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पवनार डायरी; विनोबा विचार प्रवाह: ब्रह्मविद्या मन्दिर; ब्रम्हविद्या मंदिर में सन्यास तत्व का सामूहिक प्रयोग करना है

ब्रह्मविद्या मंदिर के प्रति अपने-अपने मनोभावों की यह श्रृंखला लोकप्रिय हो रही है। विनोबा विचार प्रवाह द्वारा आयोजित विनोबा विचार संगीति में ब्रह्मविद्या मन्दिर की ऊषा दीदी ने ब्रह्मविद्या मंदिर की संकल्पना पर अपने विचार व्यक्त किए थे। उनमें से कुछ अंश हम यहां ले रहे हैं।

हैंड, हार्ट और हेड अर्थात कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग; ये तीनों ब्रह्मविद्या की उपासना के महत्व के अंग हैं। विनोबा अपने बारे में कहते थे कि मुझमें न तो नेतृत्व है, न गुरुत्व है। वे कहते थे कि मैं साइन बोर्ड हूं, बस दिशा बतलाता रहूंगा। अपने जीवन के आखिरी बारह साल बाबा विनोबा ब्रह्मविद्या मंदिर में रहे। तब भी बाबा वहां शब्दकोश जैसे ही रहे। वे कहा करते थे कि जब आप सब को जरूरत हो तो मुझसे पूछिएगा। उनकी यह पद्धति हम सबको आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाती है। बाबा के 40 वर्ष के प्रयाण के बाद भी आश्रम सुंदर गति से निरंतर चल रहा है। समूह साधना में अहंकार सबसे बड़ी रुकावट है, इसके लिए बाबा कहते हैं कि मैं को हम में परिवर्तित करना होता है। मैं को हम से मिटाना है। ‘मेरी साधना’ परस्पर विरोधी शब्द है। मेरी साधना, मेरी उन्नति, मेरा योगदान इन सबको पहले धाम नदी में विसर्जित करो, तब ब्रह्मविद्या मंदिर की सीढ़ियां चढ़ो।                

‘मेरी साधना’ परस्पर विरोधी शब्द है। मेरी साधना, मेरी उन्नति, मेरा योगदान इन सबको पहले धाम नदी में विसर्जित करो, तब ब्रह्मविद्या मंदिर की सीढ़ियां चढ़ो।

बाबा कहते थे कि ब्रह्मविद्या मंदिर से कोई मीरा निकले, ये मै नहीं चाहता। बल्कि ब्रह्मविद्या मंदिर में बहनों का सामूहिक रूप से चित्त कितना ऊपर उठता है, यह देखने की बात है। ब्रह्मविद्या मंदिर में दो चीजें मुख्य होंगी, पहली आध्यात्मिक निष्ठा और दूसरी समूह भावना। जिस प्रकार पैर में कांटा लगता है, वहां हाथ तुरंत दौड़ जाता है। वैसे ही एक दूसरे की सहायता के लिए दौड़ जाना सामूहिक साधना का शार्टकट है। यदि व्यक्ति अकेले साधना करेगा, तो वह अपने चित्त को नहीं पहचान पाएगा। बाबा का मानना था कि साधना की कसौटी समूह में होती है। चित्त को परखने के लिए सामूहिक साधना जैसा उत्तम साधन कोई दूसरा नहीं है। इससे हमारा परस्पर संबंध सघन बन जाता है। आपस में व्यवहार करते समय विकार भी सिर उठाते रहते हैं. यदि हम प्रामाणिकता से परीक्षण करना जानते हैं, तो समूह जीवन में अपने को परखने के मौके मिलते ही रहते हैं। गांधी जी ने सत्याग्रह तत्व का सामूहिक प्रयोग किया। बाबा ने बहनों से कहा कि उसी तरह हमें ब्रम्हविद्या मंदिर में सन्यास तत्व का सामूहिक प्रयोग करना है।

 

Co Editor Sarvodaya Jagat

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