उस दिन पटना में होते हुए भी मैं कितना विवश था कि जेपी के पास नहीं पहुंच सकता था। मैं जेल में बंद था। एक साथी कैदी के पास ट्रांजिस्टर था, उस पर सभी खबरें सुना करते थे। ट्रांजिस्टर की खबर से ही पता चला कि भारत के इतिहास में पहली बार किसी राजनीतिक प्रदर्शन को नियंत्रित करने के लिए पुलिस प्रशासन हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल कर रहा था। मैंने हेलीकॉप्टर को जेल के ऊपर से उड़ते हुए खुद देखा।
उस दिन मैं भी पटना में ही था, लेकिन मीसा के तहत बांकीपुर जेल में बंद था। इस तरह पटना में होते हुए भी विवश था। जेल के बाहर रह रह कर उठते शोर और पुलिस सायरन की आवाज से रोमांच का अनुभव हो रहा था। एक मीसाबंदी के पास ट्रांजिस्टर भी था। हम उस पर ख़बरें सुन रहे थे। खबरों से ही पता चला कि भारत के इतिहास में पहली बार किसी राजनीतिक प्रदर्शन को नियंत्रित करने के लिए पुलिस प्रशासन हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल कर रहा था। उस हेलीकॉप्टर को हमने जेल के ऊपर से उड़ते हुए भी देखा। जेल में बंद पटना के आंदोलनकारियों (जिनमें लालू प्रसाद, नरेंद्र सिंह और सुबोधकांत सहाय भी थे) को गेट पर ताजा सूचनाएं मिल रही थीं। इसी तरह हम तक भी समाचार पहुंच रहे थे। जेपी पर लाठी चलने की जानकारी भी शाम तक मिल गयी थी। हम सब का मन आक्रोश और अवसाद से भर गया था। उस रात जेल के अंदर बेचैनी और तनाव का माहौल था। जैसे भी हो, हम उस दिन पटना की हलचल के परोक्ष गवाह थे, यह हमारी यादों में ताजिंदगी खास बना रहेगा।
प्रसंगवश, किन्हीं कारणों से हम बेतिया से मोतिहारी, फिर हजारीबाग जेल होते हुए दो अक्टूबर को बांकीपुर पहुंचे थे। हाईकोर्ट के एडवाइजरी बोर्ड में हमारे मामलों की सुनवाई होनी थी। हजारीबाग से गौतम सागर राणा और उपेंद्र नाथ दास (वे भी बाद में विधायक बने। अब नहीं हैं।) भी साथ थे। हम बस से पटना पहुंचे। उन दोनों ने बांकीपुर में रहने से इनकार कर दिया। शायद फुलवारी शरीफ गये। हम दोनों तीन, चार और पांच अक्टूबर के बिहार बंद के समय वहीं थे। तीन अक्टूबर को जेल प्रशासन की अनुमति से रोड की तरफ के एक वार्ड की पहली मंजिल से बाहर की हलचल का नजारा देखा। वहीं से नारे लगा कर उस ऐतिहासिक बंदी में कुछ योगदान करने का संतोष भी मिला, लेकिन पटना के कुछ चंचल युवा आंदोलनकारी बंदियों द्वारा शोर मचाने व गाली-गलौज करने के कारण अगले दिन छत पर जाने की अनुमति रद्द हो गयी।
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