9 अगस्त 2022 को भारत छोड़ो आंदोलन की 80 वीं वर्षगांठ है। यह जानना बेहद महत्वपूर्ण है कि ‘भारत छोड़ो’ का आइडिया सबसे पहले एक मुस्लिम कांग्रेस नेता यूसुफ मेहर अली के मन की उपज था, जिसे गांधी के नेतृत्व में आज़ादी के अंतिम और निर्णायक आंदोलन के मन्त्र के रूप में अपनाया गया। उस नेता के धर्म का उल्लेख करने के लिए मुझे खेद है, लेकिन आज की विभाजनकारी राजनीति में यह जोर देकर कहना जरूरी लगता है. 8 अगस्त, 1942 को मध्य मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो का आह्वान किया, जिसने पूरे देश के लोगों में बिजली भर दी। उन्होंने कहा कि मैं आपको मंत्र देता हूं- करो या मरो। हम या तो देश को स्वतंत्र करेंगे या इस प्रयास में मारे जायेंगे, हम अपनी गुलामी देखने रहने के लिए जीवित नहीं रहेंगे।
महात्मा गांधी के प्रपौत्र और विचारक तुषार गांधी ने 3 अगस्त को ‘समकालीन समय में एमके गांधी’ विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए इन ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख किया। इस संगोष्ठी का आयोजन महाराजा कॉलेज, एर्नाकुलम के इतिहास, पुरातत्व और संस्कृति अध्ययन विभाग द्वारा गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की इस कॉलेज की यात्रा के सौ साल और महात्मा गांधी की इस कॉलेज की यात्रा के 95 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में किया गया था। उन्होंने उपस्थित शिक्षकों, गांधीवादी कार्यकर्ताओं, शोधकर्ताओं और छात्र छात्राओं को याद दिलाया कि ‘नफरत की राजनीति’ आज हमारे देश के सामने उपस्थित प्रमुख मुद्दों में से एक है। उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन की 80 वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर ‘नफरत की राजनीति छोड़ो’ का आह्वान किया।
समाज के हर क्षेत्र में नफरत फैल रही है, लेकिन समाज इस तरह से प्रतिक्रिया दे रहा है जैसे कुछ हुआ ही नहीं है. नफरत की यह राजनीति हमारे समाज को कैंसर की तरह खोखला कर रही है। तुषार गांधी ने याद दिलाया कि एक समाज के तौर पर यह हमारे समग्र विनाश की दिशा है। नफरत की ताकतों को हराने के लिए हमें एक दूसरे को पहचानना, समझना और प्यार करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जो वास्तव में देशभक्त नहीं हैं, उन्हें ही इस तरह के प्रचार की जरूरत पडती है कि वे देशभक्त हैं। उन्होंने कहा कि जब आप वास्तव में देशभक्त होते हैं, तो हर कोई आपके काम और विचार से आपको पहचानता है। नफरत से भरी देश की इस राजनीति ने समाज में असमानताएं पैदा की हैं, आज के हालात आज़ादी के पहले के हालात से भी बुरे हैं। इस बार 15 अगस्त को याद रखें कि हम केवल आंशिक स्वतंत्रता का जश्न मना रहे हैं। याद रखें कि नफरत फैलाने वाले देशभक्ति का केवल प्रदर्शन कर रहे हैं। दुर्भाग्य से आज देशभक्ति भी कर्मकांडों और प्रतीकों के संघर्ष में उलझकर रह गई है। देशभक्त के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिए आप अपने घर में झंडा जरूर फहराएं, लेकिन देशभक्ति को महज प्रचार में बदलने की मौजूदा प्रवृत्ति से खुद को अलग रखें। उन्होंने कहा कि हाथ से काता हुआ और हाथ से बुना हुआ खादी का राष्ट्रीय ध्वज ही स्वतंत्रता और देशभक्ति का प्रतीक है। इसे पॉलिएस्टर मशीन से बने झंडे से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। उन्होंने आशंका व्यक्त की कि जब तिरंगे को सोशल मीडिया पर प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, तो उसकी पवित्रता खत्म हो जाएगी। उन्होंने छात्रों से बड़े पैमाने पर गरीबी, हिंसा, अत्याचार और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ लड़ने का आग्रह किया।
इसके बाद जमनालाल बजाज मेमोरियल लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. सिबी के जोसेफ ने भी अपने विचार रखे. उन्होंने पूरे देश में हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि दुनिया अभी भी यूक्रेन और रूस का युद्ध देख रही है। यह अंतहीन और दिशाहीन हिंसा का दौर न जाने दुनिया को कहाँ ले जाकर छोड़ेगा. आज का यह वैश्विक वातावरण फिर से गांधी की ओर देखने को मजबूर करता है। उन्होंने बताया कि हम भारत की आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पॉलिएस्टर ध्वज के साथ मना रहे हैं। गांधी ने स्पष्ट कहा था कि वे उस ध्वज को सलामी देने से इंकार कर देंगे, जो खादी से नहीं बना होगा, चाहे वह कितना भी कलात्मक हो। उन्होंने कहा कि जरूरत केवल नफरत को छोड़ने की नहीं, बल्कि एक-दूसरे से प्यार करने की भी है। यह संकल्प हमें भारत छोड़ो आंदोलन की 80 वीं वर्षगांठ के अवसर पर लेना चाहिए।
इसके बाद सवाल-जवाब का जीवंत सत्र हुआ। कॉलेज के प्राचार्य डॉ वीएसजॉय ने समारोह की अध्यक्षता की डॉ विनोद कुमार कल्लोलिकल ने सभी का स्वागत किया और डॉ शीबा केए ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
-सिबी के जोसेफ
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