प्राकृतिक संसाधनों से जीवन यापन करने वाले समुदायों – चरवाहों, मछुआरों और किसानों के बीच जारी है खूनी संघर्ष
उत्तरी कैमरून में सिकुड़ते पानी के स्रोतों को लेकर तनाव के चलते 5 दिसंबर 2021 को शुरू हुए जातीय संघर्षों के बाद एक लाख लोग विस्थापित हुए हैं। इस क्षेत्र में पानी का दबाव, लंबे समय से चले आ रहे जातीय तनावों के बाद अब समुदायों की हथियारबंद झड़पों में बदल रहा है।
इस बार हिंसा की यह लहर कैमरून के सुदूर उत्तर क्षेत्र के औलूमसा गांव से शुरू हुई। संघर्ष के एक तरफ मछुआरे और किसान हैं और दूसरी तरफ अरब पशुपालक। किसानों और मछुआरों, जो मछली पकड़ने और फसलों की सिंचाई करने के लिए नालियां खोदते हैं, का आरोप है कि चरवाहों के पालतू मवेशियों ने उनकी नालियों को तोड़ दिया और बागानों तथा तालाबों को नष्ट कर दिया। उन्होंने इन मवेशियों को मारा। इन सबके चलते प्राकृतिक संसाधनों पर अपनी जीविका के लिए सीधे निर्भर इन समुदायों के लोगों के बीच आपसी तनाव बढ़ गया और उसने उग्र हथियारबंद जातीय संघर्ष का रूप ले लिया। नाम न बताने की शर्त पर उत्तरी कैमरून के एक नेता ने रॉयटर्स को बताया कि अरब पशुपालक अपने मवेशियों के झुंड को नदी के किनारे ले जाना चाहते थे, तभी मछुआरों और किसानों ने उन्हें रोका। नेता ने कहा कि जब अलग-अलग समुदायों के दो लोगों के बीच कोई संघर्ष होता है, तो समुदायों के सभी लोग हथियारों के साथ शामिल हो जाते हैं। 5 दिसंबर से शुरू होकर कई दिनों तक जारी रही इस लड़ाई के दौरान कम से कम 22 लोग मारे गये हैं और 30 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गये हैं। इसके बाद हिंसा पड़ोसी गांवों में भी फैल गयी और दस गांवों को जला दिया गया।
यूएनएचसीआर के अनुसार तीन दिन बाद 8 दिसंबर को उत्तरी कैमरून के कौसेरी शहर में, जो 2 लाख जनसंख्या वाला एक स्थानीय वाणिज्यिक केन्द्र भी है, में लड़ाई शुरू हो गयी, जिससे वहां का पशु बाजार नष्ट हो गया। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के एक प्रवक्ता ने 10 दिसंबर को कहा कि झड़पों के परिणामस्वरूप चालीस लोग मारे गये हैं और 100 से अधिक घायल हो गये हैं। 85 हजार से अधिक लोग पड़ोसी क्षेत्र चाड़ भाग गये हैं, जिनमें से अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं। कैमरून के अंदर ही कम से कम 15 हजार और लोग विस्थापित हुए हैं।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के प्रवक्ता बोरिस चेशिरकोव ने इस स्थिति को जलवायु परिवर्तन से प्रेरित खतरनाक संघर्ष का एक उदाहरण बताया, जो क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा को दर्शाता है। यह परिवर्तन क्षेत्र के चरवाहों, मछुआरों और किसानों के बीच दुरूह संबंधों का नवीनतम प्रकरण है, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन से ऊपजे सूखे के कारण चाड़ झील के पानी और उसकी सहायक नदियों को नाटकीय रूप से सिकुड़ते देखा है। इस संघर्ष का मुख्य कारण, जलवायु परिवर्तन ही है, क्योंकि वे लोग नदी के पानी पर निर्भर हैं, जो चाड़ झील की मुख्य सहायक नदियों में से एक है। चाड़ झील भी पिछले छह दशक से सिकुड़ती जा रही है, इसने अपने सतही जल का 95 प्रतिशत (कैमरून की तरफ) हिस्सा खो दिया है।
चेशिरकोव ने एक प्रेस वार्ता में कहा, जलवायु संकट एक मानवीय संकट है। इसे हम दुनिया के बड़े हिस्से में देख रहे हैं, जहां हमारे विस्थापित समुदाय हैं। हम इसे साहेल में देख रहे हैं, हम इसे सुदूर उत्तरी कैमरून में देख रहे हैं, हम इसे पूर्वी अफ्रीका में देख रहे हैं, लैटिन अमेरिका के सूखे गलियारे में भी और हम इसे दक्षिण एशिया में देख रहे हैं।
रिलीफ वेव अखबार ने 17 दिसंबर 2021 के अपने संस्करण में लिखा कि घटते जल संसाधनों को लेकर चरवाहों, मछुआरों और किसानों के बीच विवाद के बाद सीमावर्ती गांव औलूमसा में 5 दिसंबर को संघर्ष शुरू हो गया था। जलवायु संकट, संसाधनों, विशेष रूप से पानी के लिए प्रतिस्पर्धा को बढ़ा रहा है।
जानकारों का कहना है कि चाड़ झील, जो 30 मिलियन से अधिक लोगों के लिए आजीविका का स्रोत है, 1970 और 80 के दशक के बीच सूखे के दौरान लगभग 90 प्रतिशत तक सिकुड़ गयी थी, जिसे वैश्विक जलवायु परिवर्तन के पहले दिखने वाले प्रमुख लक्षणों में से एक माना जाता था। जबकि पिछले कुछ दशकों में झील का सिकुड़ना बंद हो गया है, लेकिन जलवायु परिवर्तन ने इस क्षेत्र में वर्षा को अधिक अनियमित और परिवर्तनशील बना दिया है। यह स्थिति स्थानीय कृषि को, जो कैमरून की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है, और अधिक कमजोर बना रही है। अगस्त 2021 में भी चरवाहों और मछुआरों के बीच लड़ाई में 45 लोगों की मौत हो गई थी और चाड़ क्षेत्र में कम से कम 23 हजार लोगों की आमद हुई थी, जिनमें से 8,500 तब से वहीं रह गए हैं। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने नवंबर 2021 की एक रिपोर्ट में कहा है कि कम बारिश से नदियां और मौसमी तालाब सूख गए हैं, जिन पर समुदाय निर्भर हैं, जिससे क्षेत्र में झड़पें हुई हैं।
संयुक्त राष्ट्र समाचार में 17 दिसम्बर 2021 के अनुसार लड़ाई से अभी तक 44 लोगों की जान चली गई है और 111 अन्य घायल हुए हैं। 112 गांवों को कथित तौर पर जला दिया गया है। सुदूर उत्तरी कैमरून में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है और नि:शस्त्रीकरण अभियान जारी है। लेकिन संकट के मूल कारणों को दूर करने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं हुईं, स्थिति आगे खराब हो सकती है।
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