समाजवादी आंदोलन के जनक डॉ राम मनोहर लोहिया ने राम और रामायण मेले के आयोजन को लेकर सर्वाधिक लेख लिखे हैं। डॉक्टर लोहिया यूँ तो सभी भाषाओं में उपलब्ध रामायण के प्रशंसक थे, पर उनका मन तुलसीकृत रामचरित मानस में रमता था। तुलसी की रामायण में आनंद के साथ-साथ धर्म भी जुड़ा हुआ है। तुलसी की कविता से रोज की अनगिनत उक्तियां और कहावतें निकलती है, जो आदमी को टिकाती हैं और सीधा रखती हैं। तुलसी एक रक्षक कवि हैं। जब चारों तरफ से अभेद्य हमले हो रहे हों तो मनुष्य को बचाना, थामना, टेकी देना शायद ही तुलसी से बढ़कर कोई कर सकता हो। वाल्मीकि एवं दूसरी अन्य राम कथाओं में प्रेम को इतनी बड़ी जगह नहीं मिली, जितनी तुलसी की रामायण में। अपने प्रसिद्ध लेख ‘राम कृष्ण और शिव’ के समापन में डॉक्टर लोहिया लिखते हैं- ‘हे भारत माता! हमें शिव का अर्थ दो, कृष्ण का हृदय दो और राम का कर्म व वचन दो’।
लोहिया कहते हैं कि रामायण में बहुत सारा कूड़ा करकट भी है और हीरा मोती भी। कूड़ा करकट बुहारने के चक्कर में हीरा मोती भी नहीं बुहार देना चाहिए और हीरा मोती खाने के चक्कर में कूड़ा करकट भी नहीं खा लेना चाहिए।
-शिवानन्द
सर्वोदय जगत के राम विशेषांक के संपादकीय ‘सबके राम’ में राम के बारे में गहन विश्लेषण पढ़ने को मिला। कबीर ने गंभीरता से चार राम का उल्लेख करते हुए कहा कि एक दशरथ के बेटे राम हैं, दूसरे घट-घट में बैठे राम हैं, तीसरे सकल पसारा राम हैं और चौथे सबसे न्यारे राम हैं। ये उपमाएं भारत में प्रत्येक आदमी के दिल में बैठी हुई हैं। इसलिए महात्मा गांधी और डॉ राम मनोहर लोहिया ने जनमानस की इच्छा को सम्मान दिया, पंरतु बाबरी मस्जिद और राम मंदिर गिरा देने बाद संपूर्ण भारत के मन नफरत बसाने में भाजपा सफल रही। आज जो भी राम का नाम लेता है, भाजपा कहती है कि अभी तक सो रहे थे क्या? ऐसा कहना उन्हें सूट करता है। अभी वातावरण आंख मलने लगा है, अगले चुनाव में क्या होता है, यह सोचना होगा और लोगों के बीच जाना होगा।
-कुंजबिहारी
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