16 दिसंबर, 2022 को वाराणसी के अस्सी घाट पर दख़ल संगठन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़े के समापन और निर्भया दिवस के मौके पर सांस्कृतिक प्रतिरोध संध्या का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में शामिल मैत्री ने अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़े के विषय में बताया कि 1960 के दशक में डोमिनिकन रिपब्लिक के तानाशाह शासक के खिलाफ तीन बहनों- पेट्रिया, मिनरवा और मारिया ने आवाज़ उठाई थी, जो मीराबेल बहनों के नाम से जानी जाती हैं। 25 नवम्बर को तीनों बहनों को जिन्दा जलाकर हत्या कर दी गयी थी। 1981 में नारीवादी समूहों ने इस दिन को महिलाओं पर होने वाली हिंसा के विरोध में अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाना शुरू किया। 1991 में 25 नवम्बर से 10 दिसम्बर तक 16 दिवसीय पखवाडा मनाना शुरू किया गया।
डॉ इन्दु पांडेय ने बताया कि 2012 में आज ही के दिन 23 साल की निर्भया के साथ जघन्य सामूहिक बलात्कार करके निर्मम तरिके से उनकी हत्या की गयी थी। उसकी स्मृति में 16 दिसंबर को महिला हिंसा के प्रतिरोध दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है। नीति ने कहा कि जब भी हम महिला हिंसा की बात करते हैं तो विधवा महिला, विकलांग महिला, सेक्स वर्कर और ट्रांस महिलाओं को भूल ही जाते हैं। सिर्फ उन्हीं महिलाओं को ही ध्यान में रखते हैं, जिनको समाज द्वारा संस्कारी महिला होने की स्वीकृति प्राप्त है। लेकिन आज हम कहना चाहते हैं कि समाज द्वारा उपेक्षित इन महिलाओं के साथ जो हिंसा और गैर बराबरी हो रही है, उन महिलाओं का क्या? उनके साथ हो रही हिंसा पर आवाज उठाने की जरूरत है। पितृसत्तात्मक सोच को खत्म करने, गैर बराबरी हटाने और लिंग समानता लाने की जरूरत है। बनारस और आसपास के क्षेत्र में लैंगिक मुद्दों पर लगातार सक्रिय रह रहे संगठन दखल ने संध्या आयोजन से पूर्व पराड़कर भवन में पत्रकार वार्ता का आयोजन कर एक शोध अध्ययन जारी किया।
महिला हिंसा के विभिन्न आयाम हैं। घरेलू से लेकर कामगार महिला तक जाति, धर्म, अमीरी, गरीबी की सीमा से परे सभी उम्र की महिलाओं पर भेदभाव और हिंसा की घटनाए होती हैं। ऐसे विषयों पर कानून के साथ-साथ समाज की अपनी जागरूकता और संवेदनशीलता भी जरूरी मांग है। इसको ध्यान में रखते हुए दखल संगठन ने जिले के स्कुल कॉलेजों में जागरूकता संवाद का आयोजन किया। समाजकार्य विभाग काशी विद्यापीठ, हरिश्चंद्र पीजी कॉलेज मैदागिन, विद्यापीठ गंगापुर परिसर और बसंता कॉलेज, राजघाट में पिछले दिनों लघु फिल्में दिखाकर छात्र छात्राओं के बीच चर्चा कराई गई।
रिपोर्ट जारी करते हुए शालिनी ने बताया कि बनारस से प्रकाशित होने वाले प्रमुख पांच अखबारों और पांच ऑनलाइन पोर्टलों का दखल ने अध्ययन किया है। पिछले 15 दिन के समाचारों से गुजरते हुए देखा गया कि क्या शहर, क्या ग्रामीण इलाके, क्या अमीर क्या गरीब, क्या बूढ़ी क्या बच्ची या फिर काम करने वाली या घरेलू महिला, लगभग हर प्रकार के सामाजिक, आर्थिक ढाँचे में रहने वाली महिला के साथ अपराध की घटनाएं हुई हैं।
महिलाओं के खिलाफ प्रतिदिन औसतन 4 से 5 हिंसा और अपराध की खबरें प्रकाश में आई हैं। ज्ञातव्य है कि रोजमर्रा के घरेलू भेदभाव और हिंसा की बहुतायात शिकायतें तो कभी सामने आ ही नहीं पाती। इन 75 घटनाओं में से दहेज उत्पीड़न के तीन, यौनिक हिंसा के चार, शारीरिक हिंसा के बीस और साइबर अपराध के चार मामले और मानसिक उत्पीड़न के सात मामले दर्ज हुए हैं। सर्वाधिक मामले बच्चों के रहे, नाबालिग बच्चों की छब्बीस घटनाएँ खबरों में रहीं।
कम संसाधनों में बेहद साधारण-सा यह अध्ययन आंखे खोलने वाला है। एक समाज के तौर पर हमें आगे बढ़ना है, तो इन विषयों पर बहुत सचेत होकर अपनी कार्यवाहियों को तय करना होगा। सांस्कृतिक संध्या में प्रमुख रूप से इंदु, शालिनी, विजेता, विनय सिंह, नीति, मैत्री, शानू, रणधीर, राहुल, शिवांगी, दीक्षा, अनुज और ताहिर अंसारी, काजल शामिल रहे।
-दखल संगठन
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