डॉ अभय बंग
आज विश्व की स्थिति क्या है? और हमारी स्थिति क्या है? आज का विषय है बढ़ती आर्थिक असमानता, हिंसा और युद्ध के आज के दौर में शांति और न्याय के समक्ष चुनौतियाँ. मुझे लगता है कि विश्व की प्रमुख वैश्विक समस्याएं क्या है? उसमें गांधी का स्थान क्या है? उसमें हमारी राह क्या हो सकती है? मुझे इस विषय पर बोलना चाहिए. पूंजीवाद, हिंसा और जलवायु परिवर्तन मेरी दृष्टि में आज तीन सबसे बड़ी वैश्विक समस्याएं हैं. पूंजीवाद और मशीनवाद आया तो इस नाम से था कि समृद्धि लाएगा. कुछ हद तक लाया भी, लेकिन उससे ज्यादा तो आर्थिक असमानता लाया.
ऑक्सफैम के रिपोर्ट हर साल आती ही रहती है. देवास कांफ्रेंस के समय भी आई थी. बहुत विस्तार में नहीं जाऊंगा, लेकिन हम सब जानते हैं कि दुनिया में कितनी भीषण विषमता है! और भारत में भी है! इसका मूल कारण थॉमस पिकेटी ने अपनी किताब ‘कैपिटल इन द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी’ में बताया है. ऐसा माना जाता है कि दास कैपिटल के बाद इस विषय की यह दूसरी इतनी बड़ी किताब है. थॉमस पिकेटी ने इसका डायग्नोसिस किया है कि आखिर असमानता क्यों बढ़ रही है. पिछले 100 सालों में रेट ऑफ रिटर्न ऑन द कैपिटल इज मोर दैन द रेट ऑफ रिटर्न ऑन द लेबर. श्रम का जो मूल्य होता है, वह जिस गति से बढ़ा, उससे बहुत ज्यादा तेजी से पूंजी पर वापस मिलने वाला रिटर्न इंटरेस्ट बढ़ा, आमदनी बढ़ी. इस तरह पूंजी कुछ हाथों में इकट्ठा होती गयी. 21वीं सदी का यह सबसे बड़ा अभिशाप है. पूंजीवाद का परिणाम यह हुआ कि आर्थिक असमानता आई. हमें सिखाया गया है कि चोरी बुरी चीज है. पड़ोसी से उसका कुछ छीन लेना बुरी चीज है. यह लोकजीवन के नीतिशास्त्र ने हमको सिखाया है. हमारा धर्म हमको सिखाता है. पूंजीवाद ने इसका उल्टा कर दिया. लोगों को लोभी बना दिया. पूंजीवाद लोभ को बढ़ावा देता है. ग्रीड को गुड कहता है और लोकजीवन अनियंत्रित हो जाता है. असमानता तो आर्थिक असमानता के पीछे-पीछे बढ़ती है. यह पूंजीवाद का लटका झटका है कि आर्थिक असमानता तो रहेगी लेकिन राजनीतिक तौर पर समानता भी रहेगी. यह छल है. क्योंकि इसी के बाद फिर तानाशाही भी आती है.
दूसरी समस्या है पूँजीवाद. पूंजीवादी रहन सहन पर्यावरण को नष्ट करता है. पूरी सृष्टि बीमार हो रही है. हमारा और आपका अस्तित्व ही खतरे में है.एनक्लेव ब्लॉक बहुत बड़े ब्रिटिश सेंट हुए, उन्हें पर्यावरण के क्षेत्र का गांधी कहा जाता था. उन्होंने कहा कि प्रकृति एक सजीव जीव की तरह बर्ताव करती है. वे विश्व को बार-बार आगाह करते रहे कि अभी भी समझो, पर्यावरण बहुत दूषित हो रहा है. उन्होंने कहा कि इंसान ने खुद को बचाने का आखिरी मौका 1995 में ही गंवा दिया है था. मैं सोचता हूँ कि उनकी बात गलत साबित हो और इंसान अपने आप को बचा ले जाय.
तीसरी बड़ी वैश्विक समस्या है हिंसा. हिंसा एक अभिशाप है. यूक्रेन को देखिये, हिंसा दो लोगों के बीच है, दो देशों के बीच है या दो वर्गों के बीच है, बुरी ही कही जाएगी, बुरी ही साबित होगी. हिंसा विभिन्न धर्मों के बीच भी होती है. भारत में इसका विद्रूप अभी दिखाई दे रहा है. भारत में आज जितना हिंदू मुस्लिम हो रहा है, मैं मानता हूं कि 1947 में जब भारत का विभाजन हुआ, शायद उस समय ही इतना बड़ा तनाव और द्वेष रहा होगा. उसके बाद के 70 सालों में तो ऐसा नहीं था.
अब असमानता, पर्यावरण और हिंसा के सवाल पर पर गांधी का क्या जवाब है, वह काफी इंटरेस्टिंग है. प्रश्न वैश्विक हैं और गांधी के जवाब व्यक्तिगत है. वे सामाजिक और आर्थिक जवाब भी देते हैं, लेकिन ज्यादातर आंतरिक जवाब देते हैं. 1909 में हिंदी स्वराज लिखते समय उन्होंने आने वाला यह काल भी देख लिया था कि औद्योगीकरण और पूंजीवाद का क्या परिणाम होगा? पश्चिम की उपभोगवादी संस्कृति से उन्होंने बार बार आगाह किया था. आज से 114 साल पहले ही उन्होंने हमारी समस्याओं के समाधान भी बता दिए. पूंजीवाद के सामने गांधी ट्रस्टीशिप का सिद्धांत लेकर खड़े हैं. वे कहते हैं कि पूंजीवादी को मत मारो, लेकिन उसकी संपत्ति का उसकी इच्छा के साथ सामाजिक उपयोग करो, यह ट्रस्टीशिप का दर्शन है. ट्रस्टीशिप की बात इंग्लैंड में गांधी जी के कहने से पहले भी चली थी. तब लोग समझ नहीं पाए थे. लोगों को विश्वास ही नहीं हुआ कि खूंखार पूंजीवादी खुद अपनी संपत्ति का समाज के लिए दान कर देगा, लेकिन अब हम देख रहे हैं कि ऐसा हो रहा है. बिल गेट्स कर रहे हैं. वारेन बफे कर रहे हैं. अजीम प्रेमजी कर रहे हैं. टाटा कर रहे हैं. ये अरबपति यह कह रहे हैं कि हमारे मरने के बाद हमारी सारी संपत्ति सामाजिक काम के लिए दान कर दी जाएगी. गांधी ने जिस ट्रस्टीशिप व्यवस्था का समर्थन किया, आज बड़े पैमाने पर दुनिया के पूंजीवादी उसको अमल में लाने की बात कर रहे हैं. पूंजीवाद से उपजी आर्थिक असमानता का उपाय, जो गाँधी बता रहे हैं, वह ट्रस्टीशिप और अपरिग्रह है.
दुनिया में बढ़ती सुविधाओं से युक्त उपभोक्ता संस्कृति के विस्तार के कारण ही आज पृथ्वी गर्म हो रही है. प्रकृति में प्रदूषण फैलाते जाने का काम पहले तो सिर्फ यूरोप और अमेरिका वाले ही करते थे, अब चीन और भारत भी उसमें शामिल हो गए हैं. दोनों की जनसंख्या ज्यादा है. चीन लगभग अपने चरम आर्थिक विकास पर पहुंच गया है और भारत अगले तीसेक साल में पहुंच जाएगा. यहाँ तक पहुंचने के लिए इंसान उपभोग करता है, आलस्य करता है, ज्यादा से ज्यादा सुख चाहता है और उसके लिए भूगर्भ को जलाता है, अगली पीढ़ी के रिसोर्सेज को जलाता है. गांधी का इस बारे में भी बहुत साफ़ संदेश है- नेचर कैन फुलफिल एवरीवंस नीड, बट नॉट एनीबडीज़ ग्रीड.
गांधी से पहले पांच ही धार्मिक व्रत थे. जिनको यम-नियम आदि कहा जाता है. गांधी ने कई अन्य व्रतों सहित उसमें अस्वाद भी जोड़ा; यानी स्वाद मत लो. यह जीभ के सामान्य स्वाद के बारे में गांधी नहीं कह रहे हैं, वे हमारी इंद्रियों द्वारा सुख की अनुभूति से उपजी प्रत्याशा के पीछे हमारे दौड़ने को मना करते हैं. उसका एक तत्व है ब्रह्मचर्य. उन्होंने ब्रह्मचर्य धारण करने की बात कही. गांधी उपभोग को मर्यादित करने की बात कहते हैं. गांधी, मन में सुख की लालसा को कम करने की बात करते हैं. एक बार उनको नेहरू जी के यहां इलाहबाद में खाने पर बुलाया गया. खाने के बाद जब गांधी जी हाथ धो रहे थे, तो जवाहरलाल ऊपर से पानी डाल रहे थे. दोनों आपस में बातें भी कर रहे थे. हाथ धोने के बाद भी जवाहर पानी डाले जा रहे थे. गांधीजी ने कहा कि जवाहर, पानी बर्बाद मत करो. जवाहरलाल ने मजाक में कहा कि बापू, यहां तो गंगा और यमुना बहती हैं. पानी की कमी कहाँ होने वाली है? गांधीजी ने कहा कि हां जवाहर, गंगा और यमुना बहती हैं, लेकिन केवल तुम्हारे लिए नहीं बहती हैं. गंगा और यमुना तो ईश्वर की कृति हैं. प्रकृति अपने आप में पवित्र होती है, उसको वैसा ही होने का हक है. तुमको कोई हक नहीं कि तुम पानी की एक बूंद भी बर्बाद करो. पर्यावरण के सन्दर्भ में गांधी हमको हमारे सुखों की मर्यादा बताते हैं.
हिंसा के विषय में गांधी से बढ़कर कोई दूसरा पैगम्बर पिछले हजार, दो हजार साल में हुआ ही नहीं. अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के नेता नेल्सन मंडेला अतिरेक में हिंसा के रास्ते चले गये. बम बनाना और बंदूकों का इस्तेमाल करना उन्हें जायज़ लगता था. गोरों ने उनको 27 साल जेल में रखा. जब मैं वह जगह देखने गया, तो मन बहुत खराब हुआ. वहां नेल्सन मंडेला की कैदी के रूप में एक फोटो है. जेल में उन्हें काम करना पड़ता था और जूते नहीं देते थे उन्हें जेल में. बेरहमी से कष्ट दिलवाते थे. नेल्सन मंडेला के साथ जो कुछ कैदी थे, उनसे मैंने पूछा कि आप मंडेला के साथ इतने साल रहे, आप पर उनका क्या असर हुआ? उन्होंने बताया कि उनका रंग काला था. वे खुद को गोरों के खिलाफ टेररिस्ट कहते थे. वे कहते थे कि मेरे मन में धड़कता हुआ क्रोध और हिंसा थी. लेकिन बाद में गोरों के प्रति मेरे मन में जो हिंसा थी, उससे उन्होंने मुझे मुक्त किया. वे खुद भी कैसे मुक्त हुए, उन्होंने लिखा है कि जेल में गांधी को पढ़ने के बाद मुझ पर असर हुआ. गांधी की अहिंसा का परिणाम तो देश की सीमाएं लांघकर बहुत दूर-दूर तक फैला हुआ है. तो तीन जो वैश्विक समस्याएं हैं, उन पर गांधी के ये उपाय हैं. गांधी के ये सभी उपाय आज युगानुकूल हो गए हैं.
गांधी जी की तीन किताबें हमारे लिए कुरान, बाइबिल और गीता जैसी होनी चाहिए. उनकी आत्मकथा, हिंद स्वराज और मंगल प्रभात. ये तीनों किताबें एकदूसरे की पूरक हैं, एक किताब दूसरी किताब की जगह नहीं ले सकती. हमको उनका अध्ययन करना चाहिए, बार-बार अध्ययन करना चाहिए, तब शायद हमको समझ में आयेगा कि वह बूढ़ा क्या कह रहा था. गाँधी ने हमें सत्याग्रह दिया भी. व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर सत्याग्रह करके दिखाया भी. आजकल की तरह रास्ते पर किसी भी चौराहे पर खड़े होकर चीखने को सत्याग्रह कहने की गलती हमें नहीं करनी चाहिए. गांधी का सत्याग्रह हमको समझना पड़ेगा, विनोबा ने तो बड़ा सुंदर शब्द दिया. उन्होंने तो कह दिया कि शायद सत्याग्रह शब्द में ही कुछ गलती है. अब सत्याग्रह ठहरा गांधी का चुना हुआ शब्द और गांधी जीवित नहीं हैं. गाँधी ने जिसको पहला सत्याग्रही चुना, वह विनोबा ही कह रहे हैं कि शायद सत्याग्रह शब्द ही गलत है.
गांधी सामूहिक सत्याग्रह को शुद्ध रखते थे, लेकिन हमारे जमाने में अन्ना हजारे का सत्याग्रह हुआ, तो हम सबको बहुत उत्तेजना हुई, बहुत उम्मीद जगी, लेकिन उस सत्याग्रह से अरविंद केजरीवाल निकले और उसमें से ही आम आदमी पार्टी निकली, इस तरह सत्याग्रह सत्ताग्रह बन जाता है.
गांधी के जो सामाजिक पाए हैं, वे हैं उनके रचनात्मक काम. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि रचनात्मक काम की अंतिम परिणति ही स्वराज्य होगा और स्वराज का मतलब मेरा राज नहीं है. अगर हर कोई मेरा राज कहेगा तो फिर तो महाभारत होना ही है. हम अपनी इच्छाओं पर, अपने क्रोध पर नियन्त्रण कर सकें, यह स्वराज है. हम जहां मौजूद हैं, वहीं पर रचनात्मक काम करना समाज परिवर्तन का दूसरा तरीका है.
यहां पर जो कुछ भी है, उसमें ईश्वर निवास करता है, यह अनुभूति ही अंतिम ध्येय है, इसी अनुभूति पर आधारित शब्द है गांधी का सर्वोदय. इसी आधार पर हमने तीन वैश्विक समस्याओं का जिक्र किया. उनके समाधान के लिए गाँधी ने जो उपाय बताए, उनमें ज्यादातर तो व्यक्तिगत हैं, एकादश व्रत दूसरे सामाजिक उपाय हैं. रचनात्मक कार्यक्रम कालक्रम के अनुसार बदल सकते हैं, उसमें कोई समस्या नहीं है. आज इसमें शायद हमको कुछ नए रचनात्मक कार्यक्रम और नए व्रत जोड़ने पड़ेंगे. पर्यावरण को नष्ट किए बगैर हम अविनाशी पद्धति से कैसे जियें, यह सत्याग्रह का आचरण हमें सिखाता है. गांधीवाद और सर्वोदय का यही आध्यात्मिक आधार है, यह समझ लेना हमारे लिए आवश्यक है. अन्यथा बार-बार हम उन्हीं संघर्षों में पड़ते रहेंगे.
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