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पांचवे दिन: किम में रात्रिसभा

आखिर सरकार साबरमती समारक पर प्रहार क्यों करना चाहती है? – आशा बोथरा


बारडोली से आगे चलकर यात्रा किम पहुंची तो रात हो गयी थी. वहां उपस्थित लोगों की भारी संख्या की मांग पर सभा जुड़ी तो शुरुआत राष्ट्रीय युवा संगठन के साथियों द्वारा गाये गीत “रुके न जो झुके न जो, दबे न जो मिटे न जो, हम वो इंकलाब हैं, जुर्म का जवाब हैं… से हुई, जिसके बाद उत्तम भाई ने उपस्थित लोगों से यात्रियों का परिचय कराया। उन्होंने कहा कि सरकार गांधी जी की विरासत को खत्म करने का काम कर रही है, जिसके विरोध में यह यात्रा लोगों से संवाद करने निकली है. यहां हम यात्रा का स्वागत करते हैं. मैं आनंद और गर्व महसूस कर रहा हूँ कि गुजरात के सभी गाँधीजन इस यात्रा के साथ हैं। गांधी के आश्रम की सादगी हर हाल में बनी रहनी चाहिए। गांधी जी के जीवन के अनुरूप हमें उनकी विरासत के लिए काम करना चाहिए।


किम एजूकेशन सोसाइटी में यात्रा संयोजक संजय सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि सेवाग्राम से साबरमती संदेश यात्रा लेकर हम गुजरात की धरती पर पहुँच गए है, गाँधीजी सेवाग्राम जाने से पहले साबरमती में थे. जब नमक सत्याग्रह की शुरुआत हुई, तब उन्होंने कहा कि जब तक स्वराज नही मिल जाएगा, मैं वापस नही आऊंगा. स्वराज तो मिला, लेकिन हमने उनको वापस नहीं आने दिया। दुनिया मे जिसको भी आज़ादी प्रिय होगी, उसे आश्रम की जरूरत रहेगी. नदी को अगर प्रवाह के साथ बहना है, शिक्षा का अधिकार यदि चाहिए, भूख मिटाना यदि जरूरी लगे, पर्यावरण का संरक्षण यदि जीवन के लिए जरूरी है, तो तय मानिए कि हमें गाँधीजी की जरूरत है। महात्मा गांधी के विचारों के साथ खिलवाड़ पहली बार नहीं हो रहा है. हम गाँधीजन यह मांग करते हैं कि गाँधीजी के आश्रमों से कोई छेड़छाड़ मत करिए, अगर आपको कुछ करना ही है और आपके पास जमीन न हो, तो हमसे बात करें. हम जमीन उपलब्ध कराएंगे. विनोबा ने हमें जमीन मांगना भी सिखाया है। हम गांधी के आश्रम को उजाड़ने नही देंगे।

कुमार प्रशांत ने कहा कि हवा ऐसी बनी है कि देश मे डर छाया हुआ है, लेकिन आप देख रहे हैं कि यहाँ महिलाएं भी हैं, युवा भी हैं और बुजुर्ग भी हैं. इसका मतलब है कि हम डरे नहीं हैं. हम थोड़ा चुप थे कि सरकार कुछ काम कर ले, लेकिन वे देश बनाने के जगह अपने को बनाने में लग गए हैं.  देश में इतना कुछ देखने को है, लेकिन लोग फिर भी गाँधीजी के आश्रम देखने आते हैं, क्योंकि वहां लोगों को सुकून मिलता है, इस आश्रम में जो लोग पैसा लगा रहे हैं, उससे उन्हें अपने दिमाग का इलाज कराना चाहिए, क्योंकि वह दूसरी तरफ चल रहा है, वह देश में सबकुछ नष्ट कर देना चाहते हैं. आप दिल्ली में ही देखिए, हमारी संसद के सामने एक बड़ी बिल्डिंग खड़ी कर दी गई है. इंडिया गेट, जहां लोग अपने आपसे मिलने जाते हैं, वह जगह ही खत्म कर दी गई है. यह इसलिए कि वे स्मृतियों को ही बिगड़ना चाह रहे हैं, क्योंकि इनके पास अपना कोई इतिहास नही है, तो इतिहास को विकृत करके इतिहास बनाने की कोशिश कर रहे हैं. साबरमती को भी वे इसीलिए भव्य बनाने की कोशिश में है ताकि कल जो उसको देखे और पूछे कि इसको किसने बनाया तो मोदी जी ने बनाया. गाँधी जी के शरीर को इन्होंने मारा, अब स्मृतियों को मारने की कोशिश कर रहे हैं। वे नहीं जानते कि दुनिया में जब तक बेहतर इंसान बनने की इच्छा बची रहेगी, तब तक गांधी नहीं मरेगा।

आशा बोथरा ने इस सभा में कहा कि साबरमती की गरिमा को लेकर हम चिंतित हैं कि सरकार क्यों इसमें पैसे लगाना चाहती है. यह पैसे गांधी के आश्रम में लगाने से बेहतर है कि गांधी के कामों में लगायें। हम गांधी और सरदार की धरती पर हैं और उनको याद करते हुए उनके रास्तों पर चलकर उनकी स्मृतियों को बचाने का काम करेंगे। राजेन्द्र सिंह ने कहा कि यह सरकार बीमार सरकार है, लेकिन हम बीमार नहीं हैं. 1200 करोड़ में कितने हॉस्पिटल, कितने स्कूल खोले जा सकते हैं, लेकिन उनको लोगों के लिए दवाई और पढ़ाई की चिंता नहीं है, उनको अपना इतिहास लिखने की जल्दी मची हुई है, लेकिन उनको पता नहीं है कि इतिहास बनाने पड़ते हैं, किसी के बनाये इतिहास पर परत चढ़ाने से इतिहास नहीं बन जाते.  अंत में उत्तम भाई ने सभी का आभार व्यक्त किया.

Co Editor Sarvodaya Jagat

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