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महात्मा गांधी की स्मृति में

किसी विशिष्ट सत्कार्य को संपन्न करने के लिए इस पृथ्वी पर अवतरित होने वाले सभी महापुरुषों के जीवन के साथ कोई न कोई सांकेतिक अर्थ जुड़ा रहता है। भारतीय एकता की खातिर नाट्यमय रीति से हुई गांधी जी की मृत्यु ने प्रत्येक महाद्वीप में आपसी फूट और कलहों से विदीर्ण हुए संसार को उनका संदेश और भी अधिक स्पष्ट कर सुनाया है। उन्होंने एक भविष्यवाणी के रूप में वह संदेश दिया है –
‘‘मनुष्यों के बीच अहिंसा का पदार्पण हो गया है और अब यह यहीं रहेगी। यह विश्वशांति की अग्रदूत है।’’

‘‘वे सच्चे अर्थ में राष्ट्रपिता थे और एक पागल ने उनकी हत्या कर दी। कोटि-कोटि नर-नारी शोक में डूबे हैं, क्योंकि दीपक बुझ गया है… इस देश में जो दीपक जगमगा रहा था, वह कोई साधारण दीपक नहीं था। हजार वर्षों तक उस दीपक का प्रकाश इस देश में दिखता रहेगा और सारा संसार उसे देखेगा।’’ ये शब्द भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में महात्मा गांधी की हत्या हो जाने के थोड़ी ही देर बाद कहे थे।


पांच ही महीने पहले भारत ने शांतिपूर्ण रीति से अपनी स्वतंत्रता प्राप्त कर ली थी। 78 वर्षीय गांधीजी का कार्य पूरा हो गया था। उन्हें अपना अंत निकट होने का आभास हो गया था। उस दु:खद घटना के दिन प्रात: ही उन्होंने अपनी पोती से कहा था : ‘‘आभा, सारे महत्त्वपूर्ण कागजों को आज मेरे पास ले आओ। मुझे आज ही उन सब का उत्तर देना पड़ेगा। कल शायद कभी न आये।’’ अपने लेखों में अनेक स्थानों पर गांधी जी ने अपनी अंतिम नियति के संकेत दे दिये थे।


उपवास से क्षीण हुई काया में तीन गोलियां उतार दी गयी थीं। धीरे-धीरे भूमि पर ढहते हुए महात्मा जी ने हाथ ऊपर की ओर उठाये और अपनी ओर से क्षमा प्रदान कर दी। अपने जीवन के सभी क्षेत्रों में वे भोले कलाकार तो थे ही, मृत्यु के क्षणों में वे महानतम कलाकार बन गये। उनके नि:स्वार्थी जीवन के सारे त्यागों ने ही प्रेम की वह अंतिम अभिव्यक्ति संभव बना दी।


गांधीजी को अपनी श्रद्धांजलि अपर्ण करते हुए अल्बर्ट आइनस्टाइन ने लिखा, ‘‘आने वाली पीढ़ियां शायद ही इस बात पर विश्वास कर पायेंगी कि इनके समान कोई पुरुष कभी इस धरती पर रक्त-मांस के शरीर में चलता था।’’ रोम में वैटिकन से अपने संदेश में पोप ने कहा, ‘‘महात्मा गांधी की हत्या के कारण यहां भारी शोक छा गया है। हम गांधी को ईसाई मूल्यों का देवदूत मानते हैं।’’
किसी विशिष्ट सत्कार्य को संपन्न करने के लिए इस पृथ्वी पर अवतरित होने वाले सभी महापुरुषों के जीवन के साथ कोई न कोई सांकेतिक अर्थ जुड़ा रहता है। भारतीय एकता की खातिर नाट्यमय रीति से हुई गांधी जी की मृत्यु ने प्रत्येक महाद्वीप में आपसी फूट और कलहों से विदीर्ण हुए संसार को उनका संदेश और भी अधिक स्पष्ट कर सुनाया है। उन्होंने एक भविष्यवाणी के रूप में वह संदेश दिया है – ‘‘मनुष्यों के बीच अहिंसा का पदार्पण हो गया है और अब यह यहीं रहेगी। यह विश्वशांति की अग्रदूत है।’’

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