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नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का मामला राजभवन पहुंचा

28 सालों से चल रह है सत्याग्रह

 

केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति पिछले 28 सालों से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज, टूडरमा डैम व पलामू व्याघ्र परियोजना से संभावित विस्थापन के खिलाफ चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व कर रही है। एकीकृत बिहार के समय 1954 में मैनूवर्स फील्ड फायरिंग आर्टिलरी प्रैटिक्स एक्ट-1938 की धारा 9 के तहत नेतरहाट पठार के 7 राजस्व गाँवों को तोपाभ्यास (तोप से गोले दागने का अभ्यास) के लिए अधिसूचित किया गया था, जिसके तहत चोरमुंडा, हुसमु, हरमुंडाटोली, नावाटोली, नैना, अराहंस और गुरदारी गाँवों में सेना तोपाभ्यास करती आ रही है। शुरुआत में नेतरहाट के पठार में इस फायरिंग रेंज का विरोध हुआ. उस समय के तत्कालीन सांसद स्वर्गीय कार्तिक उराँव के माध्यम से प्रभावित जनता ने विरोध जताया, पर कोई सुनवाई नहीं हुई.

1991 और 1992 में तत्कालीन बिहार सरकार ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए अधिसूचना जारी की, जिसमें उन्होंने इसकी अवधि 1992 से 2002 तक कर दी। इस अधिसूचना के तहत केवल अवधि का ही विस्तार नहीं किया गया, बल्कि क्षेत्र का विस्तार करते हुए 7 गाँव से बढ़ाकर 245 गाँवों को अधिसूचित कर दिया गया। इस मामले में सरकारों ने जनता के साथ कभी कोई जानकारी साझा नहीं की और छुप-छुपाकर अधिसूचनाएं जारी करते रहे। पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (दिल्ली, अक्टूबर 1994) की रिपोर्ट से मालूम हुआ था कि पायलट प्रोजेक्ट के तहत स्थाई विस्थापन एवं भूमि-अर्जन की योजना को आधार दिया जाना था। तब से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ आन्दोलन जारी है। समिति ने क्षेत्र की महिलाओं की अगुवाई में 22 मार्च 1994 को फायरिंग अभ्यास के लिए आई सेना को बिना अभ्यास के वापस जाने पर मजबूर किया था। तब से आज तक सेना नेतरहाट के क्षेत्र में तोपाभ्यास के लिए नहीं आई है। आन्दोलन के साथ-साथ समिति ने हमेशा ही बात-चीत का रास्ता खुला रखा है। हमारे इस जोरदार विरोध को देखते हुए स्थानीय प्रशासन की पहल पर प्रशासनिक अधिकारियों, सेना के अधिकारियों व केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति के बीच तीन बार वार्ता हुई। इस बातचीत के पूर्व समिति ने नेतरहाट पठार में 1964 से 1994 (30 वर्षों) तक फायरिंग अभ्यास के दौरान के अनुभवों को जानने के लिए सर्वे कराया। इस सर्वे से जो तथ्य सामने आए, वे दिल दहलाने वाले थे। सैनिकों के सामूहिक बलात्कार से मृत महिलाओं की संख्या –2, सैनिकों द्वारा महिलाओं का बलात्कार – 28, तोपाभ्यास के दौरान गोलों के विस्फोट से मृत लोगों की संख्या –30 तथा गोला विस्फोट से अपंग लोगों की संख्या –3 थी।


वार्ता के दौरान जनसंघर्ष समिति के प्रतिनिधियों ने कहा कि समिति किसी भी तरह के फायरिंग अभ्यास को पायलट प्रोजेक्ट नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का ही रूप मानती है। अत: समिति बिहार सरकार द्वारा पायलट प्रोजेक्ट को विधिवत अधिसूचना प्रकाशित कर रद्द करने की मांग करती है। इसके बाद विगत 30 वर्षों में गोलाबारी अभ्यास के दौरान पीड़ित भुक्तभोगियों ने प्रशासन और सेना के अधिकारियों के समक्ष अपनी व्यथा कह सुनाई। उनकी आपबीती सुन एवं देखकर आयुक्त महोदय ने माना कि समस्या बेहद गंभीर है। सेना फायरिंग अभ्यास का नैतिक अधिकार खो चुकी है। चूँकि इसका निराकरण स्थानीय प्रशासन के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, इसलिए प्रशासन सरकार के पास इसकी अनुशंसा करेगा।

जोरदार विरोध और प्रशासनिक अधिकारियों के आग्रह पर समिति ने सोचा कि नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अवधि, जो मई 2002 तक है, समाप्त हो जाएगी। परन्तु ऐसा सोचना घातक साबित हुआ. 1991 व 1992 की अधिसूचना के समाप्त होने के पूर्व ही तत्कालीन बिहार सरकार ने 1999 में अधिसूचना जारी कर 1991-92 की अधिसूचना की अवधि का विस्तार कर दिया, जिसके आधार पर ये क्षेत्र अब 11 मई 2022 तक प्रभावित है। आज समिति को डर है कि कहीं राज्य सरकार अवधि का फिर से विस्तार न कर दे। क्योंकि अभी तक नेतरहाट फील्ड फायरिग रेंज को रद्द करने की अधिसूचना राज्य सरकार द्वारा जारी नहीं की गई है।

11 मई 2022 को 1999 की अधिसूचना की अवधि समाप्त होने वाली है। समिति ने इस संदर्भ में झारखण्ड सरकार के गृहमंत्रालय से सूचना का अधिकार अधिनियम के माध्यम से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की वास्तविक स्थिति व आगे अवधि विस्तार के सम्बन्ध में जानने की कोशिश की। इसके लिए समिति ने प्रभावित इलाके के हर गाँव से सूचना के अधिकार के तहत 10-10 सूचनाएं मांगने का प्रयास किया, परन्तु गृह मंत्रालय सूचना देने के बजाय इधर-उधर घुमाता रहा है। वहाँ से निराश होने के बाद समिति ने वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, झारखण्ड सरकार से सूचना पाने की कोशिश की, परन्तु यहाँ भी निराशा ही हाथ लगी। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से सूचना मांगने के पीछे समिति का मानना था कि पलामू व्याघ्र परियोजना के तहत नेतरहाट का पठार क्षेत्र इको-सेंसिटिव जोन के अंतर्गत आता है। हमने माननीय मंत्रालय से स्पष्ट तौर पर जानना चाहा कि इकोसेंसिटिव जोन में मैनूवर्स फील्ड फायरिंग आर्टिलरी प्रैटिक्स एक्ट-1938 लागू हो सकता है या नहीं?

सरकार से जब हमें कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला, तो हमने विधायकों से इस संदर्भ में झारखण्ड विधान सभा में सवाल उठाने का आग्रह किया। विधायक विनोद कुमार सिंह (बगोदर विधानसभा) ने हमारी बातों को विधानसभा के पटल पर रखा, परन्तु यहाँ भी सरकार ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को रद्द करने व अवधि विस्तार पर रोक लगाने के संदर्भ में कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया। यह पूरा इलाका भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आता है और यहाँ पेसा एक्ट-1996 भी लागू है, जिस कारण ग्राम सभाओं को अपने क्षेत्र के सामुदायिक संसाधन-जंगल, ज़मीन, नदी-नाले और अपने विकास के बारे में हर तरह के निर्णय लेने का अधिकार है।

अत: केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति ने प्रभावित क्षेत्र के ग्राम प्रधानों से आग्रह किया कि आप ग्रामसभा का आयोजन कर यह निर्णय लें कि आप नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए गाँव के सीमा के अन्दर की ज़मीन देना चाहते हैं या नहीं। ग्रामसभाओं के निर्णय की कॉपी महामहिम को रजिस्ट्री डाक द्वारा पहले ही प्रेषित की जा चुकी है. प्रभावित क्षेत्र के गांवों के ग्रामप्रधान अपना दुखड़ा सुनाने 21 अप्रैल से 25 अप्रैल 2022 तक 200 किलोमीटर पदयात्रा करते हुए महामहिम के पास आए और महामहिम से आग्रह किया कि पांचवी अनुसूची क्षेत्र में ग्रामसभाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा एवं उनके निर्णय का सम्मान करते हुए नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना-1999 का आगे और विस्तार न किया जाए, बल्कि विधिवत अधिसूचना प्रकाशित कर परियोजना को ही रद्द किया जाए. साथ ही अधिसूचित क्षेत्र की आम जनता को विस्थापन के आतंक से मुक्त करने की कृपा की जाए.

-जेरम जेरॉल्ड कुजूर

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