2 दिसंबर 2022 को महिला उत्पीड़न व लैंगिक मुद्दों पर जागरूकता एवं संवेदनशीलता के प्रसार हेतु हरिश्चन्द्र महाविद्यालय, वाराणसी में दखल संगठन द्वारा संवाद का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में विद्यार्थियों के बीच ‘घर की मुर्गी’ नामक लघु फिल्म का प्रदर्शन किया गया। करीब 19 मिनट की यह फिल्म समाज के पारम्परिक रूढ़िवादी ढाँचे पर सोचने को मजबूर करती है। फ़िल्म सवाल पैदा करती है कि घर में काम करने वाली गृहणी क्या है? क्या वह घर की मुर्गी है? जिसके श्रम की कोई कद्र नहीं करता।
यह परिवार देश का कोई भी परिवार हो सकता है। बच्चों को कभी उनकी पसंद का तो कभी उनकी नापसंद का नाश्ता खिलाने वाली गृहणी स्कूल की वैन के लिए भागती है। दूध लेने के लिए भागती है। सास की मालिश करने भागती है। ससुर को टहलाने के लिए भागती है। फिर रात को बच्चों का होमवर्क करवाने और पति के ताने सुनने के बाद उसे सोने का मौका मिलता है. यही नहीं, इस सबके बीच वह अपना छोटा सा ब्यूटी पार्लर चलाकर अतिरिक्त आमदनी भी घर लाती है। लेकिन, किसी को उसकी कद्र नहीं, सब उसे घर की मुर्गी समझते हैं।
फिल्म एक महिला की खोई हुई अहमियत को अंत में उस बल के साथ पेश करती है, जिसकी चाह हर उस महिला को होती है, जो घर को बुनती-संजोती है। फिल्म के बाद खुली चर्चा में छात्र छात्राओं ने अपने साझा किये. एक छात्रा ने बताया कि हम अक्सर पितृसत्ता, पितृसत्ता सुनते थे, लेकिन उसका अर्थ नही समझ पाते थे। आज के इस आयोजन से पितृसत्तात्मक सोच होती क्या है, यह समझने को मिला। यह व्यवस्था महिलाओं को घर की मुर्गी ही समझती है। एक छात्रा ने कहा कि यह व्यवस्था तो सदियों से चली आ रही है। इसमें से निकलने का रास्ता क्या है? संवाद कार्यक्रम की ही सहभागी एक अन्य छात्रा ने कहा कि प्रश्न तो जटिल है, लेकिन शायद शिक्षा और स्वावलम्बन कोई रास्ता निकाल सके, जो भेदभाव हटाकर समतापूर्ण और शांतिमूलक समाज बनाने में मदद कर सके।
कार्यक्रम में शामिल सहभागियों ने एक दूसरे से ये वादा किया कि हम सभी मिलकर समाज की इन रूढ़ियों को तोड़ेंगे। कार्यशाला में विभाग की प्रोफेसर अनिता, डॉ अनुराधा आदि शिक्षिकाएं व विभाग के विद्यार्थी काफी संख्या में शामिल रहे। कार्यक्रम का संचालन विजयेता ने किया। कार्यक्रम में शालिनी, मैत्री, काजल, शिवांगी, रैनी, धीरज, दीपक आदि की प्रमुख भागीदारी रही।
-दख़ल संगठन
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