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मान्यवर! यह आश्रम है, महल नहीं!

महात्मा ने अपने जीवन में फिनिक्स, टॉल्सटॉय, कोचरब से लेकर साबरमती और सेवाग्राम तक कई आश्रम बनाए। ये आश्रम उदात्त मानवीय मूल्यों- सत्य, अहिंसा, प्रेम, स्वावलंबन, खादी, छुआछूत निवारण, संपत्ति-विसर्जन और सादगी के प्रयोग स्थल रहे हैं। इन मूल्यों से वास्ता रखने वाले और न रखने वाले, सभी यहां आकर इसे महसूस करते हैं और प्रेरित भी होते हैं।

हिंदुस्तान के बादशाह अकबर का रुतबा था; बैरागी कवि कुंभनदास को राज दरबार में तलब किया गया। राजाज्ञा का अनिच्छा से पालन करते हुए दरबार में गए। राजसी ठसक के साथ उनकी आवभगत हुई, पर सत्ता के टुकड़ों और चांदी की चमक से विरक्त व्यक्ति के लिए फर्जी रवायतों का क्या मतलब! बादशाह की दिखावटी खिदमत से खिन्न, परेशान कवि ने इस कवायद की धज्जियां उड़ाते हुए लिखा –
संतन को कहा सीकरी सों काम?

साबरमती आश्रम में स्थित हृदयकुंज के इसी िहस्से में गांधी जी का कार्यालय था। यह कार्यालय, यह चरखा और यह सादगी दुनिया के लिए प्रेरणा का केन्द्र है। लोग यह देखकर आश्चर्य में पड़ जाते हैं कि इतनी सादगी और इतने कम साधनों से कैसे महात्मा गांधी ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला रहे थे।


कुंभनदास तो गए, पर बादशाहों की अकड़, चलन और फितरत में कोई फर्क नहीं आया। लगभग 600 वर्ष के बाद फिर लुटियन्स का प्रभु, संत के आहाते में घुसकर अठखेलियां करना चाहता है, अपना रौब दिखाना चाहता है। हां, साबरमती आश्रम की झोपड़ी को, बादशाह महल की भव्यता देना चाहता है। क्योंकि संत की झोपड़ी हमेशा इन महलों की आंखों की किरकिरी बनी रहती है; वह इस किरकिरी को मिटा देना चाहता है। हालांकि ये झोपड़ियां अपनी संपूर्ण विनम्रता और दृढ़ता के साथ जनमानस के बीच कायम रहती हैं।


महात्मा ने अपने जीवन में फिनिक्स, टॉल्सटॉय, कोचरब से लेकर साबरमती और सेवाग्राम तक कई आश्रम बनाए। ये आश्रम उदात्त मानवीय मूल्यों- सत्य, अहिंसा, प्रेम, स्वावलंबन, खादी, छुआछूत निवारण, संपत्ति-विसर्जन और सादगी के प्रयोग स्थल रहे हैं। इन मूल्यों से वास्ता रखने वाले और न रखने वाले, सभी यहां आकर इसे महसूस करते हैं और प्रेरित भी होते हैं। सत्ता को ये मूल्य, ये आदर्श हमेशा नागवार गुजरे हैं। वे इन केंद्रों को समाप्त कर देना चाहते हैं। वे इन्हें मिटा तो नहीं सकते, तो विरूपित करने की कोशिश करते रहते हैं। जालियांवाला बाग के साथ ऐसा ही हादसा हो गया। शहादत को नए पैक में इस इल्म के साथ पेश किया गया है कि दुख व क्षोभ का एहसास ही जाता रहे। राजघाट, वाराणसी के साधना केंद्र को दबोचने की प्रशासनिक कोशिश जारी है। और अब नजर साबरमती पर है।


सत्ता अपनी भव्यता से सादगी की दिव्यता को ढंक देने का इरादा रखती है। यह राजदम्भ है, मान्यवर! हम सत्ता के इस हौसले और हिमाकत को अस्वीकार करते हैं और बस विवेक की कामना करते हैं।

-अरिवन्द अंजुम

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