कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने भारत को एकदम तबाह कर दिया है. इस दौरान हर किसी ने दर्द, विपत्ति और पीड़ा की कहानियां देखी-सुनी हैं. ऐसे आंकड़े भी हैं, जो इन कहानियों से जुड़े हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कोविड के कारण करीब तीन लाख मौतें हुई. द इकोनॉमिस्ट मैगजीन ने अपने स्तर पर ‘अतिरिक्त मौतों के मॉडल’ का इस्तेमाल करते हुए अनुमान लगाया है कि केवल इसी साल यानी 2021 में भारत में कोविड-19 के कारण लगभग 10 लाख मौतें हुई हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स का कहना है कि उसने ‘दर्जनों विशेषज्ञों’ से परामर्श किया है और अनुमान लगाया है कि भारत में कोविड-19 के कारण 16 लाख मौतें हुई होंगी. देश में महामारी के वास्तविक असर का अनुमान लगाने की अन्य कोशिशें भी जारी हैं. उन भारतीयों की सटीक संख्या पता लगा पाना काफी मुश्किल है, जिन्होंने नोवेल कोरोना वायरस के कारण दम तोड़ दिया है. दरअसल, किसी को भी इसका अंदाजा नहीं है कि भारतीयों और उनके परिवारों को कोविड ने वास्तव में कितनी क्षति पहुंचाई है.
कोविड-19 का असर लाखों भारतीयों के लिए एक व्यक्तिगत कहानी है. उन्होंने अपने परिवार या अपने गांव में किसी-न-किसी को कोविड के कारण खो दिया है. भारत में कोविड ने व्यक्तिगत स्तर पर परिवारों को किस हद तक प्रभावित किया है? ‘प्रश्नम’ ने इसी बात का पता लगाने का फैसला किया. हमने छह बड़े हिंदी भाषी राज्यों को चुना. इन छह राज्यों के 1,256 विधानसभा क्षेत्रों में से हमने 967 ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों (जनगणना में निर्धारित) की पहचान की. प्रश्नम ने साइंटिफिक, रैंडम और स्वीकृत सैंपलिंग टेक्नीक का इस्तेमाल करते हुए इन निर्वाचन क्षेत्रों के कई गांवों के लोगों को सर्वे के लिए चुना.
उत्तरदाता प्रोफाइल-14,881 वयस्क भारतीयों ने इस सर्वेक्षण के लिए जवाब दिया. वे छह राज्यों—बिहार, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के 229 जिलों से संबंधित थे. इनमें 70 फीसदी पुरुष और 30 फीसदी महिलाएं थीं. 52 प्रतिशत युवा (40 वर्ष से कम), 36 प्रतिशत प्रौढ़ आयु वर्ग और 12 प्रतिशत बुजुर्ग (60 वर्ष से ऊपर) इस सर्वे में शामिल हुए.
हमने इन लोगों से दो सवाल पूछे.
पहला सवाल– क्या आपने पिछले तीन महीनों में अपने परिवार या गांव में किसी को कोरोना वायरस के कारण खो दिया है?
दूसरा सवाल– आपको क्या लगता है कि आपके नुकसान के लिए कौन जिम्मेदार है? (केवल उन्हीं लोगों से पूछा गया जिन्होंने कहा कि उन्होंने किसी को गंवाया है)
भारत में एंटीबॉडी की व्यापकता का अनुमान लगाने के लिए सीएसआईआर की तरफ से किए जाने वाले कुछ सीरो सर्वेक्षणों में देश भर के 10,000 लोगों के सैंपल साइज का उपयोग किया गया था. अन्य देशों में भी इसी तरह के सर्वेक्षणों में पूरे देश के लिए दो से तीन हजार लोगों का सैंपल साइज रखा गया. प्रश्नम का सर्वे भारत में हुआ एक अनूठा सर्वेक्षण है, जिसमें सिर्फ छह राज्यों में लगभग 15,000 लोगों का सैंपल साइज रखा गया और हर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र को कवर किया गया.
सर्वेक्षण में शामिल 17 फीसदी लोगों ने बताया कि उन्होंने कोविड- 19 के कारण किसी न किसी को गंवा दिया है. इन छह राज्यों में कुल मिलाकर करीब 10 करोड़ परिवार हैं. सर्वेक्षण बताता है कि इन परिवारों के हर छह में से कम से कम एक व्यक्ति ने कोविड- 19 के कारण किसी न किसी को खोया है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि 1.7 करोड़ लोग मारे गए हैं. सांख्यिकी के लिहाज से जब इन नतीजों की गणना पूरी आबादी के हिसाब से की जाती है तो आंकड़े ओवरलैप होंगे और इनका दोहराव होगा. ऐसे में कोई इस नतीजे पर नहीं पहुंच सकता कि छह राज्यों में 1.7 करोड़ लोग मारे गए हैं.
इन निष्कर्षों को मार्च 2021 में शिकागो यूनिवर्सिटी की तरफ से अमेरिका में किए गए एक ऐसे ही सर्वेक्षण के संदर्भ में देखा जा सकता है, जो यह बताता है कि 19 प्रतिशत अमेरिकियों के करीबी दोस्तों या रिश्तेदारों की मौत कोविड- 19 के कारण हुई है. अमेरिकी सर्वे के नतीजे भारत में किए गए सर्वे से काफी मिलते-जुलते पाए गये हैं, करीब इतने ही प्रतिशत लोगों का कहना है कि उन्होंने अपने परिवार में किसी न किसी को खोया है. इसका अर्थ यह हुआ कि यदि कोई यह मान लेता है कि अमेरिका ने भारत की तुलना में अधिक सटीक तौर पर कोविड- 19 मौतों का आंकड़ा दर्ज किया है तो भारत में सही कोविड मृत्यु दर अमेरिका के समान ही होनी चाहिए.
अमेरिका में प्रति 10 लाख लोगों पर कोविड मृत्यु दर 1,800 है. भारत में प्रति 10 लाख लोगों पर मृत्यु दर 230 है. यदि कोई भारत के लिए प्रति 10 लाख लोगों पर अमेरिका की मृत्यु दर के हिसाब से अनुमान लगाए तो भारत में कोविड- 19 मौतों का अनुमानित आंकड़ा 25 लाख के करीब होगा. दिलचस्प बात यह है कि लगभग हर राज्य ने करीब-करीब समान आंकड़ों की सूचना दी है, सिर्फ मध्य प्रदेश को छोड़कर, जहां आंकड़ा कुछ ज्यादा नजर आ रहा है.
मोदी सरकार और ‘नियति’ जिम्मेदार
कोविड- 19 के कारण जिन लोगों को निजी तौर पर क्षति हुई है, उन्होंने इसके लिए मुख्यत: नरेंद्र मोदी सरकार को जिम्मेदार माना. लेकिन लगभग इतनी ही संख्या में लोगों ने इसे अपनी नियति बताया. अलग-अलग राज्यों में प्रतिक्रियाओं में खासा अंतर दिखा. लेकिन मोटे तौर पर इस पूरी तबाही के लिए राज्य सरकारों को उतना दोषी नहीं माना गया, जितना केंद्र सरकार या ‘नियति’ को जिम्मेदार ठहराया गया.
उत्तर प्रदेश के लोगों की नजर में उनको पहुंची क्षति के लिए मोदी सरकार जिम्मेदार है, जबकि हरियाणा और राजस्थान के लोग इसकी वजह अपने दुर्भाग्य को मानते हैं. पारदर्शिता और अखंडता के अपने सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए प्रश्नम ने विश्लेषकों और शोधकर्ताओं की तरफ से सत्यापन और आगे विश्लेषण के लिए उन्हें इस सर्वेक्षण का पूरा रॉ डाटा उपलब्ध कराया है.
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