आजादी के 75वें महोत्सव को कैसे मनायें, यह बड़ा गंभीर प्रश्न है। इस प्रश्न पर विचार करने से पहले, आजाद भारत के बारे में गांधी जी क्या सपना था और वह सपना 75 वर्षों में पूरा हुआ अथवा नहीं, इस विषय पर विचार किया जाना जरूरी है.
गांधी जी अंग्रेज शासकों और उनकी भाषा अंग्रेजी, दोनों से ही मुक्ति चाहते थे। गांधी जी ने 1918 में अपने सबसे छोटे बेटे देवदास गांधी को हिन्दी के प्रचार के लिए दक्षिण भारत भेजा था। उन्होंने 5 जून 1926 के यंग इंडिया में लिखा कि यदि मैं तानाशाह होता तो आज ही विदेशी भाषा में शिक्षा दिया जाना बंद कर देता, सारे अध्यापकों को स्वदेशी भाषाएं अपनाने को मजबूर कर देता, मैं पाठ्य पुस्तकें तैयार किये जाने का इंतजार न करता।
देश को आजादी मिले हुए 75 वर्ष बीत गये, किन्तु हम आज भी अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी के गुलाम बने हुए हैं। देश का कोई भी नागरिक अपनी मातृभाषा अथवा राष्ट्रभाषा हिन्दी में अपनी फरियाद देश के सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत नहीं कर सकता है, वहां आज भी मैकाले ब्राण्ड अंग्रेजी भाषा का ताला है। वादी को वाद का फैसला भी अंग्रेजी में ही जारी होता है। केन्द्र सरकार की सभी नौकरियों में अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता अभी भी कायम है, प्रदेशों में भी अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना जरूरी माना गया है।
जब देश में आजादी के 75 वें वर्ष का जश्न, अमृत महोत्सव, मनाने को केन्द्र सरकार आतुर हो तो यह सवाल उठाना जरूरी हो जाता है कि कैसी आजादी का जश्न हम मनाने जा रहे हैं, जब हम अभी भी अंग्रेज शासकों की भाषा के गुलाम बने हुए हैं। यह आजादी तो अभी भी आधी-अधूरी है।
अंग्रेजी गरीबों के विकास में बाधक है, गांधी जी ने कहा था कि अगर स्वराज्य करोड़ों भूखों मरने वालों, करोड़ों निरक्षरों, दलितों व अन्त्यजों का हो और इन सबके लिए होने वाला हो, तो हिन्दी ही देश की एकमात्र राष्ट्र भाषा हो सकती है।
इंजीनियरिंग, डॉक्टरी, वकालत की पढ़ाई आज भी अंग्रेजी भाषा के माध्यम से दी जा रही है। क्या चीन, जापान, रूस आदि देशों में पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी भाषा है? वहां इन सबकी शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही दी जाती है।
गांधी जी ने कहा कि ब्रिटेन में लोग अनेक भाषाएं जानते हैं, किन्तु वे जब अपने देशवासियों से आपस में बात करते हैं तो केवल अंग्रेजी भाषा में ही बात करते हैं। इसके विपरीत अपने ही देश में हम अपनी मानसिक गुलामी के चलते आज भी अंग्रेजी भाषा में बात करने में गर्व महसूस करते हैं। देश में बेरोजगारी जब अपनी चरम सीमा पर हो और जनता भीषण महंगाई की मार झेल रही हो तब हम लोगों को आजादी का महोत्सव वर्ष मनाने के लिए कैसे उत्साहित करें और कैसे तिरंगा लहराने की बात कहें!
आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी करोड़ों भारतीय नागरिकों को केन्द्र सरकार द्वारा दी जा रही खाद्य सामग्री पर आश्रित रहना पड़ रहा हो तो फिर आजादी का जश्न मनाने का औचित्य क्या और कैसा है, यह प्रश्न खड़ा होता है।
-रवीन्द्र सिंह चौहान
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