इस श्रृंखला में आजकल साथी ब्रह्मविद्या मन्दिर तीर्थ के प्रति अपने मनोभाव लिख रहे हैं. प्रस्तुतियों का सुंदर क्रम चल रहा है। आज हमारे अनुरोध को स्वीकार कर बहन अमी भट्ट ने इस विषय पर अपने विचार लिखे हैं। अमी दीदी बहुत बड़ी शिक्षाविद और सर्वोदय की मर्मज्ञ हैं। वे आदरणीय अरुण भाई और मीरा दीदी की अति कर्मठ बेटी हैं। अभी कुछ साल पहले ही भावनगर से शिक्षिका के पद से सेवानिवृत्त होकर अब वे बड़ौदा में रहकर लेखन कर रही हैं तथा पिता की सार-संभाल भी कर रही हैं।
मेरे हदय में ब्रह्मविद्या मंदिर का विशेष स्थान है। हमारे प्यारे बाबा ने न जाने कितने साधकों के हदय में प्रवेश किया। यह कोई साधारण बात नहीं है। पारस के स्पर्श से लोहा सुवर्ण बन जाता है, वैसे ही बाबा के सान्निध्य में आकर हम सबमें भी परिवर्तन आया. ब्रह्मविद्या मंदिर के सभी साधकों का स्मरण और उनका योगदान याद आता है। उनके जीवन की यात्रा को देखते हुए स्पष्ट प्रतीत होता है कि आत्मोपलब्धि की दिशा में वे निश्चित ऊपर उठे हैं। मुझे याद आ रहे हैं मेरे प्रिय जय भाई, अच्युत काका, बालूभाई मेहता (काकाजी), दादा धर्माधिकारी, सुशीला दीदी, श्यामा मौसी, महादेवी ताई, लक्ष्मी मौसी (कर्नाटक), लक्ष्मी फुकन, निर्मल बहन, देवी दी इत्यादि।
ब्रह्मविद्या मंदिर में उनकी प्रसन्नचित्तता, उनकी उत्तम संगति, उनके साथ बिताए हुए उत्तम पल, उनकी अत्यंत उदात्त भावनाओं का स्पर्श; इन सब स्मृतियों से आज भी प्रेरणा मिलती है। सामान्य रूप से ये सब ऐसे अनमोल रत्न हैं, जो कभी खुद से अपने बारे में कुछ कहना नहीं चाहते, परंतु जब हम उनके जीवन के प्रसंगों को सुनते हैं, तो पता चलता है कि बाबा ने उनके जीवन को कैसे सुंदर तरीके से सँवारा. उन सबकी अंतर्यात्रा की थोड़ी-सी भी झांकी मुझे बहुत प्रेरणा देती है।
आज भी ब्रह्मविद्या मंदिर का समूह उतना ही महत्त्वपूर्ण लगता है. कोई सामूहिक साधना कर रहा है, तो कोई सामूहिक समाधि की अभीप्सा लेकर चल रहा है। सामूहिक साधना का यह यज्ञ बड़ी आहुति की मांग करता है। वह अपने अहंकार, आग्रह और वृत्ति की आहुति मांगता है, मन से ऊपर उठने की मांग करता है. इसी तपस्या में ब्रह्मविद्या मंदिर का साधक वर्ग समर्पण भाव से लगा हुआ है। ऐसे प्रयोग और ऐसे साधकों को मेरा शत-शत नमन।
-अमी बहन
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