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कैसे हो इस विरासत का बेहतर इस्तेमाल!

अनासक्ति आश्रम कौसानी

नेहरू जी ने गांधी जी से जुड़े हर स्थल को तीर्थ की संज्ञा दी थी, उन्होंने कहा था कि यह तीर्थ ईंट और गारे से नहीं बने हैं, यह साधना की ईंट और विचार के गारे से बने तीर्थ हैं। अहंकार और आसक्ति से रहित, दृढ़ता और उत्साह से भरपूर, सफलता और विफलता में हर्ष-शोक से दूर अनासक्ति जगाने वाला यह आश्रम गांधीजनों के लिए भविष्य में कैसे प्रेरणा का कार्य करेगा, यह सर्वोदय और गांधी संस्थाओं के पदाधिकारियों को सोचना होगा।

भारत के स्विट्जरलैंड कौसानी में गांधी जी की स्मृति में बने अनासक्ति आश्रम को आज पुनः गांधी दर्शन के प्रसार प्रचार से जोड़ने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। बेहद खूबसूरत कुदरती मंजर वाले इस आश्रम से हिमालय की 300 किमी लम्बी विशाल श्रंखला का नज़ारा दिखाई देता है। हिमालय की चोटियों, नीलकंठ, कामेट, नंदा, नंदाघुटी, पंचचूली, त्रिशूल आदि का नजारा देखते ही बनता है, जो किसी के भी मन को सुकून से भर देने के लिए काफ़ी है।

नमक सत्याग्रह से पहले महात्मा गांधी पूरे देश के दौरे पर थे। सन् 1929 में वे कुमाऊं के अल्मोड़ा, ताकुला और ताड़ीखेत की यात्रा पर आए तो कौसानी के एक अंग्रेज चाय बागान के मालिक के अतिथि गृह में दो दिन के लिए रुके थे। वहां पहले चाय का गोदाम था। गांधी जी अगली सुबह जब इस गेस्टहाऊस के बाहर योग करने आए, तो उन्हें सामने दिख रही हिमालय की लम्बी श्रृंखला के सौंदर्य ने अभिभूत कर दिया और वे मंत्रमुग्ध हो गए।

इस जगह की खूबसूरती और यहां के शान्त वातावरण में गांधी जी को आध्यात्मिक अनुभूति हुई, वे इतना प्रभावित हुए कि दो दिन के बजाय पूरे 14 दिन तक यहां रहे औऱ यहीं उन्होंने अपनी किताब ‘अनासक्ति योग’ का प्रारम्भिक अध्याय पूरा कर लिया।


यहां से लौटकर यंग इंडिया के 11 जुलाई 1929 के अंक में गांधी जी ने कौसानी की खूबसूरती से सराबोर होकर लिखा, ‘हिमालय की स्वास्थ्यवर्द्धक जलवायु, उसका मनोहर दृश्य और चारों तरफ फैली हुई उसकी सुहावनी हरियाली किसी भी अभिलाषा को अपूर्ण नहीं रखती, मैं सोचता हूं कि इन पर्वतों के दृश्यों तथा जलवायु से बढ़कर होना तो दूर रहा, इनकी बराबरी भी संसार का कोई अन्य स्थान नहीं कर सकता, इन पर्वतों में दो सप्ताह रहकर मुझे अब तो पहले से भी अधिक आश्चर्य होता है कि हमारे देशवासी स्वास्थ्य लाभ के लिए योरोप की यात्रा आखिर क्यों करते हैं।’ गांधी जी ने कौसानी को भारत का स्विट्ज़रलैंड बताकर उसकी अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि कर दी। तब भारत ही नहीं, विदेशों में भी कौसानी के चर्चे हुए थे।

आजादी के बाद कौसानी के गेस्टहाऊस का स्वरूप बदलने का विचार किया जाने लगा। 1963 में सुचेता कृपलानी जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं, तो उन्होंने इसको गांधी जी के स्मृतिस्थल के रूप में अनासक्ति आश्रम के नाम से विकसित करने का निर्णय लिया। 6 अक्टूबर 1964 को इस आश्रम का उद्घाटन हुआ। बाद में इस आश्रम को गांधी स्मारक निधि को हस्तांतरित कर दिया गया। इस आश्रम को बनाने और स्थापित करने में अनेक स्वतंत्रता सेनानियों और गांधीजनों ने सहयोग दिया, जिसमें गांधी जी की अंग्रेज शिष्या और लक्ष्मी आश्रम की संस्थापिका सरला बहन, जिला परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष और स्वतंत्रता सेनानी गोवर्द्धन तिवारी, शान्ति लाल त्रिवेदी, गांधी स्मारक निधि के तत्कालीन अध्यक्ष विचित्र नारायण शर्मा, सचिव अक्षय कुमार करण और बड़ौदा के जीवाभाई पटेल शामिल थे।

अनासक्ति आश्रम के उद्घाटन के समय उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वे कौसानी में गांधी जी के नाम से जिस अनासक्ति आश्रम का उद्घाटन कर रही हैं, वह आश्रम भविष्य में गांधीवादियों के लिए प्रेरणादायक नहीं रह जाएगा, बल्कि उसको देखकर विरक्ति का भाव जाग जागेगा। इस आश्रम के एक प्रार्थना कक्ष में शाम को नियत समय पर नियमित सर्वधर्म प्रार्थना होती है, यहीं पर गांधी जी के जीवन की झांकी देने वाले करीब 150 चित्रों की स्थायी प्रदर्शनी है। गांधी साहित्य भी रखा गया है, जहां पर अध्ययन मनन करने का बेहतर माहौल है। 24 कमरों का एक गेस्टहाउस भी है, जहाँ अभी दो वीआईपी कमरे भी जुड़े हैं।

सरकार ने चार साल पहले करीब ढाई करोड़ रुपयों की एक योजना इस आश्रम के सौंदर्यीकरण के लिए स्वीकृत की थी, जिसके अंतर्गत अभी सवा करोड़ रूपये व्यय करके एक प्रार्थना कक्ष और एक गांधी प्रतिमा की स्थापना हुई है और आसपास का सौंदर्यीकरण किया गया है, अभी और काम बाकी है। सरकारी बजट से अब यह परिसर भव्य बन रहा है, इसकी चकाचौंध बढ़ गई है। गांधी स्मारक निधि के सचिव लालबहादुर राय का कहना है कि लेकिन अभी भी काफी काम बाकी है। जो काम हो चुके हैं, उनमे कई स्तरीय नहीं हुए हैं, भविष्य में ये काम कितने स्थायी रहेंगे, यह बड़ा प्रश्न है। लकड़ी के काम से हुए सौंदर्यीकरण का रख रखाव बहुत महंगा होगा, जो गांधी स्मारक निधि के बस की बात नहीं है। अभी गेस्टहाऊस में भी और मरम्मत और सुधार की ज़रूरत है। इससे भी ज़्यादा यह सोचना ज़रूरी है कि क्या यह आश्रम गांधीजनों के अध्ययन मनन और सीखने सिखाने के काम आ रहा है।


सुचेता कृपलानी ने यह कल्पना की थी कि गांधी जी से जुड़े और असीम प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण आश्रम में आकर गांधीजन और साधक स्वाध्याय व मनन करेंगे, गांधी को जानेंगे, गांधी से सीखेंगे और दूसरों को सिखाएंगे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यह आश्रम मात्र एक टूरिस्ट स्पॉट बनकर रह गया है, गांधीजन यहां बिरले ही आ पाते हैं। अगर कोरोना काल को छोड़ दें, तब भी यहां गांधी दर्शन के प्रसार प्रचार के कोई उल्लेखनीय कार्यक्रम नहीं हो पाए हैं, कोरोना काल के लॉकडाउन ने गांधी संस्थाओं की कमर तोड़ दी है। हमारे ये आश्रम कैसे चलें, यह बड़ी समस्या है। एक बड़ी समस्या इसके प्रबंधन को लेकर भी है। गांधी स्मारक निधि के पदाधिकारी लखनऊ में बैठते हैं, स्थानीय स्तर पर इसको देखने वाला कोई नहीं है, जो गांधी दर्शन के प्रचार प्रसार के कार्यक्रम बनाए और अखिल भारतीय स्तर की सभी गांधीवादी संस्थाओं से समन्वय करके उन्हें चलाए।

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड का विभाजन होने के बाद जिस तरह दोनों राज्यों की सम्पत्तियों का बंटवारा हुआ था, उसी तरह गांधी स्मारक निधि का भी बंटवारा होना चाहिए था और उसकी अलग अलग इकाइयां बन जानी चाहिए थीं, ताकि स्थानीय स्तर पर इस सांस्कृतिक विरासत का बेहतर प्रयोग कर गांधी दर्शन को नई पीढ़ी को हस्तांतरित किया जा सके, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। कुछ साल पहले उत्तराखंड सर्वोदय मण्डल ने गांधी स्मारक निधि से एक औपचारिक अनुरोध किया था, लेकिन निधि ने इसे अस्वीकार करके न कुछ करेंगे और न करने देंगे की तर्ज पर अनुरोध को दाखिल दफ्तर कर दिया। आज इस गांधी तीर्थ को आने वाली पीढ़ियों के लिए कैसे प्रभावकारी बनाया जाए, सभी शीर्ष गांधीवादी संस्थाओं को इस विषय में सोचना चाहिए।

नेहरू जी ने गांधी जी से जुड़े हर स्थल को तीर्थ की संज्ञा दी थी, उन्होंने कहा था कि यह तीर्थ ईंट और गारे से नहीं बने हैं, यह साधना की ईंट और विचार के गारे से बने तीर्थ हैं। अहंकार और आसक्ति से रहित, दृढ़ता और उत्साह से भरपूर, सफलता और विफलता में हर्ष-शोक से दूर अनासक्ति जगाने वाला यह आश्रम गांधीजनों के लिए भविष्य में कैसे प्रेरणा का कार्य करेगा, यह सर्वोदय और गांधी संस्थाओं के पदाधिकारियों को सोचना होगा।

-इस्लाम हुसैन

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