Uncategorized

जीवन-शक्ति ऐसे विकसित की जा सकती है

स्वास्थ्य

जिन पांच तत्वों से जगत की रचना हुई, उन्हीं पांच तत्वों से शरीर की भी रचना हुई। इन पांच तत्वों के अंश ही जीवनी-शक्ति के रूप में शरीर में निवास करके इसे कार्यशील रखते हैं। पढ़ें, वे क्रियाविधियां, जिनके जरिये हम अपने शरीर में इन तत्वों का संतुलन बनाये रख सकते हैं।

प्रत्येक प्राणी जन्म के साथ जीवनी-शक्ति का एक निश्चित फंड या पूंजी लेकर आता है। हमारी कोई भी कला उसे बढ़ा नहीं सकती, बल्कि उसी पर हम कायम रहते हैं। धीरे-धीरे भंडार का ह्रास होने लगता है और अंत में पूंजी समाप्त हो जाती है और हम मर जाते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि इस पूंजी को मितव्ययिता से व्यय करने की शक्ति हमारे अंदर है।

जीवन-शक्ति विकसित करने के साधन

आकाश तत्व- आकाश तत्व की प्राप्ति के लिए भोजन करते समय एक चौथाई भाग पेट आकाश तत्व के लिए खाली रखें, ताकि वायु भी शरीर के अंदर-बाहर जा सके और पाक स्थली के सिकुड़ने तथा फैलने की क्षमता भी बनी रहे। कम वस्त्र पहनें, ताकि रोमकूपों से आकाश तत्व मिलता रहे। मकानों के बाहर रहें, ताकि आकाश तत्व मिलने से दीर्घायु प्राप्त कर सकें। आकाश तत्व प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन है उपवास। उपवास के समय जीवनी-शक्ति पाचन क्रिया से मुक्त होकर शरीर के विकारों को बाहर निकालने लगती है। इसलिए सप्ताह में एक दिन जल या फलाहार पर रहने का नियम बनायें।

वायु तत्व- वायु स्नान के समय रोमकूप आक्सीजन प्राप्त करते हैं और अंदर का विकार बाहर निकालते हैं। गहरी सांस से वायु फेफड़ों के प्रत्येक भाग में पहुंचती है।

सूर्य तत्व- सूर्य स्नान से शरीर को विटामिन ए और डी की प्राप्ति होती है। रक्त-संचार और पाचन क्रिया का सुधार होता है। धूप में तेल मालिश से अंग सशक्त होते हैं। धूप में पके हुए सजीव फल-तरकारियों को बिना आग के संपर्क में लाये, हम खाते हैं तो हम सूर्य-किरणों का सीधा भक्षण करते हैं।

जल तत्व- उषापान, नेत्र स्नान, जल नेति, आचमन, जल-भक्षण तो दिन में लगभग दो लीटर करें, किन्तु खाते समय नहीं, भोजन के आधा घंटा पहले या दो घंटा बाद। जल-स्नान ठंडे जल से करें। इससे रक्त की गति तीव्र होती है। स्नान से पहले और बाद में भी शरीर को रगड़ कर गरम करें। गरम जल के स्नान से पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है। बच्चे, बूढ़े और कमजोर व्यक्ति गुनगुने पानी से नहा सकते हैं।

पृथ्वी तत्व- प्रात: नंगे पांव साफ जमीन एवं घास पर चलें। धरती पर सोने से पाचन क्रिया ठीक होती है, नींद अच्छी आती है। मिट्टी मंजन से दांत स्वस्थ एवं सशक्त हो जाते हैं, क्योंकि हड्डी में मिट्टी तत्व अधिक है।

योगाभ्यास

आसन- आसन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इससे मेरुदंड लचीला बनता है। रक्त संचार में सुधार होता है। मांसपेशियों को बल मिलता है। रोगों की रोकथाम होती है। कब्ज, गैस, मधुमेह, हार्निया, ब्लडप्रेशर आदि रोगों में उपयोगी हैं।

प्राणायाम- धातुओं को आग में डालने से जैसे उनके विकार नष्ट हो जाते हैं, वैसे ही प्राणायाम करने से इन्द्रियों के दोष नष्ट होते हैं। प्राणायाम ही स्वस्थ रह कर आयु को बढ़ाने का एक सर्वश्रेष्ठ उपाय है। प्राणायाम से मनुष्य हर प्रकार के रोग और मानसिक विकार को दूर करके एकाग्रता पैदा कर सकता है।

ध्यान योग- आधुनिक युग के तनावपूर्ण वातावरण से छुटकारा पाने के लिए वैज्ञानिकों ने ध्यान योग के महत्व को स्वीकार कर लिया है। ध्यान की अनेक प्रणालियां प्रचलित हैं, जो कठिन हैं, सरल विधि यह है कि शांत स्थान में बैठकर या लेटकर, आंखें बंद करके, नासिकाओं से सांस के आने जाने पर ध्यान लगायें। सरलतम विधि यह कि अपने-अपने कार्य में पूरी रुचि लेकर, तन-मन लगाकर उसी में एकाग्र हों। इससे कोई तनाव या मानसिक रोग भी नहीं होगा। कर्मयोगी की तरह नि:स्वार्थ भाव से कार्य करना भी ध्यान ही है।

सात्विक आहार- जहां तक हो सके, हमें खाद्य को उसके प्राकृतिक रूप में ही लेना चाहिए, क्योंकि उसमें सर्वाधिक जीवनी शक्ति होती है। रोग निवारण में भी अपक्वाहार निर्विवाद सत्य है। ताजी हरी साग-सब्जी, फल, अंकुरित अन्न-कण, सूखे मेवे, कच्चे दूध आदि का उपयोग करें। खाद्यों में प्राण होता है, जो आग के संपर्क में आने पर यह बहुत कुछ नष्ट हो जाता है। आटे की रोटी के अंदर कच्चा साग-सब्जी भर कर पकायें और दही के साथ खायें। कुछ पकाई हुई रोटी व उबली या भाप से पकाई हुई साग-सब्जी के साथ सलाद शामिल करके खायें।

विश्राम- जीवन शक्ति विकिसत करने के लिए जिस प्रकार प्राकृतिक साधनों व आहार तथा योगाभ्यास की आवश्यकता है, उसी प्रकार हमें विश्राम तथा नींद के द्वारा स्नायु मंडल तथा मांसपेशियों को शांति देना भी आवश्यक है। स्वयं प्रकृति ने दिन को काम और रात को विश्राम के लिए बनाया है। लगातार काम करते रहने पर व्यक्ति के स्नायु मंडल तथा मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है तो वह रोग-ग्रस्त हो जाता है। विश्राम के क्षणों में ही स्नायु-तंतुओं की क्षति-पूर्ति होती है तथा सारे शरीर में जीवनी-शक्ति का विकसित होना शुरू हो जाता है।

Sarvodaya Jagat

Share
Published by
Sarvodaya Jagat

Recent Posts

सर्वोदय जगत – 01-15 मई 2023

  सर्वोदय जगत पत्रिका डाक से नियमित प्राप्त करने के लिए आपका वित्तीय सहयोग चाहिए।…

7 months ago

बनारस में अब सर्व सेवा संघ के मुख्य भवनों को ध्वस्त करने का खतरा

पिछले कुछ महीनों में बहुत तेजी से घटे घटनाक्रम के दौरान जहां सर्व सेवा संघ…

1 year ago

विकास के लिए शराबबंदी जरूरी शर्त

जनमन आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था।…

1 year ago

डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत थे

साहिबगंज में मनायी गयी 132 वीं जयंती जिला लोक समिति एवं जिला सर्वोदय मंडल कार्यालय…

1 year ago

सर्व सेवा संघ मुख्यालय में मनाई गई ज्योति बा फुले जयंती

कस्तूरबा को भी किया गया नमन सर्वोदय समाज के संयोजक प्रो सोमनाथ रोडे ने कहा…

1 year ago

इतिहास बदलने के प्रयास का विरोध करना होगा

इलाहबाद जिला सर्वोदय मंडल की बैठक में बोले चंदन पाल इलाहबाद जिला सर्वोदय मंडल की…

1 year ago

This website uses cookies.