पश्चिम बंगाल के पर्यावरणविद सुभाष दत्ता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर हावड़ा में आचार्य जगदीश चंद्र बोस वनस्पति उद्यान को बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया है। गंगा नदी द्वारा कटाव के कारण उद्यान के पूर्वी किनारे पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा है।
उल्लेखनीय है कि सुभाष दत्ता ने पर्यावरण के अनेक मुद्दों पर कई जनहित याचिकाएँ दायर कर रखी हैं। उन्होंने बताया कि गंगा न केवल उद्यान के पास बल्कि पश्चिम बंगाल में अपने पूरे प्रवाह के दौरान प्रदूषण से लेकर अतिक्रमण तक कई कारणों से प्रभावित हुई है और इसे तत्काल समाधान की आवश्यकता है।
उन्होंने पत्र में लिखा कि हुगली का पश्चिमी हिस्सा बड़े पैमाने पर मिट्टी के कटाव और तटबंध के टूटने के कारण अतिसंवेदनशील हो गया है, ऐसी स्थिति ने ऐतिहासिक वनस्पति उद्यान को बड़ी मुश्किल और खतरे में डाल दिया है। पत्र में कहा गया है कि पूर्वी हिस्से में उक्त वनस्पति उद्यान का काफी हिस्सा धीरे-धीरे नदी के नीचे जा रहा है और अगर इस तरह के बढ़ाव को जल्द से जल्द रोका नहीं जा सका, तो भविष्य में पूरा उद्यान प्रभावित हो सकता है।
कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पश्चिम बंगाल से होकर बहने वाली नदी के लगभग 520 किमी में से लगभग 150 किलोमीटर, जिसमें गंगा के दोनों किनारे शामिल हैं, अत्यधिक कटाव-प्रवण है और इसे तत्काल समाधान की आवश्यकता है।
उन्होंने बताया कि 2017 में, राज्य और केंद्रीय एजेंसियों की एक संयुक्त समिति ने घाटों और नदी के किनारों को बचाने के लिए लगभग 800 करोड़ रुपये के फंड का अनुरोध किया था, लेकिन केंद्र सरकार ने कहा कि कोई बजट नहीं है, इसलिए हम कोई व्यापक घाट बहाली परियोजना शुरू नहीं कर सकते। इन वर्षों में आवश्यक राशि बढ़कर 1000 करोड़ रुपये हो गई होगी, लेकिन हमारे पास इस काम के लिए पैसे नहीं हैं।
सुभाष दत्ता का दावा है कि कोलकाता पोर्ट अथॉरिटी ड्रेजिंग के बाद ड्रेज्ड सिल्ट को नदी के खंड से नहीं हटाती है, बल्कि इसे नदी के भीतर कुछ दूरी पर डिस्पोज करती है। इससे नदी के तल में असमानता उत्पन्न होती है। बंदरगाह के अधिकारी ने कहा कि हमारे पास ड्रेज्ड कचरे के निपटान के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र हैं, जो ड्रेज्ड बिंदुओं से काफी दूर हैं।
दत्ता ने दावा किया है कि इसके अलावा, नदी स्थानीय शहरी निकायों से पूरी तरह या आंशिक रूप से अनुपचारित सीवेज छोड़ने सहित विभिन्न स्रोतों से चौबीसों घंटे प्रदूषित होती रहती है।
जल निकासी और सीवरेज विशेषज्ञ तथा अखिल भारतीय स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान के पूर्व निदेशक अरुणाभ मजूमदार ने कहा कि पश्चिम बंगाल में गंगा को दूषित करने वाले कुल प्रदूषित प्रवाह भार का लगभग तीन-चौथाई शहरी क्षेत्रों से आ रहा है, ज्यादातर कोलकाता महानगर क्षेत्र के भीतर से। हमने लगभग 54 ऐसे प्रवाह देखे, जिनके माध्यम से प्रदूषित पानी लगभग एक दशक पहले भी नदी में आता था।
पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक विश्लेषण के अनुसार आदि गंगा इस समय सीवेज नहर की तरह प्रदूषित है, जिसमें कोई जलीय जीवन नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी पश्चिम बंगाल से होकर बहने वाली गंगा के कुछ हिस्सों की पहचान ‘गंभीर रूप से प्रदूषित’ के रूप में की है।
-सज डेस्क
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