है. नृशंस हत्याओं की उस रिपोर्टिंग के दौरान तलाकशुदा और दो बेटों का पिता सनोद मानसिक तनाव से गुजरता है. अकेले में या भीड़ में होते हुए भी मृतकों और उनके परिजनों की आकृति जीवंत होकर उसके सामने आ जाती है. फिर उसी बहाने अतीत की घटनाएं उसका पीछा करती हैं. उसका मानसिक संतुलन अस्थिर होता जाता है और अंततः सुनंदा खुद अपने एक भाई को इसी तरह की भीड़ हिंसा में खो चुकी है, जब उसका परिवार नब्बे के दशक में बांग्लादेश में था. वह भी बार बार उस त्रासदी को तथा भाई की हत्या के बाद पागलपन की कगार तक पहुँच गये अपने पिता को याद करती है. मगर वह सनोद की तुलना में मजबूत है. सनोद के इलाज में भी लगातार लगी रहती है. चाटुकारिता में होड़ करते चैनलों के बीच ‘कीर्तिगान’ नमक मीडिया हाउस का भीड़-हत्या पर इतनी गंभीर रिपोर्टिंग करना हैरत में डालता है. लेकिन इस हैरानी का जवाब अंत में एक और हैरानी से मिलता है, जब ‘कीर्तिगान’ के इस प्रोजेक्ट को लीड करने वाले का राज्यसभा जाने का जुगाड़ हो जाता है.

उस मानवतावादी और तंत्र विरोधी अभियान का मकसद यही था? वैसे मीडिया और बहुतेरे ‘प्रसिद्ध’ पत्रकारों के चरित्र को देखते हुए अब यह कोई हैरानी की बात भी नहीं रही. हैरानी और अफसोस की बात वह है, जो ‘कीर्तिगान’ बहुत सरलता से बताता है कि कैसे उन हत्याओं को देश और समाज के बड़े हिस्से ने ‘सामान्य’ अपराध मान लिया, जो सत्ता प्रतिष्ठान और पूरा तंत्र स्थापित करना चाहता था, और जिन भी लोगों ने ऐसा मान लिया, कहीं न कहीं वे सभी प्रकारांतर से हत्यारों की उस भीड़ में शामिल नजर आने लगते हैं. इसलिए बहुत मुमकिन है कि इस उपन्यास के लेखक को ‘अर्बन नक्सल’ घोषित कर दिया जाये. मगर क्या इससे वह सच कैसे बदल जायेगा, जो हमारे सामने है?

190 पेज की इस किताब में बिखरी हुई घटनाओं के बावजूद एक प्रवाह है. शैली नयी और आकर्षक है. लेखक पाठकों को बांधे रखने में सफल और दिमाग को झकझोरने में कामयाब रहे हैं.

-श्रीनिवास

Sarvodaya Jagat

Share
Published by
Sarvodaya Jagat

Recent Posts

सर्वोदय जगत (16-31 अक्टूबर 2024)

Click here to Download Digital Copy of Sarvodaya Jagat

2 months ago

क्या इस साजिश में महादेव विद्रोही भी शामिल हैं?

इस सवाल का जवाब तलाशने के पहले राजघाट परिसर, वाराणसी के जमीन कब्जे के संदर्भ…

2 months ago

बनारस में अब सर्व सेवा संघ के मुख्य भवनों को ध्वस्त करने का खतरा

पिछले कुछ महीनों में बहुत तेजी से घटे घटनाक्रम के दौरान जहां सर्व सेवा संघ…

1 year ago

विकास के लिए शराबबंदी जरूरी शर्त

जनमन आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था।…

2 years ago

डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत थे

साहिबगंज में मनायी गयी 132 वीं जयंती जिला लोक समिति एवं जिला सर्वोदय मंडल कार्यालय…

2 years ago

सर्व सेवा संघ मुख्यालय में मनाई गई ज्योति बा फुले जयंती

कस्तूरबा को भी किया गया नमन सर्वोदय समाज के संयोजक प्रो सोमनाथ रोडे ने कहा…

2 years ago

This website uses cookies.