जिंदल समूह का प्रोजेक्ट ओड़िसा से तत्काल हटाने की मांग
ओड़िसा के पारादीप के पास ढिंकिया, नुआगांव और गड़कुजंग पंचायतों के गांवों के लोग लंबे समय से जनविरोधी जिंदल परियोजना के विरोध में अपनी आजीविका तथा अपनी जमीन बचाने के लिए लोकतांत्रिक तरीके से संघर्ष कर रहे हैं। इससे पहले दक्षिण कोरियाई कंपनी पॉस्को के विरोध में लंबी जंग लड़कर उन्होंने यहां से इस प्रोजेक्ट को हटा दिया था। यहां के लोग अपना खुद का धान, पान, मछली, काजू और अन्य कृषि उत्पादों को उगा कर खुशी से अपने परिवार के साथ जीवनयापन रहे हैं। यहां तक कि इस जिले के लोग इस कृषि समृद्ध क्षेत्र से बाहर अन्य राज्यों में मजदूरी के लिए नहीं जाते। ओड़िशा के अन्य जिलों से लोग आजीविका के लिए यहां आते हैं। 8 साल से लेकर 80 साल तक का यहां का हर आदमी आत्मनिर्भर है।
लंबे समय से सरकार और कंपनी की ओर से तरह-तरह की चालाकियां अपनाने के बावजूद, स्थानीय लोग किसी भी प्रलोभन के आगे कभी नहीं झुके और ग्राम समिति के माध्यम से बैरिकेड्स का निर्माण करके अपने गांव में पुलिस और कंपनी के गुंडों को घुसने नहीं दे रहे थे। भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने का अधिकार देता है, लेकिन ओड़िशा सरकार की पुलिस ने मानवाधिकार का उलंघन करते हुए ढिंकिया गांव में युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर दी। 13 जनवरी को अंग्रेजों की तरह स्थानीय प्रशासन ने ढिंकिया में घुसपैठ की और गांव के लोगों के ऊपर डंडों का इस्तेमाल किया, जिनमें कई बच्चों और किशोरों समेत बूजुर्ग और महिलाएं गंभीर रूप से घायल हुए हैं। घायलों को अस्पताल ले जाने के लिए स्थानीय तहसीलदार के नेतृत्व में आयी एंबुलेंस और पुलिसकर्मियों को गांव वालों ने वापस लौटा दिया। महिलाओं ने पुलिस के आक्रमण से बचने के लिए अपनी साडी उतारकर उनके ऊपर फेंका, लेकिन पुलिस वालों को तब भी दया नहीं आयी, वे निर्दयता से लाठी भांजते रहे।
पॉस्को विरोधी आंदोलन के नेता डा. विश्वजीत जिंदल विरोधी आन्दोलन का भी नेतृत्व कर रहे थे। स्थानीय जिल्ला प्रशासन की तरफ से उनके खिलाफ पॉस्को विरोधी आंदोलन के समय हुए 47 केस फिर से खोले गये। उनकी जमीन से उन्हें बेदखल करने के लिए न्यायालय से मांग की जाएगी, ऐसी धमकी अखबारों के जरिए दी गयी है। दूसरी ओर डॉ. विश्वजीत ने प्रशासन को जवाब दिया कि जेल या कोर्ट का डर दिखाकर सरकार मेरा मुंह नहीं बंद कर पाएगी। मैं हर लोकतांत्रिक व शांतिमय आंदोलन में लोगों के साथ खड़ा हूं।
सर्व सेवा संघ, उत्कल गांधी स्मारक निधि, गांधी शांति प्रतिष्ठान व राष्ट्रीय युवा संगठन की ओर से कृष्णा मोहंती, डॉ. विश्वजीत, सूर्य नारायण नाथ, मानस पटनायक, आद्यश्लोक मिश्रा और सागर दास आदि ने पुलिस बर्बरता की कड़ी निंदा करते हुए गांव से पुलिसकर्मियों को वापस बुलाने की मांग की है। साथ ही सरकार के इस क्रूर दमन पर मुख्यमंत्री ने तुरंत सार्वजनिक बयान देने और जिंदल संयंत्र को ढिंकिया, नुआगांव तथा गड़कुजंग पंचायतों से तुरंत हटाने की मांग की है।
-मानस पटनायक
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