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पवनार डायरी; विनोबा विचार प्रवाह: ब्रह्मविद्या मंदिर: स्वावलंबन से आत्मावलंबन की राह पर

ब्रह्मविद्या मन्दिर के प्रति मनोभावों की अभिव्यक्ति की इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत हैं ज्योत्सना बहन के मनोभाव

आचार्य विनोबा भावे द्वारा स्थापित ब्रह्मविद्या मंदिर स्वावलंबन, परस्परावलंबन और आत्मावलंबन के आधार पर टिका हुआ है। जब हमारे मन से भय निकल जाता है, तब हम अध्यात्म के क्षेत्र में प्रवेश कर पाते हैं। हमारे जीवन का प्रत्येक काम चित्तशुद्धि के लिए होना चाहिए। सामूहिक साधना के लिए अंहकार से मुक्त होना जरूरी है। समाज की बागडोर महिलाओं को हाथ में हो। इस उद्देश्य से विनोबा जी ने ब्रह्मविद्या मंदिर स्थापित किया।

विनोबाजी ने ब्रह्मचारी बहनों के लिए इस ब्रह्मविद्या मन्दिर की स्थापना की। यहां पर कोई संचालक नहीं है। यहां रहने वाली बहनें सर्वसम्मति से सामूहिक साधना में संलग्न हैं। उन्होंने बताया कि विनोबा जी ने पूरे परिसर को प्रज्ञापथ, कारुण्य पथ, त्याग पथ, ज्ञान पथ, त्याग पथ जैसे नाम दिए हैं। विनोबा समाधि के समीप किसी प्रकार का कोई चित्र अथवा मूर्ति नहीं रखी गई है।

विनोबा जी ने पूरे परिसर को प्रज्ञापथ, कारुण्य पथ, त्याग पथ, ज्ञान पथ, त्याग पथ जैसे नाम दिए हैं। विनोबा समाधि के समीप किसी प्रकार का कोई चित्र अथवा मूर्ति नहीं रखी गई है।

विनोबा समाधि पर गीताई और रामहरि लिखा हुआ है। पूरे ब्रह्मविद्या मंदिर परिसर में विनोबा जी को खुदाई के समय जो मूर्तियां मिलीं, उनकी स्थापना की गई है। इसमें भरत, राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्ति बहुत खास है। जब विनोबा जी धुलिया जेल में गीता प्रवचन कर रहे थे, तब उन्होंने जैसा वर्णन किया था, उन्हें पवनार में खुदाई के दौरान वैसी ही मूर्तियां मिलीं। ब्रह्मविद्या मंदिर परिसर में समाधिस्थ वृक्ष हैं। आश्रम में आज भी ऋषि पद्धति से खेती की जाती है। यहां का रसोईघर पूरा स्वावलंबी है। ब्रह्मविद्या मंदिर में कर्म, ज्ञान और भक्ति का अद्भुत समन्वय है।

Co Editor Sarvodaya Jagat

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