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जंगल वनवासियों के पास रहेगा, तभी बचेगा

2001 से 2011 के बीच 86 लाख किसान खेती छोड़ चुके हैं। 2013 तक गांव के 50 प्रतिशत लोग आजीविका के लिए खेती पर निर्भर रहे हैं। सरकार लोगों को खेती पर बोझ मानती है। इन्हें किसान सम्मान निधि देकर खेती छोड़ने को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

वनाधिकार एवं भूमि अधिकार पर पटना में सेमिनार

दिल्ली की संस्था श्रुति के सौजन्य से मजदूर किसान समिति द्वारा 23 एवं 24 जून 2022 को वनाधिकार एवं भूमि अधिकार विषय पर एक सेमिनार का आयोजन पटना में किया गया। इसमें मुख्य रूप से गया, नवादा, पूर्णिया, पश्चिम चंपारण एवं पटना जिले के प्रतिभागी शामिल हुए। दो दिनों के इस सेमिनार में वनाधिकार, भूमि अधिकार और खेती से हो रहे पलायन पर चर्चा हुई। सेमिनार में तय किया गया कि 50 हजार हस्ताक्षरों से युक्त एक ज्ञापन तैयार कर हाईकोर्ट के सामने प्रदर्शन किया जायेगा।
सेमीनार को चअ प्रियदर्शी, पंकज, सतीश कुमार, पार्थ सरकार, कैलाश भारती, पूनम, डॉ शरद, डॉ जौहर, उदयन राय, राजेश, राजाराम सिंह, मणिलाल, मनोज कुमार, महेंद्र यादव, सोहन राम, निर्मल चन्द्र, बाबूलाल अलबेला, रामस्वरुप मांझी, लखन मांझी, बुधन सिंह भोक्ता, मंगारा मुंडा, बहादुर मुंडा, कामदेव माँझी आदि ने संबोधित किया।


प्रियदर्शी ने कहा कि उड़ीसा में सबसे अधिक 3.50 लाख लोगों को कुल 5 लाख एकड़ जमीन पर वनाधिकार मिला, जबकि बिहार की स्थिति नगण्य है। पूर्वोतर के राज्यों में भी वनाधिकार नहीं मिला। मनोज कुमार ने वनाधिकार कानून बनने से लेकर उच्च न्यायालय में याचिका दायर होने तथा उस पर निर्णय होने के बाद निर्धारित समय सीमा के अंदर अपील दायर करने का पूरा ब्योरा दिया और बताया कि अपील करने के सवा साल बाद भी अब तक अपील पर कोई निर्णय नहीं हुआ है, जबकि दो माह के भीतर फैसला करने का आदेश हाईकोर्ट ने दिया था।

सतीश कुमार ने कहा कि कानून बनने के बाद भी स्थिति खराब है। बहुतायत गरीब जनता को 3 डिसमिल जमीन भी 1947 से अबतक नहीं मिली है, जबकि हजारों एकड़ जमीन में सरकारी संस्थान ही नहीं, निजी इमारतें भी बनी हैं। जनता के हित में अगर कानून बनता भी है, तो उसका लाभ लेने के लिए लड़ना पड़ता है। हमारे शासक हम पर शासन करने लायक नहीं है।

डॉ. शरद ने कहा कि झारखंड में काम करते हुए हमने देखा है कि वहाँ भी वनाधिकार नहीं मिला। सरकार ने लैंड बैंक बनाकर गांवों की जमीन बिना ग्रामसभा की अनुमति लिए कॉरपोरेट को दे दी। उन्होंने कहा कि बिहार में वनाधिकार को आदिवासियों का कानून समझा गया, जबकि यहाँ आदिवासी वोट बैंक नही हैं, इसलिए इस पर कुछ नहीं हुआ। जंगल वनवासियों के पास रहेगा, तभी बचेगा।

पूनम ने कहा कि वनाधिकार पर जितनी लड़ाई लड़ी जा रही है, उतनी सफलता नहीं मिल रही है। इसलिए और भी मजबूती से लड़ना होगा। मणिलाल ने कहा कि यह आदिवासियों और वनवासियों के अधिकार को मान्यता देने का कानून है, लेकिन बिहार में इसकी प्रगति शून्य है। निर्मल चन्द्र ने कहा कि हमारे पास अनुभवी लोग हैं, लेकिन इसके लिए सभी को जुड़ना होगा। डॉ जौहर ने कहा कि हमें आदिवासियों के पक्ष में खड़ा होना चाहिए। उदयन राय ने कहा कि भारत का कृषि क्षेत्र आधा हो गया है। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में भ्रष्टाचार इतना है कि फॉरेस्ट रैंजर तक पीढ़ियों के लिए धन जमा कर लेता है। सोहन राम ने कहा कि लोग पशु के समान जीवन जी रहे हैं। कानून निरर्थक हो गया है। सरकार में हमारे लोग आएंगे, तभी स्थिति सुधरेगी। अमर राम ने कहा कि जंगल किनारे रामनगर में सिनाही नदी के पास मनचनवा गांव के लोगों को मारवाड़ियों ने पैसा देकर हटा दिया।

पंकज ने कहा कि पटना शहर के कुछ साथी भूमि के मसले पर सहयोग करते रहे हैं। बेतिया में हाईकोर्ट ने 1996 में ही पश्चिमी चंपारण जिले के बगहा क्षेत्र में जमीन बाँटने का आदेश दिया था, लेकिन हमें इस फैसले की जानकारी ही 2007 में मिली। 1991 में लालू प्रसाद की सरकार ने नियम बनाया कि 20 भूमिहीन परिवारों के लिए 1 एकड़ जमीन खरीद कर कलस्टर बनाकर बसाया जाय। यह नियमावली भी 2002 में हमारी जानकारी में आई। इस तरह सरकार ही नहीं, इस मामले में हमलोग भी लेट हैं।
सेमिनार के दूसरे दिन राजाराम सिंह ने कहा कि खेती का कॉरपोरेट के हाथ में ट्रांसफर हो रहा है। जल, जंगल, जमीन पर आश्रित रहने वालों का प्रश्न नए सिरे से खड़ा हो गया है। पहले जमीन का अधिग्रहण सरकारी प्रोजेक्ट्स के लिए होता था, अब निजी क्षेत्र के लिए हो रहा है। प्रोटेक्शन ऑफ लैंड कानून की जरूरत है।

राजेश ने कहा कि पूरी दुनिया से किसानों का सफाया हो गया है, लेकिन भारत में अबतक किसान वर्ग बचा है। उसके अस्तित्व पर लगातार हमले हो रहे हैं। किसानों में प्रतिकूल स्थिति के बावजूद जमीन की भूख है। हमारे यहां जमीन के मौलिक सर्वे नहीं हो रहे हैं। पुराने सर्वे के आधार पर ही नए सर्वे हो रहे हैं। कमलेश शर्मा द्वारा 90 के दशक में जहानाबाद में किये एक सर्वे का निष्कर्ष ये था कि अगर सीलिंग से फाजिल जमीन निकाली जाय, तो प्रति किसान 10 एकड़ जमीन निकल सकती है।
पार्थ सरकार ने कहा कि 2001 से 2011 के बीच 86 लाख किसान खेती छोड़ चुके हैं। 2013 तक गांव के 50 प्रतिशत लोग आजीविका के लिए खेती पर निर्भर रहे हैं। सरकार लोगों को खेती पर बोझ मानती है। इन्हें किसान सम्मान निधि देकर खेती छोड़ने को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

महेंद्र यादव ने कहा कि जमीन और शहरी सम्पत्ति का भी बंटवारा होना चाहिए। सीटू तिवारी ने कहा कि जल नल योजना से पानी जमा हो जाता है, जिससे खेती दो फसली से एक फसली हो रही है। जोहेब ने कहा कि कारपोरेट के खेती में हक्तक्षेप से गुलामी की स्थिति बन रही है। कैलाश भारती ने कहा कि किसान जमीन बेचना अपमानजनक मानता है, लेकिन हमारे यहां 30 प्रतिशत लोगों ने सीलिंग से प्राप्त अपनी जमीन बेच दी। दो दिनों तक चले इस सेमिनार में 40 लोगों ने भाग लिया और अपने विचार रखे।

-अरविन्द अंजुम

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