लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रख्यात विद्वान प्रोफेसर हेराल्ड लास्की के प्रिय शिष्यों में रहे पंडित नेहरू ने अपने प्रथम उद्बोधन में ही हर भारतीय को नया सबेरा और नया विहान लाने का भरोसा दिया। नवस्वाधीन भारत में चारों तरफ़ भुखमरी, गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा और गंदगी पसरी पड़ी थी, देश के सामने अनगिनत समस्याएं सुरसा की तरह मुंह बाए खडी थी। इन बहुविवीध समस्याओं के समाधान के साथ एक स्वावलंबी और सशक्त भारत बनाने की चुनौती स्वाधीनता के उपरांत बनने वाली प्रथम सरकार के समक्ष थी। आम बोलचाल और भाषण में साहित्यिक शैली और लहजे वाले मूलतः विज्ञान के विद्यार्थी रहे पंडित जवाहरलाल नेहरू विकास के विज्ञान और मर्म को बहुत अच्छी तरह समझते थे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण और अद्भुत दूरदर्शिता का परिचय देते हुए उन्होंने भारत के पुनर्निर्माण और विकास के लिए विविध आधारभूत संस्थानों की आधारशिला रखी। स्वाधीनता के उपरांत नेहरू ने देश के पुनर्निर्माण और विकास के लिए जिन-जिन संस्थाओं को स्थापित किया और जिन-जिन योजनाओं, परियोजनाओं को संचालित और क्रियान्वित किया, उनकी गुणवत्ता, महत्ता और भूमिका इस दौर में भी बरकरार है। शाही अंदाज में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पढे लिखे नेहरू ने अपने कुल महज सत्रह वर्षीय शासन काल में एक भूखे, नंगे, अशिक्षित और आर्थिक रूप कंगाल हो चुके देश को हर क्षेत्र में मजबूती से अपने पैरों पर खड़ा होने की ताकत दी और वैश्विक रंगमंच पर भारत को बहुआयामी प्रतिस्पर्धा के लायक बना दिया। उनकी दूरदर्शितापूर्ण नीतियों और निर्णयों के फलस्वरूप यह देश तरक्की और विकास की बुलंदियों के अनगिनत आसमान स्पर्श करने के फिर मचलने लगा.
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक तथा एनी बेसेंट द्वारा संचालित होमरूल लीग के सम्पर्क में आकर अपनी राजनीतिक पारी आरम्भ करने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अंग्रेजों की निर्मम, निर्लज्ज लूट-खसोट से जर्जरित हो चुके भारत के पुनर्निर्माण, विकास और बंटवारे के जख्म से बुरी तरह घायल भारतीयता के दर्द पर मरहम लगाने के लिए कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। स्वाधीन भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री के रूप में लाल किले की प्राचीर से दिये गये प्रथम उद्बोधन में जर्जर भारत के पुनर्निर्माण और विकास की उनकी तड़प और इच्छाशक्ति साफ-साफ झलकती है। अर्द्धरात्रि को जब पूरी दुनिया सो रही थी, तब भारत की आजादी की उद्घोषणा करते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कहा था कि, “हर आंख से हर आंसू का हर कतरा पोंछा जायेगा।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के सच्चे, अग्रणी और उत्साही सत्याग्रही होने के कारण पंडित नेहरू के हृदय में उच्चकोटि की देशभक्ति के साथ-साथ सर्वोच्च मानवतावादी मूल्यों में गहरी आस्था और निष्ठा थी। इसलिए वह अंतिम कतार में खड़े हर भारतीय के उत्थान के लिए आजीवन प्रयत्नशील रहे। नगरीय परिवेश में पले बढ़े शहरी मिजाज के पंडित नेहरू के मन में महात्मा गाँधी के प्रभाव और बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में उत्तर प्रदेश में होने वाले किसान आंदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी के चलते आम जनमानस की भावनाओं और आंकाक्षाओ के प्रति सहृदयता और ग्रामीण भारत के प्रति अनुराग पैदा कर दिया। इस प्रभाव के फलस्वरूप नेहरू के अन्दर यह स्पष्ट समझदारी विकसित हो गई कि ग्रामीण गणतंत्र और ग्रामीण अर्थतंत्र को मजबूत किए बिना मजबूत भारत का निर्माण नहीं किया जा सकता है। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रख्यात विद्वान प्रोफेसर हेराल्ड लास्की के प्रिय शिष्यों में रहे पंडित नेहरू ने अपने प्रथम उद्बोधन में ही हर भारतीय को नया सबेरा और नया विहान लाने का भरोसा दिया। नवस्वाधीन भारत में चारों तरफ़ भुखमरी, गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा और गंदगी पसरी पड़ी थी, देश के सामने अनगिनत समस्याएं सुरसा की तरह मुंह बाए खडी थी। इन बहुविवीध समस्याओं के समाधान के साथ एक स्वावलंबी और सशक्त भारत बनाने की चुनौती स्वाधीनता के उपरांत बनने वाली प्रथम सरकार के समक्ष थी। आम बोलचाल और भाषण में साहित्यिक शैली और लहजे वाले मूलतः विज्ञान के विद्यार्थी रहे पंडित जवाहरलाल नेहरू विकास के विज्ञान और मर्म को बहुत अच्छी तरह समझते थे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण और अद्भुत दूरदर्शिता का परिचय देते हुए उन्होंने भारत के पुनर्निर्माण और विकास के लिए विविध आधारभूत संस्थानों की आधारशिला रखी। स्वाधीनता के उपरांत नेहरू ने देश के पुनर्निर्माण और विकास के लिए जिन-जिन संस्थाओं को स्थापित किया और जिन-जिन योजनाओं, परियोजनाओं को संचालित और क्रियान्वित किया, उनकी गुणवत्ता, महत्ता और भूमिका इस दौर में भी बरकरार है। शाही अंदाज में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पढे लिखे नेहरू ने अपने कुल महज सत्रह वर्षीय शासन काल में एक भूखे, नंगे, अशिक्षित और आर्थिक रूप कंगाल हो चुके देश को हर क्षेत्र में मजबूती से अपने पैरों पर खड़ा होने की ताकत दी और वैश्विक रंगमंच पर भारत को बहुआयामी प्रतिस्पर्धा के लायक बना दिया। उनकी दूरदर्शितापूर्ण नीतियों और निर्णयों के फलस्वरूप यह देश तरक्की और विकास की बुलंदियों के अनगिनत आसमान स्पर्श करने के फिर मचलने लगा.
नेहरू ने देश के सर्वांगीण विकास के लिए विविध क्षेत्रों में विविध संस्थानों और संस्थाओं को स्थापित किया, जो भारत के पुनर्निर्माण और विकास की दृष्टि से मील का पत्थर साबित हुए। भारत सदियों से कृषि प्रधान देश रहा है, इसलिए सर्वप्रथम कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता लाकर भारतीय अर्थव्यवस्था में स्फूर्ति लाई जा सकती थी। इस सच्चाई को ध्यान में रखते हुए नेहरू द्वारा स्थापित भाखड़ा नांगल बांध सहित सभी नदी घाटी परियोजनाएं कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता लाने और औद्योगिक क्षेत्र के विकास को गति देने के लिए आवश्यक उर्जा मुहैया कराने की दृष्टि से वरदान साबित हुईं, इसलिए आराम हराम है.. के मूल मंत्र को मानने वाले कर्मवीर नेहरू ने भाखड़ा नांगल बांध परियोजना को भारत का आधुनिक मंदिर कहा था। अंग्रेजों ने सुसंगठित और सुव्यवस्थित तरीके से सर्वाधिक शोषण भारतीय किसानों और कृषि का किया था और भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ और अधिकतम लोगों की आजीविका के साधन खेती-किसानी को भी बुरी तरह चौपट कर दिया था। अंग्रेजों ने अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं की प्रतिपूर्ति में दुनिया के सबसे विशाल और खूबसूरत नजारे वाले हरे-भरे भारतीय मैदानों को ऊसर बंजर में बदल दिया। नेहरू द्वारा आरंभ की गई बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं और पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि और सिंचाई को केन्द्रीय महत्व देने के परिणामस्वरुप इन मैदानों में फिर से हरियाली वापस आ गयी। नदी घाटी परियोजनाओं से न केवल बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से कुछ हद तक राहत मिली बल्कि वर्षो से बंजर और वीरान हो चुकी भारतीय बसुन्धरा संतरंगी परिधान में फिर से सजी-संवरी नजर आने लगी और भारतीय जनमानस के रूखे सूखे हृदयों को सावन, बसंत, हेमंत और शिशिर का फिर से एहसास होने लगा।
अंग्रेजों ने अपनी भोग-विलासिता और शान-शौकत के लिए न केवल भारतीय कृषि को चौपट किया, बल्कि हुनरमंद भारतीय हाथों की दस्तकारी और कारीगरी को भी बुरी तरह बेकार और बर्बाद कर दिया, इसलिए भारतीय हाथों की दस्तकारी, कारीगरी और कौशल को वापस लाने के लिए उच्चस्तरीय तकनीकी और वैज्ञानिक शोध संस्थानों की महती आवश्यकता थी। भारतीय युवाओं में तकनीकी दक्षता और कुशलता लाने की दिशा में भारतीय प्रौद्यौगिकी संस्थानों की स्थापना की संकल्पना और खड्गपुर में पहला भारतीय प्रौद्यौगिकी संस्थान स्थापित कर इसका शुभारंभ करना नेहरू की दूर- दृष्टि का ही नतीजा है। आर्यभट्ट, वराहमिहिर, चरक, सुश्रुत, नागार्जुन और श्रीधराचार्य के देश को चिकित्सा विज्ञान और अंतरिक्ष के क्षेत्र में फिर से वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान, भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और उच्च स्तरीय अखिल भारतीय प्रबन्धन संस्थान जैसे देश की यशकीर्ति को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित करने वाले दर्जनों संस्थाओं को स्थापित किया। इन संस्थानों से निकलने वाले होनहार नौजवान आज वैश्विक स्तर पर भारतीय प्रतिभा और मेधा का परचम फहरा रहे हैं।
एशिया के सबसे धनी वकील के बेटे तथा ब्रिटिश साम्राज्य के राजकुमार के समान और समानांतर सुख सुविधाओं में पले बढे जहाहर लाल नेहरू ने राजनीति में पदार्पण करते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा एक सच्चे सत्याग्रही के लिए निर्धारित वेश-भूषा, निर्देशित सादगी और सज्जनता को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया था। अपने दौर की वैश्विक राजनीति की बेहतर समझदारी रखने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू मानव जीवन के लिए स्वतंत्रता और राष्ट्रीय जीवन के लिए स्वाधीनता का महत्व और मूल्य बखूबी समझते थे। इसलिए भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अनगिनत यातनाएं झेलीं, जेल गए, लाठियां खाईं और अपना सर्वस्व न्योछावर करने को सर्वदा तत्पर रहे। स्वाधीनता के लिए आवश्यक निर्भीकता और सर्वस्व न्योछावर करने की उत्कट अभिलाषा ने नेहरू को अल्प समय में ही स्वाधीनता संग्राम के नायकों की अग्रिम कतार में खडा कर दिया। स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की बुनियाद पर लड़ी गई फ्रांसीसी क्रांति से पंडित जवाहरलाल नेहरू गहरे रूप से प्रभावित थे। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व बुनियादी तत्व होते हैं। इसलिए नेहरू सचेत हृदय से इस बुनियाद पर देश के अंदर स्वस्थ लोकतंत्रिक परम्पराओं और परिपाटियों का निरंतर विकास करते रहे। नेहरू स्वभावतः लोकतांत्रिक थे और लोकतंत्रिक सज्जनता एवं लोकतांत्रिक शिष्टाचार उनके अन्दर कूट-कूट कर भरा था, इसलिए पूर्ण बहुमत की सरकार होने के बावजूद उन्होंने अपने पहले मंत्रिमंडल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी और डॉ भीम राव अंबेडकर जैसे प्रखर आलोचकों को भी शामिल किया। यही नहीं, नेहरू सोच, विचार, दृष्टिकोण और चरित्र से पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष सर्वसमावेशी और गांधी के प्रभाव के कारण पूर्णतः मानवतावादी थे, इसलिए धर्म, जाति, भाषा, बोली की दृष्टि से विश्व के सबसे विविधतापूर्ण देश को अपने सर्वसमावेशी व्यक्तित्व और कृतित्व से उन्होंने सबके रहने लायक बनाने हेतु श्लाघनीय प्रयास किया। हर तरह के मन मुटाव और मतभेदों को समाप्त करने की अद्भुत सूझ बूझ और समझदारी रखने वाले राजनेता थे पंडित जवाहरलाल नेहरू।
आज सारा विश्व कोरोना महामारी के संकट से जूझ रहा है। इसके कारण आम आदमी का जीवन और जीविका गहरे संकट में है। महामारियों का इलाज झाड़-फूंक और टोना-टोटका नहीं होता है, इसका अतिंम इलाज टीकाकरण होता है। आधुनिक वैज्ञानिक और तार्किक चेतना से लबरेज़ जवाहरलाल नेहरू उपरोक्त सच्चाई से पूरी तरह वाकिफ थे। महामारियों के प्रकोप से जद्दोजहद करते रहने का इतिहास बहुत पुराना है, इसलिए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने महामारियों से लोगों का जीवन बचाने के लिए स्वाधीनता के उपरांत ही प्रयास प्रारंभ कर दिए. वर्ष 1948 में चेन्नई में वैक्सीन यूनिट और पुणे में राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान स्थापित कर उन्होंने महामारियों से जीवन बचाने का श्लाघनीय प्रयास किया। उनकी इसी सोच का नतीजा है कि आज देश पूरी तरह से चेचक, खसरा और पोलियो जैसी बीमारियों से मुक्ति पा चुका है। नेहरू वस्तुतः हर तरह की बीमारी और बीमार मानसिकता को समाप्त करना चाहते थे। कुप्रथाओं, कुरीतियों और अंधविश्वासों से मुक्त, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिपूर्ण समाज बनाना हमेशा नेहरू की प्राथमिकता में रहा।
अंततः देश के पुनर्निर्माण और विकास के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी बौद्धिक और तार्किक सोच व क्षमता से जो ढाँचा खड़ा किया, उसको देश के बौद्धिक वर्ग और राजनीतिक विश्लेषकों ने पूरी श्रद्धा के साथ “नेहरू मॉडल” का नाम दिया। जब-जब यह देश किसी भी तरह गहरे संकट में उलझता फंसता हैं, तो लोग नेहरू मॉडल को याद करते हैं। जितनी गम्भीरता के साथ हम नेहरू मॉडल को जानने समझने का प्रयास करते हैं, उतना ही हम देश की बहुविवीध समस्याओं को बेहतर तरीके से सुलझाने का प्रयास करते हैं। इस देश में बच्चों और युवाओं में “चाचा नेहरू” के नाम से लोकप्रिय पंडित जवाहरलाल नेहरू का बहुचर्चित नेहरू मॉडल ही इस देश के विकास का सच्चा रास्ता और आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं का वास्तविक समाधान है, इसलिए देश पहले प्रधानमंत्री द्वारा विकास के लिए अपनाया गया मॉडल आज भी देश के लिए निर्विकल्प है। नेहरू की चाहे जितनी भी आलोचना की जाये या अधकचरे ज्ञान के कारण पानी पी पी कर गालियां बकी जाएं, फिर भी नेहरू का मॉडल आज भी इस देश के विकास को गति और स्फूर्ति प्रदान कर रहा है. नेहरू का समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्रिक व्यक्तित्व, कृतित्व और चरित्र हर सच्चे मन मस्तिष्क से लोकतांत्रिक राजनीति करने वाले हृदय के लिए रोल मॉडल बना रहेगा। भारत की संसदीय राजनीति का अगर गम्भीरता से अवलोकन किया जाए, तो पता चलता है कि प्रधानमंत्री पद बैठने वाला हर व्यक्ति वैश्विक रंगमंच पर नेहरू बनने का प्रयास करता है। प्रकारांतर से भारत की राष्ट्रीय राजनीति के लिए विश्व शांति और विश्व बंधुत्व के प्रखर समर्थक नेहरू आज एक रोल मॉडल है। नेहरू बीसवीं शताब्दी के दो विश्व युद्धों के फलस्वरूप होने वाली तबाही और बर्बादी के साक्षी थे, इसलिए वे अंतर्राष्ट्रीय शांति और विश्व बंधुत्व के समर्थक थे। विश्व शांति और विश्व बंधुत्व को स्थायित्व प्रदान करने के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने पंचशील का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जो तीसरी दुनिया के देशों के द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबधों व संधियों की दृष्टि से बहुत लोकप्रिय हुआ। उस दौर में पूरी दुनिया दो गुटों में विभाजित हो चुकी थी। नेहरू ने कर्नल नासिर और मार्शल टीटो के साथ मिलकर निर्गुट आन्दोलन चलाया, जो धीरे-धीरे तीसरी दुनिया के देशों की आवाज बन गया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन और पंचशील सिद्धांत के माध्यम से भारत को वैश्विक पहचान दिलाने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन पर सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं दी जानी चाहिए।
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