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पवनार डायरी; विनोबा विचार प्रवाह: ब्रह्मविद्या मंदिर; ब्रह्मविद्या मंदिर की रीढ़ है सर्वसम्मति और सर्वानुमति

ब्रह्मविद्या मंदिर के प्रति आज अपने मनोभाव व्यक्त कर रही हैं ज्योति पाटणकर. उनके ये विचार विनोबा विचार संगीति में व्यक्त किए गए थे। आज उसी का एक अंश यहां प्रस्तुत है।

महात्मा गांधी ने हमें सर्वोदय शब्द दिया। हम सभी का उदय चाहते हैं। जिसकी तरफ कोई देखना तक नहीं चाहता, उसके भी उदय की बात इस विचार में निहित है। उसका परिपूर्ण विकास होना चाहिए। विनोबा जी के कुछ साथियों ने कहा कि सर्वोदय शब्द कठिन है,इसे बदलना चाहिए, तब विनोबा जी ने कहा कि नहीं, शब्द यही रहेगा। इसी आधार पर समाज का अधिक से अधिक  हित साधना है। सर्वोदय अद्वैत की भूमिका पर अवस्थित है। गांधी जी के जीवन की यह विशेषता थी कि वे सार्वजनिक प्रश्नों पर बनी बनायी परिस्थितियों में काम नहीं करते थे। वे परिस्थियों को बदलने का प्रयास करते थे. वे सवालों को सत्य और अहिंसा के आधार पर हल करते थे। उनको सरल बनाकर सुलझाते थे। अध्यात्म को समाज के व्यवहार में कैसे दाखिल कराएं, इस दृष्टि से कार्य करते थे।

अखंड कीर्तन, सतत कर्मयोग, व्रतनिष्ठा, सबकी वंदना, यह सब मिलकर ब्रह्मविद्या बनती है। सामूहिक जीवन, सामूहिक गुणवर्द्धन, गुणनिवेदन और सर्वसम्मति का बहुत महत्व है।    

बाबा विनोबा द्वारा स्थापित ब्रह्मविद्या मंदिर की स्थापना के दस साल तक बहनें प्रयोग करती रहीं। सामूहिक साधना कैसे होगी, इस दिशा में चिंतन और प्रयोग चलते रहे। हमारी परस्पर की साधना निरंतर विकसित होती रही। मुझे चालीस साल में कभी महसूस ही नहीं हुआ कि हम पर विनोबा जी के विचार का या समूह का कोई दबाव आ रहा है। विनोबा जी करुणा के महासागर थे। आश्रम का कार्यक्रम बताते हुए उन्होंने जाहिर किया कि अखंड कीर्तन, सतत कर्मयोग, व्रतनिष्ठा, सबकी वंदना, यह सब मिलकर ब्रह्मविद्या बनती है। सामूहिक जीवन, सामूहिक गुणवर्द्धन, गुणनिवेदन और सर्वसम्मति का बहुत महत्व है। ब्रह्मविद्या मंदिर में निर्णय ऐसे ही लिए जाते हैं। छोटे बड़े सभी प्रश्नों को सर्वसम्मति से ही हल करते हैं। जहां सर्वसम्मति नहीं बनती, वहां सर्वानुमति चलती है। ब्रह्मविद्या मंदिर की रीढ़ है सर्वसम्मति और सर्वानुमति। इस तरह जयजगत और विश्व शांति का ध्येय लिए अनंत की ओर 63 वर्षों से हमारी सामूहिक साधना की यात्रा निरंतर और सुंदर ढंग से चल रही है।– ज्योति पाटणकर

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