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नहीं रहे नचिकेता देसाई

श्रद्धांजलि

नचिकेता देसाई

लेखक और पत्रकार नचिकेता देसाई का 2 फरवरी को अहमदाबाद में उनके अख़बार नगर स्थित आवास पर निधन हो गया। वह 72 वर्ष के थे। उनके अधिकांश दोस्त उन्हें प्यार से एनडी कहकर बुलाते थे। कहना न होगा कि वे स्वतंत्रता सेनानियों के उस प्रमुख परिवार से ताल्लुक रखते थे, जिनमें उनके दादा महादेव भाई देसाई और उनके पिता नारायण भाई देसाई की ऐतिहासिक विरासत शामिल है।

उनकी नानी मालती चौधरी संविधान सभा की 15 महिलाओं में शामिल थीं तथा उनके नाना नवकृष्ण चौधरी स्वतंत्रता के बाद ओड़िशा के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। गांधीवादी आदर्शों में ढले इन दोनों ने न केवल ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ, बल्कि सामंती शासकों और शोषणवादी ताकतों के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी।

1973 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर एनडी तरुण शांति सेना में शामिल हो गए। उन्होंने ग्रीक और तुर्की शरणार्थियों के पुनर्वास के काम में संयुक्त राष्ट्र समर्थित परियोजना के लिए साइप्रस में काम किया। उन्होंने भारत-बांग्लादेश सीमा पर शरणार्थी शिविरों में राहत कार्यों के लिए भी स्वेच्छा से काम किया। आपातकाल के दौरान उन्होंने तीन अन्य साथियों के साथ रणभेरी नामक एक भूमिगत बुलेटिन निकाला। नचिकेता देसाई ने 1978 में द इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक स्ट्रिंगर और एक पत्रकार के रूप में अपना करियर शुरू किया तथा 40 वर्षों के अपने पत्रकारिता कैरियर में हिम्मत वीकली, यूएनआई, द टेलीग्राफ, द इंडिपेंडेंट, ईटीवी न्यूज़टाइम, इंडिया अब्रॉड न्यूज़ सर्विस और दैनिक भास्कर के साथ काम किया।
अंग्रेजी, हिंदी और गुजराती में प्रवीण एनडी ओड़िया, बंगाली और भोजपुरी भी बोल और पढ़ सकते थे तथा मराठी समझ सकते थे। गुजरात, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में उनकी तीखी रिपोर्टिंग और लोकहित की उनकी कहानियों के लिए उन्हें उच्चस्तरीय सम्मान मिले।

नचिकेता देसाई कहा करते थे कि वे अपने दादा और पिता के जीवन में गांधी को काफी देर से खोज पाए। वे कहते थे कि मेरे लिए महादेव भाई देसाई सिर्फ मेरे दादाजी थे। वे 25 वर्षों तक महात्मा गांधी के सचिव रहे, इसके लिए मुझे गर्व होता है। अपने स्कूल के दिनों में मुझे इस बात पर भी गर्व होता था कि दादाजी ने गांधीजी की आत्मकथा माई एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रूथ का गुजराती से अंग्रेजी में अनुवाद किया था।

अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने आज़ादी के आंदोलन और देश के इतिहास के बारे में बढ़ते दक्षिणपंथी प्रचार का जोरदार मुकाबला किया। वे इस बात से बहुत व्यथित रहते थे कि वर्तमान सरकार हमारे इतिहास द्वारा स्थापित आदर्शों से देश को दूर ले जा रही है।

उन्होंने जीवन के बाद के वर्षों में एक स्वतंत्र पत्रकार और अनुवादक के रूप में काम करने को वरीयता दी। वे एक कार्यकर्ता के रूप में राज्य के दमन का विरोध करने से कभी पीछे नहीं हटे। दिसंबर 2019 में सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान उसके विरोध में वे साबरमती आश्रम के बाहर उपवास पर भी बैठे। उनके परिवार में उनकी पत्नी रत्ना देसाई और दो बच्चे हैं।

-सर्वोदय जगत डेस्क

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