प्रथम चरण के अन्तिम दिन 17 अक्टूबर 2021 को बीज सत्याग्रह यात्रा वाराणसी के लालपुर गाँव पहुँची। यहाँ पर बेटियों की सुरक्षा, शिक्षा, आत्मसम्मान एवं स्वावलंबन के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें सैकड़ों की संख्या में महिलाएं और समाज परिवर्तन में लगे साथी मौजूद थे। नन्दलाल मास्टर के नेतृत्व में यात्रा के सदस्यों का स्वागत किया गया। देश की आधी आबादी किस तरह दोहरी मानसिकता का शिकार हो रही है, इसका बड़ी ही संजीदगी से कार्यक्रम में गीतों और नाटकों के माध्यम से मंचन किया गया। स्वप्निल श्रीवास्तव ने बीज सत्याग्रह यात्रा के उद्देश्यों को साझा करते हुए कहा कि बेटियाँ जीवनदात्री हैं, उनके बिना जीवन की बात की ही नहीं जा सकती. उसी तरह यह धरती हमारी माँ है, जीवनदायिनी है। आज हम उसका अन्धाधुन्ध दोहन कर रहे हैं। भोग विलास की मानसिकता के कारण हम धरती के दर्द को नहीं समझ पा रहे हैं। खेती किसानी में अन्धाधुन्ध रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग कर हम अपनी धरती माँ को बंजर बना रहे हैं। बीजारोपण के द्वारा ही हम जीवन का सूत्रपात करते हैं और आज हमारे देसी बीज ही हमारे पास नहीं हैं। हम उनके संरक्षण व संवर्द्धन के तरीकों को भूल गये हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने बीजों को अपनी गिरफ़्त में ले लिया है। बीजों पर नियंत्रण अर्थात जीवन पर नियंत्रण, हमें इस खतरे को समझना होगा। बीजों के संरक्षण व संवर्धन का काम बेटियाँ ही अच्छे ढंग से कर सकती हैं और वही अपने प्रयासों से इस धरती को जहरीली होने से बचा सकती हैं। हमें जहरीली कंपनियों को और जहरीली सोच को भगाना होगा। तभी हम स्वराज के रास्ते पर चल सकेंगे।
दूसरे सत्र में वाराणसी के कोसड़ा गाँव में किसानों के साथ बैठक हुई। किसानों की समस्याओं को सुनते हुए जैविक खेती विशेषज्ञ दरबान सिंह नेगी ने कहा कि किसानों की समस्या गम्भीर है और इससे निदान पाने के लिए हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी। आज बड़ी बड़ी कंपनियों ने खेती को लगभग अपने कब्जे में ले लिया है और छोटे व मध्यम किसान के लिए खेती को घाटे का सौदा बना दिया गया है। हमें यह समझना होगा, हम अपने सामूहिक प्रयासों द्वारा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के इस मकड़जाल को काट सकते हैं। उन्होंने अनेक किस्म के बीजों को सही तरीके से निकालकर संरक्षित करने की विधि भी बतायी। स्वप्निल श्रीवास्तव ने किसानों को बीजयात्रा की जरूरत बताते हुए कहा कि अभी भी भारत में बहुत से उन्नत किस्म के देसी बीज हैं, जिन पर कब्ज़ा करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। हमें अपने बीजों को बचाना होगा। स्थानीय स्तर पर जगह जगह उनका संवर्धन व संरक्षण करने की जरूरत है। हमारा यह कार्य देश निर्माण का अद्वितीय कार्य होगा और इसके द्वारा ही हम देश को कम्पनीराज से बचा सकते हैं। बैठक के अन्त में किसानों ने कहा कि इस तरह का कार्यक्रम नियमित रूप से चलना चाहिए और आसपास के क्षेत्र में ऐसा केन्द्र भी बनना चाहिए जो किसानों को सैद्धांतिक प्रशिक्षण के साथ ही खेती किसानी का व्यावहारिक प्रशिक्षण भी प्रदान करे।
-स्वप्निल श्रीवास्तव
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