मैं जीवन भर गांधी का गहन पाठक रहा हूँ। जाति और धर्मनिरपेक्षता पर गांधी का सिद्धांत और उनका निजी और सार्वजनिक व्यवहार मुझे हमेशा हैरान करता रहा है। इसकी वजह स्पष्ट है। गाँधी के अलावा भारत में किसी और ने निजी और सार्वजनिक जीवन में जाति और धर्म पर न तो इतने बड़े पैमाने पर प्रयोग किये न ही दूसरा ऐसा कोई दस्तावेजीकरण मिलता है। गाँधी जाति और धर्म के सवाल पर दक्षिण अफ्रीका में स्पष्ट रहे और भारत में रणनीतिक। शायद इसलिए कि कांग्रेस उच्च जातियों के लगभग पूरे नियंत्रण में थी। यदि मुझे दो राजनीतिक व्यक्तित्वों को चुनना और तुलना करना हो तो मैं भारत में गांधी और अम्बेडकर तथा विश्व स्तर पर गांधी और मार्क्स को चुनूंगा। अगर आप गांधी और मार्क्स दोनों को पढ़ें तो आपको कई मुद्दों पर उनके विचारों में विपरीत समानताएं मिल सकती हैं। गांधी के पास चीजों को समझने, उनकी थाह लेने और काफी हद तक सही समाधान तक पहुंचने की असाधारण चेतना थी।
मुझे लगता है कि गाँधी के अलावा किसी ने भी स्वतंत्रता आंदोलन के समय जाति उन्मूलन के लिए उतना काम नहीं किया। आंबेडकर अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि की वजह से यह काम कर नहीं सकते थे। मैं इतिहास पर दृष्टि डाल कर अक्सर सोचता हूँ कि अगर आंबेडकर में गाँधी के प्रति इतना रोष नहीं होता और अगर उन्होंने गाँधी के अछूतोद्धार और जाति के सवाल पर किये गए कार्यों के प्रति संवेदनशील रुख अख्तियार किया होता तो आज का भारत कैसा होता? लुई फिशर ने अपने संस्मरण में लिखा है कि जब वे आंबेडकर से मिलकर वापस लौटे तो उन्हें महसूस हुआ कि वे शायद दुनिया के सर्वाधिक कड़वाहट भरे व्यक्ति से मिले थे। आंबेडकर की यह कड़वाहट इस देश पर कितनी भरी पड़ी यह एक अलग आलेख का विषय है।
अतीत की घटनाओं की व्याख्या इतिहास, समय और संदर्भ में करने के बजाय मैं जाति और वर्ण पर गांधी जी की राय साझा करता हूं. मैं लोगों को किसी भी विवादास्पद मुद्दे पर अंतिम राय देने से पहले दोबारा सुनिश्चित होने की चेतावनी देता हूँ। हालांकि, जब कोई गांधी के बारे में अंतिम होने की कोशिश करता है तो मैं विवेक का प्रयोग करने की सलाह भी देता हूँ। गांधी के बारे में बहुत भ्रम पैदा हो गया है जब कई लेखकों ने उनकी मान्यताओं, विचारधारा और उनके कार्यों के बारे में उन्हें बिना किसी संदर्भ, समय और ऐतिहासिकता के किसी न किसी पुस्तक से उद्धृत करके लिखा है. जबकि प्रामाणिक तथ्य सम्पूर्ण गांधी वांग्मय में मौजूद हैं. एक प्रश्न का उत्तर देते हुए गांधी जी ने कहा था कि मैं स्वराज के तीन स्तंभों- खादी के प्रचार, हिंदू-मुस्लिम एकता की स्थापना और अस्पृश्यता को दूर करने के लिए कांग्रेस के प्रस्ताव का लेखक हूं, लेकिन मैंने वर्णाश्रम धर्म की स्थापना को चौथे स्तंभ के रूप में कभी नहीं रखा। इसलिए, आप मुझ पर वर्णाश्रम धर्म पर गलत जोर देने का आरोप नहीं लगा सकते।
‘लेटर टू हरिभाऊ पाठक’, शीर्षक से 6 अक्टूबर 1932 को सीडब्ल्यूएमजी- खंड 51, पृष्ठ 214 पर गांधी जी ने लिखा है कि वर्ण व्यवस्था बस टूट चुकी है। कोई सच्चा ब्राह्मण या सच्चा क्षत्रिय या वैश्य नहीं है। हम सब शूद्र यानी एक वर्ण हैं। अगर यह पद स्वीकार कर लिया जाए तो बात आसान हो जाती है। उन्होंने आगे लिखा कि मैं अब स्पष्ट रूप से देख सकता हूँ कि चार वर्ण अब वास्तविक स्वरूप में नहीं हैं, वैसे ही जैसे चार आश्रम भी नहीं हैं। वर्तमान समय में अस्तित्व में केवल एक ही वर्ण है। हम सभी शूद्र हैं और यदि हम इस पर विश्वास कर लें तो हरिजनों का सवर्ण हिंदुओं में विलय अविश्वसनीय रूप से सरल हो जाता है। ‘वर्ण व्यवस्था का परिचय’ शीर्षक से सीडब्ल्यूएमजी- खंड-59, पृष्ठ 65 पर 23 सितंबर 1934 को उन्होंने लिखा कि वर्ण जन्म से निर्धारित होता है, लेकिन अपने दायित्वों का पालन करके ही इसे बनाए रखा जा सकता है। ब्राह्मण माता-पिता से पैदा हुए व्यक्ति को ब्राह्मण कहा जाएगा, लेकिन यदि उसका जीवन ब्राह्मण के गुणों को प्रकट करने में विफल रहता है, तो उसे ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता है। वह ब्राह्मणत्व से गिर चुका होगा। दूसरी ओर जो ब्राह्मण पैदा नहीं हुआ है, लेकिन अपने आचरण में ब्राह्मण के गुणों को प्रकट करता है, उसे ब्राह्मण माना जाएगा।
फीनिक्स बस्ती में मिश्रित आबादी थी, जिसमें विभिन्न जातियों के हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और यहूदी शामिल थे। आम रसोई और विभिन्न धर्मों के भजनों से मिलकर प्रार्थना की प्रथा थी। उस समय उन्होंने हेनरी पोलाक, एक यहूदी के साथ मिल्ली ग्राहम डाउन्स और एक स्कॉटिश ईसाई के विवाह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि गांधी ने न केवल अपने तीसरे बेटे रामदास को 27 जनवरी 1928 को भिन्न उपजाति में शादी करने की अनुमति दी, बल्कि अपने चौथे बेटे देवदास को 1933 में एक ब्राह्मण लड़की से शादी करने की अनुमति भी दी, जो संयोग से राजा जी की बेटी थी। गांधी ने लक्ष्मी नाम की एक बेटी को गोद लिया था, जो दलित थी और 1933 में गांधी ने खुद एक ब्राह्मण युवक से उसकी शादी करवाई थी। मैं गांधी के पहले पुत्र हीरालाल से संबंधित एक दुखद लेकिन करुण कहानी का उल्लेख करना चाहूंगा । हीरालाल को एक मुस्लिम लड़की पसंद थी, जो दक्षिण अफ्रीका के फीनिक्स आश्रम में ही रहती थी। गांधी ने इस विवाह को इसलिए नहीं, नहीं होने दिया कि वह अंतर्धार्मिक विवाह के खिलाफ थे, बल्कि उनकी इस दुविधा के कारण नहीं होने दिया कि एक मुस्लिम लड़की एक हिंदू घर में अपने मुस्लिम धर्म की शुद्धता को बनाए रखने में कैसे सफल होगी।
यह आलेख गाँधी जी के वर्ण और जाति पर उनके विचारों को ऐतिहासिक क्रम में रखने की एक छोटी सी कोशिश भर है इसलिए गाँधी के नवम्बर १९३३ से अगस्त १९३४ के बीच अछूतोद्धार के लिए चलाये गए गहन धर्मयुद्ध को इसमें शामिल नहीं किया गया है, जिसमें जाति और वर्ण के बारे में उनकी समझ उदात्त रूप में कार्य करती दिखाई देती है. इसकी विवेचना के लिए एक बृहतर आलेख की जरुरत होगी।
Click here to Download Digital Copy of Sarvodaya Jagat
इस सवाल का जवाब तलाशने के पहले राजघाट परिसर, वाराणसी के जमीन कब्जे के संदर्भ…
पिछले कुछ महीनों में बहुत तेजी से घटे घटनाक्रम के दौरान जहां सर्व सेवा संघ…
जनमन आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था।…
साहिबगंज में मनायी गयी 132 वीं जयंती जिला लोक समिति एवं जिला सर्वोदय मंडल कार्यालय…
कस्तूरबा को भी किया गया नमन सर्वोदय समाज के संयोजक प्रो सोमनाथ रोडे ने कहा…
This website uses cookies.