राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा 1936 में स्थापित राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के प्रांगण में विश्व हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर ‘स्वाधीनता आन्दोलन और साहित्य’ पुस्तक का लोकार्पण प्रसिद्ध स्वाधीनता संग्राम सेनानी एवं गांधी विचारक लीलाताई चितले के कर कमलों से हुआ। कार्यक्रम का प्रस्तावना पाठ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के प्रधानमंत्री डॉ. हेमचन्द्र वैद्य ने किया। विश्व हिंदी दिवस की महत्ता पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि अपनी बात आप अपनी मातृभाषा में जितनी अच्छी तरह से रख सकते हैं, किसी दूसरी भाषा में नहीं। हमारे सोचने-विचारने की भाषा अपनी मातृभाषा होती है। उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के महाविद्यालय में पूर्वोत्तर के छात्र-छात्राएँ हिंदी की पढ़ाई करके रोजगार के अवसर प्राप्त कर रहे हैं। किताब के संपादक डॉ श्यामबाबू शर्मा ने पुस्तक की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ‘स्वाधीनता आंदोलन हमारे स्व के अस्तित्व का अनुसंधान था। उन तथ्यों, विचारों, प्रसंगों को सामने लाना आवश्यक जान पड़ा, जिनके माध्यम से हम जान सकें कि भारत को आजादी कितने लंबे संघर्ष के बाद प्राप्त हुई। हमारी भाषाओं की समृद्ध परंपरा ने यहां के सामाजिक, नैतिक, आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्र को हमेशा संबल दिया है और सभ्यता, जीवन-मूल्य तथा परंपरा की रक्षा की है। अवधी, उर्दू, असमिया, उड़िया, कन्नड़, कश्मीरी, गुजराती, तमिल, तेलुगु, पंजाबी, बघेली, बुंदेलखंडी, बांग्ला, निमाड़ी, मणिपुरी, मराठी, मलयालम, संथाली, संस्कृत, सिंधी, हिन्दी सहित कश्मीर से कन्याकुमारी तक बोली जाने वाली विविध भाषाओं के साहित्य, उनके लोक साहित्य, लोक बोलियों और लोक गीतों के साथ-साथ क्रांतिकारी साहित्य, प्रवासी साहित्य, नाटक-रंगमंच, सिनेमा आदि के जरिये स्वाधीनता संघर्ष को ताकत मिली। यह पुस्तक इतिहास के उन पन्नों का दस्तावेजीकरण है, जो अभी तक अनुद्घाटित रहे हैं।’ डॉ सतीश पावडे ने कहा कि आज यह अत्यंत आवश्यक है कि हम सिर्फ युवाओं को ही नहीं, देश के प्रत्येक व्यक्ति को इस शौर्य गाथा से परिचित करवाएं। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि लीलाताई चितले ने कहा कि स्वाधीनता मनुष्य की मुलभूत प्रेरणा है। इसे नैतिकता के साथ अक्षुण्ण रखा जाना आवश्यक है। इसके लिए इसे केवल सौगात नहीं, अपितु कर्तव्य और जिम्मेदारी भी समझना होगा। स्वाधीनता और संविधान के द्वैत को भी समझना होगा। संविधान रहेगा तभी स्वाधीनता बचेगी। इसलिए हमें संविधान का कर्तव्य भावना के साथ अनुपालन करना चाहिए। स्वाधीनता का तात्पर्य और उसके प्रति हमारी निष्ठा को यह पुस्तक प्रभावी पद्धति से रेखांकित करती है। यह पुस्तक स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास का एक मौलिक दस्तावेज है और नई पीढ़ी को दिशा देने के लिए उपयुक्त है। डॉ राम प्रकाश ने कहा कि स्वाधीनता आन्दोलन में आदिवासियों, किसानों, मजदूरों की सहभागिता कहीं कम न थी। इस पुस्तक में सभी तबकों के अवदान का दस्तावेजीकरण किया गया है। संपादक ने अथक प्रयास से नई पीढ़ी तक राष्ट्रीयता की भावना पहुंचाने का काम किया है। दिनेश प्रियमन ने कहा कि इस पुस्तक के संपादन-प्रकाशन से डॉ श्यामबाबू शर्मा ने अपना सांस्कृतिक दायित्व पूरा किया है। प्रो प्रतापराव कदम ने कहा कि स्वाधीनता आंदोलन में साहित्यकारों का योगदान बहुत महत्वपूर्ण था। इसमें गहराई से उतरने पर भारत ही नहीं, भारत के बाहर का भी आजादी के संग्राम का साहित्यिक तापमान मापा जा सकता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता अमरावती के सामाजिक कार्यकर्ता एवं उद्यमी चंद्रकुमार जाजोदिया ने की। उन्होंने कहा कि आज भूमंडलीकरण के दौर में लोग विश्व की सबसे सरल भाषा के रूप में हिंदी को स्वीकार करने लगे हैं। बाजारवाद की धड़कनों को समझने के लिए भी हिंदी एक प्रमुख भाषा है। यह पुस्तक भाषाओं की अस्मिता और उनके योगदान की याद दिलाती है। इस अवसर पर लीलाताई चितले, डॉ श्यामबाबू शर्मा एवं चंद्रकुमार जाजोदिया को सम्मानित किया गया। लोकार्पण कार्यक्रम का संचालन डॉ रत्ना-चौधरी नगरे ने किया। आभार ज्ञापन महेश अग्रवाल द्वारा किया गया।
लोकार्पण कार्यक्रम के बाद काव्यपाठ का भी आयोजन हुआ, जिसकी अध्यक्षता डॉ ओपी गुप्ता ने की। इस मौके पर डॉ राम प्रकाश, कुमार दिनेश प्रियमन, प्रो प्रतापराव कदम, डॉ श्यामबाबू शर्मा, डॉ अनुपमा गुप्ता, डॉ मीरा निचले, डॉ रत्ना चौधरी, सुमन गोपाल दुबे, अनिकेत तापड़िया, प्रो वसंत लोटिया, डॉ हेमचन्द्र वैद्य आदि कवियों का काव्यपाठ हुआ। सभी को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। काव्यपाठ का सफल मंच संचालन डॉ प्रमोद शुक्ला ने तथा धन्यवाद ज्ञापन महेश अग्रवाल ने किया। राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कविताएँ श्रोताओं द्वारा सराही गयीं।
-डॉ सरलता
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