हम लोगों को प्रभावित करें या न करें, गांधी साहित्य लोगों को अवश्य प्रभावित करेगा. ऐसा मेरा अपना मानना है. मैं विगत 23 सालों से जहां भी जाता हूं, गांधीजी की आत्मकथा बांटता हूं और लोगों के जीवन में अंतर आता है. लोगों का आक्रोश, उनकी नफरत, उनकी बोलने की भाषा बदल जाती है, सकारात्मक हो जाती है.
एक बार एक आदमी पकड़ कर मेरी कोर्ट में लाया गया. मैंने उससे कहा कि तुम्हारी सजा यही है कि तुम 3 घंटे गांधीजी की आत्मकथा पढोगे. 3 घंटे तक वह आत्मकथा पढ़ता रहा और अंत में शपथ पत्र दिया कि अब हम गांधीजी के अनुसार ही चलेंगे, कभी लड़ेंगे नहीं. अभी अभी होली से पहले एक गांव में गया था तो गांव वालों ने कहा कि साहब, यहाँ हर साल होली में झगड़ा होता है. इस बार भी जरूर होगा. मुझे लगा कि यह तो बड़ा चैलेंज है. मैंने गांधीजी की आत्मकथा गाँव में बंटवायी और लोगों से कहा कि इस किताब से सीखिए. इस बार गाँव में झगड़ा नहीं हुआ. एक बार कैंसर का एक मरीज मुलजिम बनकर आया. मैंने इन्स्पेक्टर से कहा कि ऐसी असाध्य बीमारियों से जूझ रहे लोगों का विशेष ख्याल रखा जाना चाहिए. मैंने उसे अपनी तरफ से 2 हजार रूपये दिलवाए.
कहना चाहता हूँ कि साईं के भक्तों ने साईं को भगवान बना दिया. गांधी तो दिव्य पुरुष थे ही, पर हम उनको नहीं बचा पा रहे हैं. हमें कुछ ऐसा कार्यक्रम बनाना चाहिए, जिससे गांधीवाद कायम रहे. अभी हल्ला बोल के जो युवा हैं, हमने उनसे भी कहा कि गांधीजी की आत्मकथा आप हमसे लेकर सबको दीजिए. सभी समस्याओं का समाधान है. सभी प्रश्नों का उत्तर है.
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