Political

राजनीति में गिरती नैतिकता

-डॉ स्नेहवीर पुण्डीर

नैतिकता का शाब्दिक अर्थ है, नीति के अनुरूप आचरण। राजनीति में नैतिकता का अर्थ भी राज्य को  नीति के अनुरूप संचालित करना है, परन्तु आज राजनीति में नीति की परिभाषा बदल चुकी है। बेशर्मी के साथ येन केन प्रकारेण सत्ता हथियाना और अपने व अपनी भावी पीढ़ियों के लिए राजसी सुखों का प्रबंध करना ही राजनीति का उद्देश्य दिखाई देता है। यह भी सोचना सही नहीं है कि जनसाधारण के दबाव से ही राजनीति सही दिशा में चलती है। इतिहास बताता है कि यह आम आदमी का दायित्व नहीं है। मूल्यों और दिशाओं को तय करने काम असल में बुद्धिजीवी करते हैं और वे भी तभी कर सकते हैं,  जब वे या तो सत्य की खोज करते हैं या लोगों के प्रति अपने को उत्तरदायी समझते हैं। लेकिन जब बौद्धिक समाज में जड़ता आ जाती है, तब जनसाधारण भी मूल्यों के प्रति उदासीन हो जाता है। देखा जाए तो जब सामाजिक व्यवस्था की देखभाल करने वाली सत्ता नीतिविहीन हो जाती है, उसकी कार्यप्रणाली एवं व्यवहार में मानवीय मूल्यों का समावेश नहीं रह जाता, तो ऐसी राजनीति नैतिकता से विहीन हो जाती है। इसका परिणाम अनर्थकारी होता है।

वर्तमान दौर पर निगाह डालें तो राजनीति में संवेदना और नैतिकता लगातार कम होती जा रही है। लखीमपुर खीरी जैसी घटना केवल राजनीति पर ही सवाल खड़ा नहीं करती, बल्कि मानवीय संवेदना को भी कठघरे में लाती है। अभी तक अमीर बापों की नशे में धुत संतानों द्वारा गरीब लोगों को कुचलकर मार डालने के मामले ही सामने आते रहे हैं। लेकिन जब कभी समाज में अमीर और रसूखदार लोगों द्वारा जघन्य अपराध किये गये, तो पूरे समाज ने विरोध में उतरकर अपने सभ्य होने का प्रमाण दिया। नैना साहनी तंदूर हत्याकांड हो या नितीश कटारा मर्डर केस या निर्भया का मामला, इन मामलों पर पूरे समाज ने एकजुटता दिखाई, लेकिन लखीमपुर खीरी की घटना हमें सोचने के लिए मजबूर करती है कि मानवीय संवेदना का स्तर लगातार कम होता जा रहा है या हम एक निष्ठुर और असंवेदनशील समाज होने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं? एक महत्वपूर्ण विषय राजनेताओं और राजनीति का गिरता स्तर भी है। समाज के लिए यह भी चिंतनीय है कि जिस क्रूर तरीके से इस घटना को अंजाम दिया गया, उसकी वीडियो भी वायरल हुई। इसके बावजूद सम्बन्धित मंत्री महोदय से न तो इस्तीफा लिया गया, न एक जिम्मेदार पद पर होने की नैतिकता के निर्वहन के लिए इस मामले में न्याय होने तक स्वयं इस्तीफे की कोई पेशकश की गई। स्वयं इस्तीफे की उम्मीद तो खैर आज के इस दौर में बेमानी ही समझनी चाहिए, क्योंकि यह वह दौर नहीं है, जब राजनेता अपने विभाग से सम्बन्धित किसी और की गलती पर भी इस्तीफा दे दिया करते थे। हम सबको यह भी मालूम ही है कि गृह राज्यमंत्री जैसे पद पर बैठा हुआ व्यक्ति किसी भी जांच को बहुत आसानी से प्रभावित कर सकता है. इससे भी गंभीर मसला यह है कि सम्बन्धित सत्ताधारी दल अपने नेता को बचाता नजर आता है। वहीं बहुत से लोग दलीय प्रेम के कारण मंत्री पुत्र को क्लीनचिट देते भी दिखाई दे रहे हैं। हमारी कमजोर याददाश्त पर राजनेताओं को इतना भरोसा है कि वे ये अच्छे से समझते हैं कि कितने भी गंभीर मामले को थोड़े समय से ज्यादा याद नहीं रखा जाता है।

भारतीय लोकतंत्र की शुरुआत से ही देश के बड़े नेताओं ने राजनीतिक नैतिकता का ध्यान रखने का यथासंभव प्रयास किया. इसी राजनीतिक नैतिकता के चलते देश की प्रथम सरकार में डॉ आंबेडकर और श्यामाप्रसाद मुखर्जी को मंत्रिमंडल में जगह दी गई। एक बार लोहिया के कहने पर एक महिला ने नेहरू का गिरेबान पकड़ लिया और कहा कि “भारत आज़ाद हो गया, तुम देश के प्रधानमंत्री बन गए, मुझ बुढ़िया को क्या मिला?” इस पर नेहरू का जवाब था, “आपको ये मिला है कि आप देश के प्रधानमंत्री का गिरेबान पकड़ कर खड़ी हैं।” राजनीतिक नैतिकता की एक और बानगी जो हमेशा विमर्श में रही, केरल में सोशलिस्ट पार्टी की सरकार थी। वहां आन्दोलन पर पुलिस ने बल प्रयोग किया, तीन लोग मर गये। डॉ लोहिया ने कहा कि आजाद भारत मे भी पुलिस_जनता_पर_गोली चलाये, ये बर्दाश्त नही किया जा सकता और उन्होने अपने ही दल के मुख्यमंत्री से इस्तीफा मांग लिया.

विचारणीय यह भी है कि सत्ताधारी दल को यह बिलकुल महसूस नहीं होता कि ऐसे लोगों से तुरंत इस्तीफा लेकर समाज में सन्देश देने का काम किया जाये कि संविधान को अपने हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं दिया जा सकता, वरना देश भर में अराजकता व्याप्त होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। हमे पूर्व प्रधानमन्त्री अटलबिहारी की उस बात को याद करना चाहिए, जिसमें वे संसद में बयान देते हैं कि सरकारे आती जाती रहेंगी, नेता भी आते जाते रहेंगे, लेकिन ये देश हमेशा रहेगा और रहना चाहिए। क्या उनकी इस बात को उनके ही दल के लोग जरा सा भी समझ पाए हैं?

Co Editor Sarvodaya Jagat

Share
Published by
Co Editor Sarvodaya Jagat

Recent Posts

सर्वोदय जगत – 01-15 मई 2023

  सर्वोदय जगत पत्रिका डाक से नियमित प्राप्त करने के लिए आपका वित्तीय सहयोग चाहिए।…

7 months ago

बनारस में अब सर्व सेवा संघ के मुख्य भवनों को ध्वस्त करने का खतरा

पिछले कुछ महीनों में बहुत तेजी से घटे घटनाक्रम के दौरान जहां सर्व सेवा संघ…

1 year ago

विकास के लिए शराबबंदी जरूरी शर्त

जनमन आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था।…

1 year ago

डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत थे

साहिबगंज में मनायी गयी 132 वीं जयंती जिला लोक समिति एवं जिला सर्वोदय मंडल कार्यालय…

1 year ago

सर्व सेवा संघ मुख्यालय में मनाई गई ज्योति बा फुले जयंती

कस्तूरबा को भी किया गया नमन सर्वोदय समाज के संयोजक प्रो सोमनाथ रोडे ने कहा…

1 year ago

इतिहास बदलने के प्रयास का विरोध करना होगा

इलाहबाद जिला सर्वोदय मंडल की बैठक में बोले चंदन पाल इलाहबाद जिला सर्वोदय मंडल की…

1 year ago

This website uses cookies.