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राष्ट्र-निर्माण समागम ने जारी किया बनारस घोषणा पत्र

नफरत की राजनीति के खिलाफ निर्णायक संघर्ष

आज़ादी की 75 वीं सालगिरह पर संघर्ष वाहिनी समन्वय समिति द्वारा 13-14 अगस्त को वाराणसी में आयोजित राष्ट्रनिर्माण समागम में गांधीवादी, समाजवादी और पर्यावरण आंदोलनों से जुड़े लोगों के बीच देश की ज्वलंत समस्याओं के ख़िलाफ़ साझा मुहिम चलाने पर सहमति बनी और संयुक्त रूप से ‘बनारस घोषणा-पत्र’ जारी किया गया।

नफरत की राजनीति, बेलगाम महंगाई और बेरोजगार युवाओं की पीड़ा से कराहते देश को बचाने के लिए राजघाट, वाराणसी स्थित सर्व सेवा संघ परिसर में देश भर से जुटे गांधीवादी, समाजवादी संपूर्ण क्रांति के योद्धाओं ने सरकार के खिलाफ बिगुल फूंका. ये वे लोकतंत्र सेनानी हैं, जिनका हौसला निरंकुश सत्ता का आपातकाल भी नहीं तोड़ पाया था। दो दिवसीय राष्ट्र निर्माण समागम में जन-सरोकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए देश भर में मुहिम चला रहे गांधी, विनोबा व जयप्रकाश नारायण की परंपरा से जुड़े स्वयंसेवक ही नहीं, किसानों-मजदूरों के लिए आवाज बुलंद करने वाले जनवादी कार्यकर्ता भी शामिल हुए।


संघर्ष वाहिनी समन्वय समिति के बैनर तले आयोजित इस समागम में मौजूदा सत्ता के सबसे बड़े हथियार सीबीआई और ईडी से डरे बगैर फासीवादी ताकतों से सीधा मुकाबला करने का संकल्प लिया गया। कुछ ऐसे लड़ाकों की टोलियां भी तैयार की गयीं, जो आपातकाल की कैद से गुजर चुके हैं और अभी भी जातिवादी व सांप्रदायिक ताकतों से मुकाबला करने की ताकत रखते हैं। राष्ट्र निर्माण समागम में आए एक्टिविस्टों ने जनहित के मुद्दों पर जनजागरण और जनप्रतिरोध के जरिए साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सरकार के ताबूत में आखिरी कील ठोंकने का संकल्प दोहराया। साथ ही केंद्र सरकार की दमनकारी नीतियों पर जोरदार हमला भी बोला।

13 व 14 अगस्त 2022 को आयोजित राष्ट्र निर्माण समागम में देश भर से आए डेढ़ सौ से अधिक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आरएसएस और भाजपा के कारपोरेट घरानों से गठजोड़ पर विस्तार से चर्चा की। सामाजिक कार्यकर्ताओं को बताया गया कि जनहित के मुद्दों पर देशव्यापी आंदोलन चलाने के लिए जगह-जगह बैठकें आयोजित की जा रही हैं। युवा संगठन हल्ला बोल, छात्र युवा हुंकार और युवा मंच मिलकर रोजगार के सवाल पर आंदोलन, पदयात्रा और जनसंवाद आयोजित कर रहे हैं। अब जनता को बताना पड़ेगा कि आरएसएस, भाजपा और कारपोरेट घरानों का गठजोड़ योजनाबद्ध ढंग से लोकतांत्रिक संस्थाओं को व्यवस्थित तरीके से खत्म करने के लिए मुहिम चला रहा है। फासीवादी ताकतों के दमन और आतंक से जनता को सावधान करने की जरूरत है। निर्णय लिया गया कि आसमान छू रही महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त जनता को नई राह दिखाने के लिए देश भर में पदयात्राएं निकाली जाएंगी और जनता के साथ बड़े पैमाने पर संवाद कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

ट्रोल आर्मी खड़ी कर रही भाजपा

राष्ट्र निर्माण समागम के उद्घाटन सत्र में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि न्यायपालिका की हालत इतनी दयनीय हो गई है कि वह मानवाधिकारों की रक्षा करने के बजाय, खुद मानवाधिकारों का हनन करने में जुट गई है। तीस्ता सीतलवाड़ और हिमांशु कुमार के खिलाफ फ़ैसले का उदाहरण हमारे सामने है। भारत में अब एक ऐसी अपसंस्कृति खड़ी की जा रही है, जो देश का बेड़ा गर्क कर देगी। देश को अंधेरी सुरंग की ओर ले जाया जा रहा है, जहां लोकतंत्र सिर्फ पैसे का खेल बनकर रह गया है। देश में ज्यूडिशियल, इलेक्टोरल, एजूकेशनल और इंस्टिट्यूशनल रिफॉर्म्स की जरूरत है, लेकिन खड़ी की जा रही है सोशल मीडिया की ट्रोल आर्मी। आज बेतहाशा महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है। यह सिर्फ समय की जरूरत नहीं, हम सबकी जिम्मेदारी है। देश को इन मुसीबतों और मुश्किलों से उबारने के लिए राष्ट्रव्यापी जनांदोलन खड़ा करने की जरूरत है।

बेरोजगारी का मुद्दा उठाते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि यह एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर यूथ लामबंद हो सकता है। बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे पर ज्यादा से ज्यादा लोग हमारी मुहिम के साथ जुड़ सकते हैं। सरकार से रोजगार के कानूनी अधिकार की मांग होनी चाहिए। मांग यह भी उठनी चाहिए कि सभी सरकारी रिक्तियां छह महीने के अंदर विश्वसनीय तरीके से भरी जाएं, निजीकरण पर रोक लगाई जाए और ठेके पर नौकरियों की व्यवस्था खत्म हो। उन्होंने कहा कि जेपी को जिन हालात में सम्पूर्ण क्रांति का आवाहन करना पड़ा था, आज देश के हालत उनसे कहीं अधिक बदतर हो चुके हैं. पिछले 8 सालों में देश को जिस तरह रसातल में ले जाया गया है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था. एक तो इस देश में आरएसएस की साम्प्रदायिक और दकियानूसी विचारधारा का प्रसार हुआ है, दूसरे वर्तमान केन्द्रीय सरकार के दो प्रमुख चेहरे अपने एजेंडे को आरएसएस की मूल विचारधारा से भी आगे, और अधिक पतन की ओर ले गये हैं. इन्होने देश की न्यायपालिका, चुनाव आयोग, सीबीआई और ईडी जैसी संवैधानिक संस्थाओं को सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में अपने अधीन कर लिया है. विश्वविद्यालयों को तो पूरी तरह से आरएसएस के हवाले कर दिया गया है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जेपी आंदोलन से जुड़े प्रखर समाजवादी नेता और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अवकाशप्राप्त प्राध्यापक प्रो. आनंद कुमार ने कहा कि देश में आजकल हिन्दू होने का अलग ही नशा है। कुछ दशक पहले देश ने सिख होने का नशा भी देखा है।

1946/47 के दौर में इस देश ने मुसलमान होने के नशे का असर भुगता है। ऐसे वक्त में आज परिवर्तनकामी शक्तियों को एकत्र होते देखना सुखद है. देश ने पहले भी निरंकुश सत्ता की बरगदी जड़ों को उखाड़कर फेंका है. आज तो हमारी लड़ाई ऐसे लोगों से है, जिनकी जड़ें बेहद कमजोर हैं. उत्तर प्रदेश और खासकर बनारस के लोगों की जिम्मेदारी बड़ी है, जिन्होंने बुलडोजर की अपसंस्कृति को गले लगाया है, जिन्होंने विश्वेश्वर महादेव की राजधानी काशी में हर हर महादेव की जगह हर हर मोदी का नारा कहने सुनने का गुनाह किया है. उन्होंने आगे कहा कि आज इस समागम से तीन सवालों के जवाब देश के लोगों को जरूर मिलने चाहिए. 1- देश बचाओ और भाजपा हराओ नारे का मतलब क्या है? 2- भाजपा को हटाना क्यों जरूरी है? और यह काम करने की रणनीति क्या होगी?

इंदिरा गांधी के आपातकाल की चर्चा करते हुए प्रो. कुमार ने कहा कि गांधी, विनोबा और जयप्रकाश की परंपरा से जुड़े लोग आपातकाल की लंबी कैद से गुजर चुके हैं। मौजूदा सत्ता के सबसे बड़े हथियार ईडी और सीबीआई से इन्हें कतई डराया-धमकाया नहीं जा सकता। बिना मुकदमे के लंबी कैद से भी इन्हें डराया नहीं जा सकता। देश में यह एक ऐसी जमात है, जो जातिवादी और सांप्रदायिक ताकतों का मुकाबला कर सकती है। इनकी क्षमता पर भरोसा किया जा सकता है, क्योंकि ये लोग विपरीत परिस्थियों से जूझने की दिमागी तैयारी रखते हैं। मीडिया में चल रहे प्रचार से प्रभावित होने के बजाय जन-साधारण के मन को समझने की कोशिश करनी चाहिए। महंगाई के बोझ से हर घर कराह रहा है, मगर सरकारी पार्टी का धन भंडार और मुट्ठी भर अरबपतियों का संपत्ति सागर लगातार बढ़ रहा है। समझने की बात है कि ऐसी स्थिति में भला कौन खुश हो सकता है? जब सरकारी प्रतिष्ठानों में 60 लाख से ज्यादा नौकरियां मौजूद हों और हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का अधूरा व झूठा वादा हो तो बेरोजगारी से युवा आतंकित होंगे ही। आखिर यह जिम्मेदारी किसकी है? देश के बैंकों से हजारों करोड़ लेकर विदेश चले गए घोटालेबाजों के प्रति सरकारी उदासीनता के बारे में देश को जवाब चाहिए। इन ज्वलंत मुद्दों को ढांपने के लिए कब्रिस्तान-श्मशान, हिन्दू-मुसलमान, भारत-पाकिस्तान जैसे जुमले उछाले जा रहे हैं। मौजूदा दौर में सत्ता प्रतिष्ठान की नीति और नीयत दोनों का इम्तिहान है। अब जनता की चुप्पी और भरोसा टूटने लगा है। मौजूदा समागम इसी सच का उदाहरण है।

कमज़ोर लोगों से हमारी लड़ाई

समागम को संबोधित करते हुए जनवादी नेता अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि हमारे सामने दो लक्ष्य हैं। पहला- गांधी, विनोबा और जयप्रकाश के विचारों से प्रभावित लोग लोकशक्ति के आधार पर स्वराज रचना के लिए एकजुट हों, ताकि राष्ट्रीय चुनौतियों का मुकाबला किया जा सके। दूसरा, समान विचार वाले संगठनों से जुड़े सक्रिय लोगों और वाहिनी परंपरा से जुड़े स्वयंसेवियों के बीच सहयोग के आधार पर जन-जागरण और जन-प्रतिरोध की पुख्ता रणनीति तैयार की जाए। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में फासीवादी ताकतों को तभी पराजित किया जा सकेगा जब हमारा मकसद सिर्फ जनहित होगा। हमें ऐसे लड़ाके तैयार करने होंगे जो जोखिम उठाने का हौसला रखते हों। इस मुहिम को तभी बल मिलेगा, जब फासीवादी ताकतों की कमजोरियों को हम समझेंगे और जनता को समझाएंगे। सांप्रदायिक और तानाशाह शासकों को हराने के लिए हम धैर्य का दामन नहीं छोड़ सकते।

गौर करने की बात यह है कि देश में रोजगार पैदा करने वाले सरकार के लाभकारी उपक्रम पूंजीपतियों के हवाले किए जा रहे हैं। देश आर्थिक रूप से दिवालिएपन का शिकार होता जा रहा है। वैश्विक स्तर पर रुपये की कीमत और विदेशी मुद्रा भंडार में जबर्दस्त गिरावट ने जनता को ऐसे भंवर में फंसा दिया है, जिससे बाहर निकलने का जनता को कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। भाजपा ने देश में फासीवाद का खतरा पैदा किया है। आरएसएस और भाजपा के साथ कारपोरेट घरानों के गठजोड़ से लोकतांत्रिक संस्थाओं का दिवाला पिटता जा रहा है। अब देर किए बगैर इनके खिलाफ लड़ाई शुरू करनी होगी।

इसके पहले युद्धेश द्वारा गाये जागरण गीत के साथ समागम के उद्घाटन सत्र की शुरुआत हुई. देश के कोने-कोने से जुटे समाजवादियों और जेपी सेनानियों का वरिष्ठ समाजवादी विजय नारायण ने स्वागत किया. अरविन्द अंजुम के संचालन में सम्पन्न हुए इस सत्र को सबसे पहले संबोधित करते हुए कुमार चन्द्र मार्डी ने कहा कि जिस तरह भूमि अधिग्रहण क़ानून-2013 को कमजोर करने के प्रयास में सरकार को हर बार असफल होना पड़ा, उसी तरह कार्पोरेट्स के साथ मिलकर आदिवासियों की जमीनों पर प्रोजेक्ट्स शुरू करने के उनके अनेक प्रयास भी धराशायी हुए. आदिवासियों ने पूरी मजबूती के साथ सरकार की मंशा पूरी नहीं होने दी. अब समय आ गया है कि इसी तरह पूरे देश को इकट्ठा होना होगा, वरना लोकतंत्र नहीं बचेगा.


झारखंड की किरन ने कहा कि वर्तमान सत्ता जनहित के विरोध में काम कर रही है. महिलाओं के साथ भेदभाव का खेल अभी भी जारी है. देश की विधानसभाओं और लोकसभा में आरक्षण के लिए महिलाएं आज भी इंतज़ार कर रही हैं. वयोवृद्ध सर्वोदय नेता अमरनाथ भाई ने कहा कि देश जिन परिस्थितियों से गुजर रहा है, ऐसे में इस तरह के सामूहिक प्रयासों और जुटानों का तांता लग जाना चाहिए. समाज के बीच यह सन्देश जाना अति आवश्यक हो गया है कि लोकतंत्र को इस तरह खत्म होते हम नहीं देख सकते. जनता के बीच जनता की बात पहुँचाने के काम को अब मिशन बनाया जाना चाहिए. समाजवादी साथी मजहर ने कहा कि आज देश खुद को जिस दलदल में पा रहा है, उसके चार प्रमुख कारण हैं. 1- आजादी के 75 साल बाद भी जनता खुद को प्रजा समझती है, हम देश के नागरिक नहीं बन पाए. 2- शिक्षा व्यवस्था का बेहद लचर और गैरजरूरी विषयों पर केन्द्रित होना. 3- हथियार के रूप में धर्म का इस्तेमाल और 3- सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर अराजकता का बोलबाला.

केन्द्रीय गाँधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचन्द्र राही ने भी समागम में अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि देश की आज जो हालत है, उसमे शब्दों के घालमेल पर हमे ध्यान देना चाहिए. तानाशाही और फासिज्म के बीच अंतर किया जाना चाहिए. अगर हम इतिहास के पन्ने ही पलटते रह गये तो इतिहास के खण्डहरों में कहीं खो जायेंगे. पूर्व संसद सदस्य डीपी राय ने कहा कि धर्म, भाषा, बोली, संस्कृति सब भिन्न होते हुए भी देश की यह खूबसूरती है कि हम संकट के समय एक हो जाते हैं. राष्ट्र निर्माण समागम को अखिलेन्द्र त्रिपाठी और अमित जेवानी ने भी संबोधित किया. अंत में मंचासीन अतिथियों ने सर्व सेवा संघ द्वारा प्रकाशित अहिंसक क्रांति के पाक्षिक मुखपत्र सर्वोदय जगत के नये अंक का लोकार्पण किया. प्रो आनन्द कुमार ने कहा कि यह पत्रिका आग के गोले में तब्दील हो चुकी है. इसका हर अंक विशेषांक होता है. अधिक से अधिक लोग इस पत्रिका के पाठक बनें तो पाठक और पत्रिका दोनों ही संमृद्ध होंगे. उल्लेखनीय है कि इस समागम में देश भर से आये लगभग डेढ़ सौ से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. महिलाओं की संख्या भी बीस से अधिक थी. समाजवादी चिंतक विजय नारायण, रामधीरज, फिरोज, गुड्डी, शुभमूर्ति, हिमांशु कुमार, किरन, मजहर, रामचंद्र राही, पूर्व सांसद डीपी राय, अमरनाथ भाई, रामजन, बल्लभाचार्य, मदन, राजीव, खालिद, बासंती, कंचन, किरन, रामशरण, नीति भाई, धनंजय, अनुज, मंथन, जागृति राही ने मोदी सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना करते हुए भाजपा सरकार पर कई बड़े सवाल खड़े किए और कहा कि किसानों-मजदूरों का शोषण, उनके प्रति सरकार की वादाखिलाफी, उपज का लाभकारी मूल्य देने से इनकार और कृषि व मजदूर विरोधी कानूनों ने अन्नदाता का जीवन बद से बदतर बना दिया है। नतीजा, किसानों की आत्महत्या और गांवों से उनका पलायन दोनों का ग्राफ आसमान छू रहा है। करोड़ों श्रमिकों की नौकरी और पेंशन की गारंटी नहीं रह गई है। नई शिक्षा नीति ने स्टूडेंट्स के लिए कठिन स्थिति पैदा कर दी है। शिक्षा व्यवस्था पूंजीपतियों के हाथ में चली गई है, जिससे गरीब और मध्यम तबके के बच्चों की पढ़ाई मुश्किल हो गई है। स्वास्थ्य और सुरक्षा के क्षेत्र में भी निजीकरण हो रहा है। जोड़-तोड़ से सरकारें बनाने और गिराने का खेल चालू हुआ तो राजनीति से शालीनता व सभ्य भाषा की जगह खुल्लम-खुल्ला अपशब्दों का प्रयोग शुरू हो गया। नाजुक दौर से गुजर रहे देश में योजनाबद्ध तरीके से अब भाईचारे की कमर तोड़ी जा रही है। ज्ञानवापी और मथुरा का विवाद इस बात के नजीर हैं।

भोजनावकाश के बाद शुरू हुए समागम के दूसरे सत्र से लेकर अगले दिन समागम के समापन सत्र तक विभिन्न प्रदेशों और विभिन्न संगठनों से आये प्रतिभागी, देश की वर्तमान परिस्थितियों और चुनौतियों के सामने अपनी सामूहिक रणनीति और योजनाओं, कार्यक्रमों पर चर्चा करते रहे. अनेक छोटे-बड़े विषयों और मुद्दों तथा उनके सामने निर्णायक संघर्ष खड़ा करने के लिए बुनियाद के निर्माण और उसके तौर तरीकों के खोज में पूरे दो दिन का समय लगाकर समागम ने कुछ कार्यक्रम तय किये. संघर्ष वाहिनी समन्वय समिति के सदस्यों ने 15 अगस्त की सुबह सर्व सेवा संघ परिसर स्थित गांधी प्रतिमा के पास खड़े होक झंडारोहण कार्यक्रम में हिस्सा लिया. सर्व सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष अमरनाथ भाई ने तिरंगा फहराया. इसके साथ ही लोकनायक जयप्रकाश नारायण की प्रतिमा पर भी माल्यार्पण किया गया.

1975 के दौर में निरंकुश सत्ता से टकराने का मंसूबा लेकर जेपी के आह्वान पर घर छोड़कर संघर्ष में कूद पड़ने वाले जेपी के नौजवान अब वृद्ध हो चले हैं. लेकिन उनकी रगों में सम्पूर्ण क्रांति की आंच में उबला हुआ वही लहू आज भी बह रहा है. समागम में यह बार बार कहा गया कि आज देश के हालात उस दौर से भी अधिक खराब हैं. जेपी के नौजवान खुद को आज भी उस राष्ट्रीय भूमिका से विरक्त नहीं पा रहे, जिस भूमिका और दायित्व से तब लोकनायक ने उन्हें जोड़ा था. निरंकुश और बेलगाम हो चुकी सत्ता से सीधा टकराव उनकी विरासत है. तबसे अबतक लगभग आधी सदी का समय निकल गया है, लेकिन उनकी अपनी इस ऐतिहासिक विरासत के आह्वान के स्वर देश काल और परिस्थितियों के सामने उन्हें तटस्थ नहीं होने देते. गांधी को साक्षात देख पाने और उनका स्पर्श पाने वाली पीढ़ियां अब रहीं नहीं. लेकिन जिन जेपी, विनोबा और लोहिया ने गांधी के सान्निध्य में बैठकर क्रांति का ककहरा सीखा, उन्हें छूकर, उन्हें देखकर, उनके साथ काम करके इतिहास बनाने वाली यह पीढ़ी अभी मौजूद है, यह पीढ़ी इस देश की ताकत है. अपने बुजुर्गों और बुद्धिजीवियों से अनुभव भरा सहारा मांगकर देश के इतिहास में सार्थक हस्तक्षेप करने वाली यह पीढ़ी अब खुद अपने अनुभवों से सहारा पा रही है.

बनारस घोषणा-पत्र

आजादी की 75 वीं और अगस्त क्रांति की 80 वीं वर्षगांठ के मौके पर संघर्ष वाहिनी समन्वय समिति द्वारा वाराणसी में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रनिर्माण समागम के बाद बनारस घोषणा पत्र जारी किया. देश की वर्तमान परिस्थितियों पर गहन सहचिन्तन कर अपने सर्वसम्मत निष्कर्षों और संकल्पों को राष्ट्र निर्माण समागम ने इन शब्दों में शब्दबद्ध किया.

1. आजादी के बाद से अब तक अपने देश ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की है। कई अवरोधों के बाद भी हमारा संसदीय लोकतंत्र जीवन्त रहा है। 26 नवम्बर 1949 को “हम भारत के लोगों के द्वारा” आत्मार्पित और 26 जनवरी 1950 से लागू भारतीय संविधान “आइडिया ऑफ इंडिया” यानी भारत की अवधारण को व्यक्त करता है। आज विकृत और छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर भारत की अवधारणा को, भारत की आत्मा को आहत और अपंग किया जा रहा है। हम इस राष्ट्रघाती षड्यंत्र के खिलाफ एकजुट और संघर्षरत हैं।

2. समागम ने बड़ी शिद्दत से महसूस किया कि अब भारत आम भारतीयों की आकांक्षा और विश्वास भूमि की जगह कुछ सत्ताधीशों और पूँजीशाहों की स्वप्नस्थली बनता जा रहा है। पिछले आठ सालों से देश को नोटबन्दी, लॉकडाउन, जीएसटी उत्सव, ताली-थाली, दीया-बाती, बेटियों के साथ सेल्फी, हर साल दो करोड़ रोजगार, हर खाते में 15 लाख रूपये जैसे अनेक जुमलों, तमाशों और मनमाने फैसलों से ठगा और तबाह किया जा है। स्कूल कॉलेज , अस्पताल, रेल, हवाई अड्डे , बैंक सब कुछ पूँजीशाहों को सौंपे जा रहे हैं। भर्तियां बन्द हैं, नौजवान बेकार और दिशाहीन है। बुजुर्ग निराधार हैं। बच्चों का विकास भूख की गिरफ्त में ठिठका पड़ा है। आजादी के बाद के सबसे बुरे दौर से देश गुजर रहा है। एक विराट लोकतांत्रिक जनउभार से ही देश को वापस सही पथ पर लाया जा सकता है। हम सब एक बड़े ‘देश बनाओ आंदोलन’ की नींव बनने को तैयार हैं।

3. पूरे देश में धार्मिक ध्रुवीकरण का एजेंडा जोर शोर से चलाया जा रहा है। सीएए एवं अन्य कानूनों के जरिये मुस्लिमों को दोयम नागरिकता की ओर धकेला जा रहा है, प्रताड़ित किया जा रहा है। कथित धर्मसंसदों से मुस्लिम वंश संहार की घोषणाएं हो रही हैं। कभी गोमांस, कभी हलाल, कभी हिजाब.. एक के बाद एक मसले उभारकर मुस्लिम समाज को आतंकित किया जा रहा है। मुस्लिम द्वेष की इस संघी राजनीति और संस्कृति के खिलाफ हम लड़ते रहे हैं, लड़ते रहेंगे।

4. हम सब आजादी के आंदोलन के स्वप्नों, मूल्यों तथा संविधान में दर्ज मौलिक अधिकारों और नीति निदेशक तत्वों के थातीदार हैं। हम सब नागरिक समता, सर्वधर्म समभाव, धर्मनिरपेक्षता जैसे मूल्यों पर हो रहे हमलों के खिलाफ लड़ते रहेंगे।

5. पूँजीपति समर्थक नीतियों के कारण बेरोजगारी, गैरबराबरी, महंगाई बढ़ रही है। बैंकों में जनता का जमा पैसा पूँजीपतियों को सस्ते दर पर दिया जा रहा है। पूँजीपतियों के कर्ज बड़ी उदारता से माफ कर दिये जा रहे हैं। सार्वजनिक और सरकारी संस्थानों व उपक्रमों को बेहद सस्ते मे पूँजीपतियों को बेच दिया जा रहा है। शिक्षा और स्वास्थ्य को निजी व्यापार के लिए पूरी तरह खुला छोड़ दिया गया है। प्राकृतिक संसाधनों को लूटने की छूट पूँजीपतियों को हासिल है। उनके पक्ष में श्रम और कृषि कानून बदले जा रहे हैं। इन्हीं कदमों के कारण मजदूर, किसान , पशुपालक, कुटीर और लघु उद्यमी तथा छोटे एवं मध्यम व्यापारी आदि बेहाल और तबाह हैं ।

हम बैंकिंग और कर्ज की नीति, निजीकरण की नीति, श्रमिक और कृषक विरोधी कोडों और कानूनों तथा अग्निवीर जैसी भर्ती योजना के खिलाफ हैं। हम खादी ग्रामोद्योग समेत तमाम कुटीर-छोटे-मंझले उद्योगों के वजूद की लड़ाई में, युवाओं के रोजगार आंदोलन में, मजदूरों और किसानों के हर संघर्ष में शामिल रहने की घोषणा करते हैं।

हम रोजगार की गारंटी, संसाधनों पर जनसमुदाय के हक, हर नागरिक के लिए स्वास्थ्य एवं शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने की गारंटी, हर व्यक्ति के लिए भोजन एवं घर, किसानों को एमएसपी तथा मजदूरों को मानवीय जीवन निर्वाह लायक मजदूरी जैसे लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आंदोलन चलायेंगे।

हम पूँजीपतियों के माफ कर्जों समेत सारे कर्जों की वसूली, उन पर कारपोरेट और प्रोपर्टी टैक्स लगाने और बढ़ाने की माँग उठाते रहेंगे। हम सम्पति, आमदनी और मुनाफे पर न्यूनतम और अधिकतम की एक युक्तिसंगत आनुपातिक हदबंदी के लिए आवाज उठाते रहेंगे ।
6. मोदी शासन के इन आठ वर्षों में लोकतंत्र और न्याय पर सबसे ज्यादा हमला हुआ है। प्रांतों में भी तानाशाही और अन्याय के अनेक भाजपाई मॉडल उभरे हैं। असहमति की अभिव्यक्ति और सार्वजनिक प्रतिवाद को अपराध की तरह बरता जा रहा है। दलीय, गैरदलीय हर विरोधी पर छापा, मुकदमा, जेल जैसे दमन चलाये जा रहे हैं।


सीबीआई, एनआईए, ईडी जैसी एजेन्सियों को विरोधियों को कुचलने का हथियार बना दिया गया है। चुनाव आयोग, हार्ईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, आरबीआई जैसे स्वायत्त निकायों को पक्षपातपूर्ण चयन, लोभ और भय के जरिये अपने पक्ष में फैसला करने के लिए बाध्य किया जा रहा है।
यूएपीए, एनएसए जैसे कानूनों का दुरुपयोग कर फर्जी मामले बनाकर भीमा कोरेगांव उत्सव, सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन और अन्य संघर्षों में मुखर व सक्रिय शख्सियतों को जेल में डाल दिया गया है। उन्हें जमानत भी नहीं दी जा रही है। हम लोकतांत्रिक, संवैधानिक संस्थानों की स्वायत्तता में छेड़छाड़ और हस्तक्षेप, उनके शासकीय दुरुपयोग का विरोध करते हैं।

हम यूएपीए, सीएए जैसे दमनकारी और विभाजनकारी तमाम कानूनों को वापस लेने की माँग करते हैं। हम विभिन्न फर्जी मामलों में जेल में बन्द सारे आंदोलनकारियों, पत्रकारों, मानवाधिकार कर्मियों और सामान्य जनों की रिहाई की मांग करते हैं। जब तक इनकी रिहाई नहीं होती, हम आवाज उठाते रहेंगे।

7. सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसले बुनियादी न्यायशास्त्र के खिलाफ हैं, अन्यायकारी हैं। तीस्ता सीतलवाड़, श्रीकुमार तथा हिमांशु कुमार के संदर्भ में आया फैसला तो इंसाफ माँगने अदालत में जाने को ही अपराध ठहरा देता है। खानविलकर पीठ ने ईडी के असीमित और असंवैधानिक शक्तियों को सही ठहरा दिया है। ऐसे फैसले सरकारी दबाव, वैचारिक पूर्वाग्रह के अलावे सेवानिवृति के बाद लाभप्रद नियुक्ति के लोभ से संचालित होते हैं। हम तीस्ता सीतलवाड़ और हिमांशु कुमार मामले तथा ईडी अधिकार मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार कर वापसी की मांग करते हैं। यह समागम सेवानिवृत्ति के बाद जजों को लाभ के पद पर जाने से रोकने के लिए कानून बनाना जरूरी समझता है ।

8. पिछले दिनों कथित हिन्दू धर्म संसद के मंचों से मुस्लिमों का कत्लेआम करने के आह्वानों पर भी सरकार मौन रही। प्रशासन और न्यायालय नरम रहा। यह समागम ऐसे साम्प्रदायिक, आपराधिक संत समूहों और धर्म संसदों पर कानूनी कार्रवाई की माँग करता है।

9. प्राचीन नगरी वाराणसी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र बनने के बाद से अपनी साझी संस्कृति की विरासत पर हमला झेल रही है। विश्वनाथ कॉरीडोर के लिए सैकड़ों हिन्दू धर्मस्थलों की कब्रगाह बना दी गयी। आस्था और आराधना स्थल को ऐश्वर्य और व्यापार का बाजार बना दिया गया। वहाँ भक्तों और पुजारियों से ज्यादा वर्दीधारी सिपाहियों का बोलबाला दिखता है। समागम इस परिघटना को गलत मानता है।

ज्ञानवापी मस्जिद पर आरोपित विवाद में प्रशासन और निचली अदालत का रवैया चिंताजनक है। दरअसल इसमें कहीं भी आस्था नहीं है। बदले और वर्चस्व की भावना से समाज के तानेबाने को तोड़ने का कुकृत्य है। हम ज्ञानवापी मस्जिद को ध्वस्त करने की कोशिशों के खिलाफ हैं।

10. जातिवाद, साम्प्रदायिकता, आदिवासी स्वायत्तता पर हमला, स्त्री पुरुष गैरबराबरी, सम्पत्ति और आमदनी की गैरबराबरी अन्ततः देश को कमज़ोर करते हैं। इन मसलों पर हम सब समतामूलक भूमिका लेते रहेंगे। हम सब जाति उन्मूलन, साम्प्रदायिकता खात्मा, स्त्री-पुरुष समता की धीमी या ठहरी लड़ाई को गति देने की कोशिश करेंगे।

11. 80 बनाम 20 जैसे नकली और नकारात्मक बहुमतवादी नारों को नाकाम करने के लिए मजदूर, किसान, दलित, आदिवासी, स्त्री, अल्पसंख्यक जैसे शोषित-पीड़ित, मेहनतकश समूहों के प्रश्नों को लेकर लोकतांत्रिक एकता गढ़नी होगी। हम तमाम जनपक्षीय, लोकतांत्रिक, शांतिपूर्ण धाराओं के बीच मैत्री बनाने की कोशिशों में अपने अधिकतम संभव अंशदान की तत्परता जतलाते हैं।

12. मीडिया की मौजूदा भूमिका बेहद चिंताजनक है। लगभग सारे मीडिया संस्थान साम्प्रदायिक, मुस्लिम विरोधी और सरकारी प्रचारक की भूमिका में हैं। यह लोकतांत्रिक जनमत बनाने-फैलाने की राह की सबसे बड़ी बाधा है। हमें इस मीडिया की भूमिका को बदलने के लिए बड़ा नैतिक जनदबाव बनाना होगा। नागरिक या सोशल मीडिया की ओर से उनके झूठों के खिलाफ सत्य अभियान चलाना होगा।

13. मतदाता आज बेबस या भ्रमित है। मतदाता को सशक्त और निर्णायक बनाने, भ्रमजाल को काटने, चुनाव प्रक्रिया में धन और अपराध के हस्तक्षेप को रोकने के लिए राजनीतिक एवं चुनाव सुधार के मसलों को उठाते रहना हम जरूरी समझते हैं।

14.फासीवाद के बढ़ते हमले को रोकने के लिए, लोकतंत्र, संविधान और न्याय की रक्षा के लिए, भारत की अवधारणा और आत्मा तथा समता और स्वतंत्रता की संभावनाओं को बचाने के लिए 2024 के संसदीय चुनाव में भाजपा को हराना आवश्यक है। इसके लिए एक व्यापक भाजपा विरोधी राजनीतिक वातावरण बनाना होगा। हर सीट पर एकजुट विपक्षी उम्मीदवार के लिए प्रमुख विपक्षी दलों पर दबाव बनाना होगा। हम इस भूमिका की तात्कालिक आवश्यकता महसूस करते हैं और उस भूमिका में पूरी ताकत से लगने का निश्चय करते हैं।

इन निष्कर्षो और संकल्पों के साथ समागम ने कुछ समयबद्ध और मुद्दाकेन्द्रित कार्यक्रमों की भी घोषणा की है।

1- 2 से 12 अक्तूबर के बीच रोजगार अधिकार और एमएसपी पर अपनी-अपनी जगहों पर विविध कार्यक्रम आयोजित किये जाएँगे ।

2- 2 अक्तूबर को हर जगह एक कार्यक्रम किया जाएगा।

3- दिसम्बर 2022 तक रोजगार अधिकार, एमएसपी और अन्य स्थानीय मसलों पर प्रांतीय या क्षेत्रीय सम्मेलन किये जाएंगे।

4- 30 जनवरी, 2023 को गाँधी शहादत दिवस पर सारे सहमना संगठन एक विशेष नारे और स्वरूप में कार्यक्रम करें, इसकी कोशिश की जाएगी।

5- 2023 की पहली तिमाही में दिल्ली जुटान के लिए किसान, मजदूर, युवा एवं अन्य आंदोलनों और संगठनों से विमर्श किया जाएगा। सहमति की तारीख पर अपने अपने मुद्दों के साथ हम सब दिल्ली में जुटेंगे।

6- देश के विविध समूहों के बीच संवाद और साझा कार्यक्रमों को संभव और सुगम बनाने के लिए इस समागम में कई समूहों के साथियों के स्वैच्छिक प्रतिनिधित्व से एश्ख्क टीम बनायी गयी है।

-सर्वोदय जगत डेस्क

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