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पवनार डायरी

विनोबा विचार प्रवाह ब्रह्मविद्या मंदिर तीर्थ के मुख्य द्वार से आश्रम की तरफ सीधे देखने पर पहले गौतम भाई का गरुण बजाज थ्री व्हीलर खड़ा है, जिसका उपयोग वे खुद या इमरजेंसी में प्रदीप भाई भी कर लेते हैं। उसके बाद का कमरा देखने में बहुत छोटा है लेकिन उसका महत्व बहुत बड़ा  है, क्योंकि यहीं पर बाबा के हजारों प्रवचनों की अमूल्य निधि को गौतम भाई ने संभाल कर रक्खा है। विनोबा साहित्य प्रकाशन का भी सूत्रधार यही सुंदर कक्ष रहा है। यहीं पर आगंतुकों के लिए शीतल जल की अति उत्तम व्यवस्था है। आश्रम में जो अतिथि बहनें आती हैं, उनके रहने के लिए महिला अतिथि निवास बना है। इसी का दूसरा खंड आरोग्य निवास है, जहां आश्रम की कोई बहन या अतिथि दोनों की समय समय पर सेवा की जाती है। पूज्य बाबा ने परस्पर सेवा की बात जो कही है, वह सूत्र यहां लागू है। वर्ष भर के लिए अन्न भंडारण का एक सुंदर कक्ष है, जिसमें गेहूं, चावल, दालें आदि सुरक्षित हैं। यहीं पर एक  चक्की है, जिससे दूसरे-तीसरे दिन ताजा आटा और दलिया पीसा जाता है। सामूहिक भोजन करने का कक्ष तो पूजा कक्ष ही लगता है। सबेरे 7 .30 पर नाश्ते की घंटी बजती है, 11 बजे दिन के भोजन और 5 बजे सायंकालीन भोजन की घंटी होती है। भोजन बनाने का तो सब कुछ दर्शनीय और सभी के लिए अनुकरणीय है। गत 63 वर्षों से गौशाला के गोबर से चलने वाली गोबर गैस से रोटी के अलावा सारा भोजन एक साथ पकाने की अद्भुत व्यवस्था है।रोटी के लिए लोई पहले गिनकर बन जाती है। वह भी एक बराबर बनाना एक कला है। उसको बेलने का काम बहनें कर देती हैं, लेकिन रोटी तवा पर पलटकर कोयले की आंच पर सेंकने की कला तो गौतम भाई को ही अच्छे ढंग से सधी है। अभी राकेश भाई भी मदद कर देते हैं। परोसने के लिए खाना बहुत व्यवस्थित पक्तिबद्ध लगा दिया जाता है। भोजन के प्रेममय सुंदर वितरण हेतु रोटी, चावल, सब्जी, दही आदि बहनें परोसती  हैं। भोजन मंत्र के बाद जमीन पर, डेस्क पर या टेबल पर खाने बैठ जाते हैं। यहां पर देश भर की पत्र पत्रिकाएं उपलब्ध हैं, जिन्हें पढ़ने वाले पढ़ते भी रहते हैं। भोजन के बाद सभी को अपने-अपने बर्तन धोने होते हैं. इसके लिए भी अच्छी व्यवस्था है, जहां खड़े होकर सभी लोग बर्तन धो लेते हैं। भोजन बनाने में जिन बर्तनों का उपयोग होता है, वे भी एक स्थान पर इकट्ठे कर लिए जाते हैं। ये बर्तन भी मिल-जुलकर साफ करके पोंछकर सही स्थान पर रक्खे जाते हैं। जो बहनें प्रेम भाव से खिलाने में लगी हैं, वे भी जब खाना खा लेती हैं, उसके बाद  पोंछा लगाकर रसोड़ा बंद कर दिया जाता है।
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