सर्वोदय परिवार की जानी मानी लेखिका डॉ. सुजाता चौधरी, जिनका ब्रह्मविद्या मंदिर से भी अद्भुत नाता है, विनोबा विचार प्रवाह परिवार से भी पूरे मनोयोग से जुड़ी हैं। वृंदावन मथुरा में तो बहनों के कल्याणार्थ वे बहुत अद्भुत काम रासबिहारी मिशन के माध्यम से चला रही हैं। आज उनके मनोभाव।
उत्तर स्वयं बाबा ही देते हैं, ‘उन्हें लगना चाहिए कि आश्रम ऐसा स्थान है, इसलिए आश्रम के क्षेत्र में ऐसी स्वच्छता होनी चाहिए कि वहाँ जाने पर चित्त एकदम प्रसन्न हो जाए| आश्रम में प्रेम के सिवा दूसरा कोई शब्द सुनाई ही नहीं देना चाहिए| जिस तरह ठंड लगने पर सब अग्नि की अगल बगल बैठ जाते हैं, उसी तरह आश्रम के आसपास के गांवों को भी अपने मुश्किल क्षणों में राहत मिलनी चाहिए|’
ब्रह्म विद्या मंदिर बाबा के उपरोक्त विचारों का मूर्त रूप है|ब्रह्म विद्या मंदिर की स्थापना करते वक्त विनोबा जी की जागृत आँखों में एक स्वप्न तैर रहा था- एक अनोखे आश्रम का स्वप्न, जैसा आज तक पूरी दुनिया में कहीं नहीं बना था| अपने जीवन के संध्या काल में इस आश्रम की स्थापना करने का कारण बताते हुए उन्होंने बहनों से कहा था, ‘मैं तुम लोगों की तरफ कितनी आशा और श्रद्धा की निगाह से देखता हूँ, यह मेरे आस पास रहने वाले रोज़ देखते हैं| एक जागतिक कार्य ईश्वर हमसे कराना चाहता है, इसका सदा खयाल रखो| हमारा सबका एक सामूहिक चित्त बने, यहाँ तक मैं सोचता हूँ| दूसरी भाषा में चित्त से हम अलग हो जाएं, यही इसका अर्थ है| इतना व्यापक उद्देश्य सामने रखकर ब्रह्मविद्या मंदिर की स्थापना अपने आप में एक बहुत बड़ी जिम्मेवारी है. यह जिम्मेदारी मैंने यह सोचकर उठाई है कि यह जमाने की मांग है. यदि यह अपनी मांग होती है तो मैं ऐसी संस्था बनाना स्वीकार नहीं करता|’
बाबा स्त्रियों के प्रति अत्यंत संवेदनशील थे| इस आश्रम की स्थापना का आधार ही स्त्रियों के प्रति बाबा की अति संवेदनशीलता थी| उन्होंने इस आश्रम की पूरी व्यवस्था बहनों के हाथों में सौंप दी| बुद्ध स्त्रियों को मठ में प्रवेश देने के पक्ष में नहीं थे| आनंद की जिद पर उन्होंने स्त्रियों को मठ के अंदर आने की आज्ञा तो दी, पर यह कहते हुए कि इससे बौद्ध धर्म की समाप्ति का खतरा है, लेकिन बाबा का कहना था कि वह पुराना ज़माना था. मैं तो इसमें खतरा मानता हूँ कि पुरुष के साथ स्त्री को स्थान न हो, उसमें ब्रह्म विद्या अधूरी रहती है, उस ब्रह्म के टुकड़े टुकड़े होते हैं| स्त्रियों के हाथों आश्रमों का संचालन जमाने की मांग है|
बाबा की सोच थी कि भारत में बहनें विशेष रूप से पुरुषाश्रित रहती हैं, इसलिए ब्रह्म विद्या मंदिर के सारे कृतित्व स्त्रियों द्वारा हों, क्योंकि आने वाला ज़माना स्त्रियों का होगा| तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा है— वृथा न जाए देवऋषि वाणी| मुझे बाबा की इस वाणी पर पूर्ण विश्वास है कि आने वाला समय स्त्रियों का होगा, क्योंकि बाबा से बड़ा ऋषि भला कोई और कौन होगा? ठीक उसी तरह एक दिन पूरी दुनिया स्त्रियों की हो जाएगी, जिस तरह ब्रह्म विद्या मंदिर बहनों का है|
अपने वृंदावन प्रवास के दौरान जब पहली बार मुझे ब्रह्म विद्या मंदिर, पवनार आने का मौका मिला था तो ऐसा महसूस हुआ कि मैं किसी आध्यात्मिक धाम आ गयी हूँ| वृन्दावन में ब्रह्म गोपियों की भक्ति में बंध कर उनके उपले उठाता है, वैसे ही ब्रह्म विद्या मंदिर की विदुषी बहनों के ज्ञान से बंधकर मानो इसी मंदिर में स्थायी रूप से वास करता है| सच कहूँ तो ब्रह्म विद्या मंदिर की बहनें मुझे वेद और उपनिषद की चलती फिरती ऋचाएं नजर आती हैं| लेकिन इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि अपने ज्ञान और पांडित्य के अहंकार के कारण वे उदासीन और रूखी हो गई हैं| सच तो यह है कि वे सब इतनी प्रेमल हो गयी हैं कि आगुंतकों को अपने प्रेम से अभिसिंचित कर देती हैं|
मुझे बाबा के दर्शन का सौभाग्य नहीं मिल पाया. पर पता नहीं क्यों ऐसी अनुभूति होती है कि मैंने उनका साक्षात दर्शन किया है| बहुत सोचती हूँ कब और कैसे? तो बस एक ही बात समझ में आती है कि मुझे ब्रह्म विद्या मंदिर की बहनों की आँखों में झांकने का सौभाग्य मिला है, जो बाबा के जीवंत दर्शन का एहसास कराता है।
डॉ सुजाता चौधरी
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