गांधी जी प्रणीत अहिंसक क्रांति के रचनात्मक कार्यक्रमों की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि आप आज से, अभी से अपना स्वराज्य स्थापित करना शुरू कर सकते हैं। राज-सत्ता के परिवर्तन का इंतजार करने की जरूरत नहीं होती।
गांधीजी प्रणीत अहिंसक क्रांति का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष था वैकल्पिक रचना का। गांधीजी द्वारा चलाये जाने वाले विभिन्न रचनात्मक कार्यक्रम वैकल्पिक समाज निर्माण के विभिन्न आयामों को प्रकट करते थे। खादी एवं ग्रामोद्योग वैकल्पिक समाज निर्माण की धुरी रहे। यदि किसी रचनात्मक कार्यक्रम में वैकल्पिक समाज रचना की संभावना प्रकट नहीं होती, तो वे गांधीजी की संकल्पना के रचनात्मक कार्यक्रम नहीं होंगे।
खादी एवं ग्रामोद्योग का पहला लक्ष्य यह है कि उत्पादक श्रमिक अपने उत्पादन के साधनों से बेदखल नहीं होगा तथा इन रचनात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से उत्पादक श्रमिकों की निर्णय लेने की स्वायत्तता का विकास होगा। अंतत: समाज में उत्पादक श्रमिक की श्रेष्ठता एवं प्रतिष्ठा स्थापित होगी। पूंजीवाद के आगमन के पूर्व भी और पूंजीवाद के आगमन के बाद भी, लगभग हर स्तर पर उत्पादक श्रमिकों की निर्णय लेने की क्षमता को, निर्णय लेने के अधिकार को, सुनियोजित ढंग से एक लंबे काल प्रवाह में खत्म किया गया। खादी एवं ग्रामोद्योग के अंतर्गत चलने वाले रचनात्मक कार्यक्रमों का एक लक्ष्य यह भी है कि उत्पादन श्रम का काम करने वालों के योजना बनाने एवं निर्णय लेने का अधिकार पुन: स्थािपत हो। इस प्रकार इनमें प्रबंधक एवं कार्यकर्ता के भिन्न वर्ग नहीं हों। उत्पादक श्रमिकों की बहुमुखी प्रतिभा का विकास भी तभी होगा, जब इन कार्यक्रमों के सभी स्तरों के काम में सबको प्रवीण होना होगा। सभी को श्रम कार्य, प्रबंधक कार्य एवं व्यावसायिक कार्य से जुड़ा रहना होगा। इसीलिए वैकल्पिक रचना का निर्माण करने वाला खादी एवं ग्रामोद्योग न तो राज्य आश्रित हो सकता है और न ही पूंजीवादी बाजार के खेल का हिस्सा हो सकता है।
वस्तुत: लोक की सत्ता के अपहरण का माध्यम दो तरह की संगठित हिंसा रही हैं। एक राजसत्ता की हिंसा, जो सैन्य शक्ति व दण्डशक्ति पर आधारित है तथा दूसरे, पूंजीवादी उत्पादन पद्धति एवं पूंजीवादी बाजार की हिंसा, जिसके अंतर्गत उत्पादक श्रमिक को उत्पादन के साधनों एवं प्राकृतिक स्रोतों व संसाधनों के उपयोग के अधिकार से वंचित किया गया। लोक की सत्ता को अपहृत कर केन्द्रीकृत व्यवस्थाओं में निहित किया जाता रहा है। दोनों तरह की हिंसाओं के माध्यम से लोक की सत्ता का अपहरण एवं केन्द्रीकृत व्यवस्थाओं का उदय – दोनों, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
खादी एवं ग्रामोद्योग आधारित रचनात्मक कार्यक्रमों के संगठन का स्वरूप, वैकल्पिक समाज की रूपरेखा इस संदर्भ में भी प्रस्तुत करता है। यह वस्तुत: लोक की सत्ता के अपहरण की प्रक्रिया को उलट कर, लोक की सत्ता पुन: लोक में स्थापित करने का भी माध्यम है। ये वैकल्पिक रचना के कार्यक्रम, श्रेणीबद्धता की संस्कृति एवं उससे जुड़े सभी मूल्यों को नकार कर व्यक्ति की, विशेषकर उत्पादक श्रमिक की स्वतंत्र एवं स्वायत्त चेतना को क्रियाशील कर देंगे। राजसत्ता एवं पूंजीवादी सत्ता के संगठन से जुड़ा व्यक्ति स्वतंत्र स्वायत्त चेतना का वाहक कभी नहीं बन पाता। स्वतंत्र एवं स्वायत्त चेतना ही संकीर्णताओं एवं सीमाओं से निकलकर सर्व से, समाज भाव से जुड़ जाने का माध्यम बन जाती है। इसी कारण यह नैतिक सद्वृत्ति जागृत करने का भी माध्यम बन जाती है। इसीलिए, खादी एवं ग्रामोद्योग के माध्यम से वैकल्पिक समाज रचना के कार्यक्रम से जुड़े सभी लोगों को उन सभी मूल्यों को जीना होगा, जो नयी समाज रचना के आधार होंगे। राजसत्ता एवं पूंजीवादी व्यवस्था के मूल्यों को इन कार्यक्रमों के संगठन से हर स्तर पर निष्कासित करना होगा।
खादी एवं ग्रामोद्योग को आर्थिक क्रिया की एक इकाई मात्र बनने के बजाय, समाज परिवर्तन के एक वाहक के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करना होगा। वैकल्पिक समाज में नये नैतिक मनुष्य के जो मूल्य होंगे एवं जो जीवन दृष्टि होगी, उसका प्रतिबिम्ब इनके संगठनों में भी दिखना चाहिए। यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि खादी एवं ग्रामोद्योग के कार्यक्रम जिस लोक की सत्ता को स्थािपत करने का माध्यम बनेंगे, उसका अधिष्ठान ग्राम स्वराज्य में होगा।
गांधी जी प्रणीत अहिंसक क्रांति के रचनात्मक कार्यक्रमों की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि आप आज से, अभी से अपना स्वराज्य स्थापित करना शुरू कर सकते हैं। राज-सत्ता के परिवर्तन का इंतजार करने की जरूरत नहीं है।
-बिमल कुमार
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