आज सुबह की पहली सभा का आयोजन सुरुचि कृषि केंद्र बारडोली में किया गया, जिसमें सर्व प्रथम रमा बहन ने सभी यात्रियों का सूत के माला से आत्मीय स्वागत किया. तत्पश्चात राजेन्द्र सिंह ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि खेती-किसानी के काम का संबंध सीधे पानी से है. दुनिया में खेती और औजारों को लेकर गांधी की जो सोच है, उसी को बचाने हम निकलने हैं. साबरमती का आश्रम हो या हमारी जमीन, जंगल और पानी. यह सब सभी लोगों का है. सरकार ये सब बरबाद करने में लगी हुई है. हम बस सरकार को यह कहने निकले हैं कि यह गाँधीजी का रास्ता नही है, इसलिए आप अपना साबरमती का प्रॉजेक्ट वापस लें।
कुमार प्रशांत ने कहा कि औंजार, जिससे मनुष्य के हाथ में अपनी ताकत आती है, इसके प्रति हमेशा ही गाँधीजी बहुत स्पष्ट रहे हैं. उनके अनुसार, औंजार मनुष्य की मदद करने के लिए होने चाहिए, न कि उस पर नियंत्रण करने के लिए. यंत्र ऐसे होने चाहिए कि अगर खराब हो जायें तो उनको खुद ही ठीक कर लिया जाए, न कि बाहर लेकर जाना पड़े, इसलिए स्वराज का मतलब है कि हमारे ये मॉडल बचे रहें, चाहे वह हथियार हो या आश्रम. यह आश्रम ही हैं, जो चुनौती बनकर सामने खड़े हैं।
इस सभा के बाद यात्रा स्वराज भवन के लिए रवाना हुई, जहां संचालक योगनी चौहान ने यात्रा का स्वागत किया. स्वागत के बाद सभी यात्रियों ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के निवास स्थान का दर्शन किया और उनके तथा गांधी जी के चित्र पर माल्यार्पण किया. यहाँ भी एक सभा का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम सर्व सेवा संघ की आशा बोथरा ने सभा को सम्बोधित किया. उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी जब साबरमती से निकले, तो यह कहते हुए निकले कि अब साबरमती वापस तभी आऊंगा, जब आज़ादी मिल जाएगी, लेकिन वे गुजरात आये, जब सरदार ने उनको बुलाया और कहा कि आप साबरमती नहीं आएंगे, लेकिन यहां तो आ सकते हैं, तब गांधी जी स्वराज भवन आये थे. गांधी जी कभी साबरमती नही लौट सके, इतिहास के इन पन्नों के साथ सरकार खेलना चाहती है. हम इस सरकार से यह कहने निकले हैं कि अपनी दुर्बुद्धि से वह साबरमती की मर्यादा बिगाड़ने की कोशिश न करे, सद्बुद्धि का उपयोग करते हुए 1200 करोड़ रुपये कहीं और उपयोग करे, जो गांधी के अंतिम आदमी के लिए हो तो बेहतर होगा।
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