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संपूर्ण क्रांति का सामाजिक दृष्टिकोण

सम्पूर्ण क्रांति के प्रणेता लोकनायक जय प्रकाश नारायण को जानने वालों ने उन्हें संत राजनेता कहकर पुकारा। देश और देश की आज़ादी के लिए जेपी के त्याग, साहस और कुर्बानियों की कहानियां इतिहास के पन्नों पर दर्ज हैं। समाज के लिए उनकी चिंताएं उनकी लिखी किताबों और उनके भाषणों में दर्ज हैं। सम्पूर्ण क्रांति के सामाजिक सन्दर्भों की पड़ताल करते हुए जेपी की कई किताबों से अनेक उद्धरण लेकर लेखक ने एक कोलाज़ बनाया है।

 

सम्पूर्ण क्रांति के सात आयाम होंगे- जय प्रकाश नारायण
राम मनोहर लोहिया ने भी सप्त क्रांति की बात की थी। पर जेपी ने सम्पूर्ण शब्द का इस्तेमाल वैयक्तिक और सामाजिक जीवन के हर पहलू को प्रभावित करने वाली व्यापक क्रांति के अर्थ में किया है। उन्होंने कहा कि अगर मेरी कल्पना की सम्पूर्ण क्रांति होगी तो व्यक्ति में भी क्रन्तिकारी परिवर्तन होगा। क्रांति शब्द में परिवर्तन और नव निर्माण दोनों निहित है. सात प्रकार की क्रान्तियाँ मिलकर सम्पूर्ण क्रांति होती है। वे हैं- समाजिक क्रांति, आर्थिक क्रांति, राजनितिक क्रांति, सांस्कृतिक क्रांति, वैचारिक अथवा बौद्धिक क्रांति, शैक्षणिक क्रांति एवं आध्यात्मिक क्रांति । सात की इस संख्या को बढ़ाया

और घटाया जा सकता है। उदाहरणार्थ, सांस्कृतिक क्रांति में शैक्षणिक एवं वैचारिक क्रांतियां सन्निहित हो सकती हैं और यदि सांस्कृतिक शब्द का मानव-शास्त्रीय अर्थ किया जाये तो उसमें लगभग सभी कुछ समा जाता है, किन्तु जो पुरातन समाज के सन्दर्भ में संस्कृति का अर्थ है, वह आम तौर पर सभ्य समाज के सन्दर्भ में नहीं लिया जाता। उसी प्रकार सामाजिक क्रांति को यदि मार्क्सवाद की भूमिका में सोशल रेवोल्यूशन के अर्थ में लिया जाये तो आर्थिक और राजनीतिक क्रांतियां उसमें अवश्य आ जाती हैं। बहुत कुछ अन्य बातें भी उसमें समा सकती हैं।
ये तो सात की संख्या को घटाने के उदाहरण हुए । अब यदि संख्या बढ़ानी हो तो एक-एक क्रांति का ब्रेक-अप किया जा सकता है । आर्थिक क्रांति को औद्योगिक क्रांति, कृषि क्रांति, यांत्रिक क्रांति तथा दार्शनिक क्रांति के रूप में अलग-अलग तोड़ सकते हैं। आध्यात्मिक क्रांति के भी दो विभेद, नैतिक और आध्यात्मिक कर सकते हैं या नैतिक क्रांति को सांस्कृतिक क्रांति का एक विभेद मान सकते हैं। मुख्य बात है कि जिन पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग किया जाय, उनकी परिभाषा स्पष्ट कर दी जाय।

क्रांति शब्द से परिवर्तन और नव-निर्माण दोनों ही अभिप्रेत है। जगत में यों तो हर कुछ परिवर्तनशील है, हर कुछ का नित्य-निरन्तर नवीनीकरण भी होता रहता है, तो फिर क्रांति या क्रन्तिकारी परिवर्तन से क्या अभिप्रेत है? एक यह कि क्रांति या क्रन्तिकारी परिवर्तन बहुत शीघ्र गति से होता है और परिवर्तन बड़ा दूरगामी तथा मूलगामी होता है. कभी-कभी ऐसा कि वास्तु में गुणात्मक परिवर्तन हो जाता है। -कारावास की कहानी, पृष्ठ 93-94

सामाजिक क्रांति का परिणाम सत्ता की रचना में परिवर्तन के साथ-साथ सम्पत्ति के संबंधों, शिक्षा एवं संस्कृति के क्षेत्र में भी प्रकट होना चाहिए- जय प्रकाश नारायण

सामाजिक क्रांति की परिभाषा में एक और बात जोड़ने की जरूरत है। वह यह कि क्रांति के परिणामस्वरूप सत्ता की रचना में परिवर्तन के साथ-साथ सम्पत्ति के संबंधों में भी बुनयादी बदल होनी चाहिए। अगर यह नहीं होता है तो क्रांति अधूरी रह जाएगी। सम्पत्ति के मामले में कई तरह के प्रश्न उठते हैं। एक तो स्वामित्व का प्रश्न है, दूसरा उसके प्रबन्ध का प्रश्न है और तीसरा प्रश्न यह है कि सम्पत्ति का जो उत्पादन करते हैं, उनका उसकी बचत में क्या हिस्सा होना चाहिए? आज के समाज में सामन्तवादी और पूंजीवादी संदर्भ में सम्पत्ति के जो सम्बन्ध हैं, उनमें आमूल परिवर्तन करना आवश्यक है। अगर यह परिवर्तन नहीं होता है तो सामाजिक क्रांति की प्रक्रिया अधूरी रह जाती है। इस प्रकार सत्ता की रचना में परिवर्तन, सम्पत्ति के संबंधों में परिवर्तन और समाज में समता, स्वातंत्र्य और भ्रातृत्व की स्थापना; ये तीन अनिवार्य शर्तें सामाजिक क्रांति की हैं। इन शर्तों की पूर्ति हुए बिना क्रांति सफल नहीं मानी जा सकती।

सामाजिक क्रांति का परिणाम केवल सत्ता के संबंधों में नहीं, बल्कि शिक्षा एवं संस्कृति के क्षेत्र में भी प्रकट होना चाहिए। अगर वास्तव में सत्ता गरीबों के हाथ में है, तो एक स्वतंत्र समाज होना चाहिए; एक ऐसा समाज, जिसमें लोगों को नागरिक स्वतंत्रता का पूर्ण अधिकार प्राप्त हो। जहां यह नहीं हुआ है, वहां समझ लेना चाहिए कि समाजिक क्रांति कहीं रास्ते में अटक गयी है। अगर क्रांति के फलस्वरूप गरीबों के हाथ में सत्ता आती है तो मानव समाज में समता, स्वतंत्रता एवं भ्रातृत्व की स्थापना होनी चाहिए। क्रांति हो चुकने के बाद भी कोई किसी का शोषण करे, किसी पर शासन करे और समाज में समता, स्वतंत्रता एवं भ्रातृत्व का नाम न हो, यह कैसे संभव है? इसी प्रकार क्रांति के बाद भी अगर शिक्षा और संस्कृति मुट्ठी भर लोगों तक सीमित रहे और बाकी लोग अशिक्षित और असंस्कृत रहें क्रांति क्या हुई?

-क्रांति : सामाजिक और सम्पूर्ण, पृष्ठ 9-10

हिन्दू समाज के जाति-प्रथा व दहेज़ जैसे कलंक को मिटा दें और भाईचारे तथा समानता आधारित समज का निर्माण करें-जय प्रकाश नारायण

जाति प्रथा टूटे, उसके लिए एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम या महत्वपूर्ण साधन अंतर्जातीय विवाह हो सकता है। जो कुमार हैं, उनको ख़ास तौर से ध्यान रखना है कि वे अपने अभिभावकों को समझाएं, राजी करें। राजी नहीं होते हैं, तो उनकी नाराजगी उठाकर भी उनका सामना करके दूसरी जातियों में अपना विवाह करें। इसके पीछे हमारी भावना यह है कि ऊंच-नीच पर आधारित कुछ और बुरे रिवाज भी हैं। सम्पूर्ण क्रांति के द्वारा इन्हें भी ख़त्म किया जाना चाहिए। समाज की इन कुरीतियों और रूढ़ियों के खिलाफ भी संघर्ष की जरूरत है। शादी-ब्याह का पवित्र संस्कार बाजारू बन कर रह गया है। बिहार आन्दोलन के दौरान मैं नौजवानों को ललकार कर कहता था कि अभी आप सम्पूर्ण क्रांति और इन्कलाब जिंदाबाद के नारे लगते हो, लेकिन जब तुम्हारी शादी होगी, तुम्हारे बाप अगर लड़की के बाप से तिलक, दहेज़ मांगेंगे और तब तुमने उनको रोका नहीं, प्रतिवाद नहीं किया, तो धिक्कार है तुम्हारे इन्कलाब जिंदाबाद के ऊपर। तुम्हारा सारा त्याग, बलिदान व्यर्थ गया, ऐसा मानो। तुम माँ-बाप को साफ-साफ कह दो कि हम बैल घोड़े नहीं हैं, जो बाजार में आपको बेचना है और जानवर की तरह हमारा भी मोल भाव करना है। वैसे ही मैं लड़कियों से भी कहता था कि तुम्हारे अंदर भी इतनी हिम्मत होनी चाहिए कि लड़के वाले यदि तिलक, दहेज़ की मांग करें, तो ऐसे लड़के से हरगिज शादी नही करेंगे, ऐसा कह सको।
-मेरी विचार यात्रा भाग-2 पृष्ठ 106-07

जाति प्रथा को ख़त्म किया जाये। अब समय आ गया है कि हिन्दू समाज के इस कलंक को मिटा दें और भाईचारे तथा समानता को अपना आदर्श बनायें और अपने जीवन में उतारें। इसी तरह जन्म, विवाह और मृत्यु से जुड़े हुए

 

हमारे गलत मूल्य, संस्कार, न्याय और समता की जीवन पद्धति से मेल नहीं खाते –जय प्रकाश नारायण
हमारे देश में क्रांति के मार्ग में जन-विरोधी सरकार तो एक बहुत बड़ी रुकावट है ही, स्वयं समाज कम बड़ी रुकावट नहीं है। वर्णों, सम्प्रदायों, जातियों में बंटे हुए समाज के कारण हमारे अंदर ऐसे गलत मूल्य, संस्कार और अन्धविश्वास हो गए हैं कि उनका न्याय और समता की जीवन पद्धति से मेल नहीं बैठता। उदाहरण के लिए जाति भेद एक ऐसी चीज है, जो किसी कानून से नहीं मिटाई जा सकती है। कानून और पैसे से हरिजनों, आदिवासियों आदि को स्थूल सुविधाएं तो दी जा सकती हैं, लेकिन समाज में समता का स्थान उन्हें तभी मिलेगा, जब लोगों का मन बदलेगा और लोग उन्हें अपने ही जैसे मनुष्य मान कर स्वीकार करेंगे, साथ ही वे हरिजन, आदिवासी आदि स्वयं अपना आत्मसम्मान प्रकट करने तथा अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए साहसपूर्ण खड़े हो जायेंगे।
-अगले तीन महीने : चालू और भावी कार्यक्रम; पृष्ठ -14

दबे कुचले को मुख्य धारा में लाना रचनात्मक सेवा है -जयप्रकाश नारायण

इसी प्रकार और भी समस्याएं, खास कर हरिजन और आदिवासी जनता की आर्थिक और सामाजिक समस्याएं हैं। आर्थिक दृष्टि से वे गरीब और पिछड़े हुए तो हैं ही, सामाजिक दृष्टि से उनकी हालत और भी भयानक है। आज भी हरिजनों के साथ सवर्णों का दुर्व्यवहार होता है और उन्हें अस्पृश्य समझकर अलग-अलग रखा जाता है। इतना ही नहीं, उनके प्रति सवर्णों का आक्रोश कभी-कभी भयानक रूप ले लेता है। हरिजनों को जीवित जला देने की अनेक घटनाएं हुई हैं और होती रहती हैं। सम्पूर्ण क्रांति के सिपाहियों को इस विस्फोटक परिस्थिति का रचनात्मक हल ढूँढना होगा। इसके लिए उन्हें हरिजन और आदिवासी जनता के जीवन में प्रवेश करना होगा और अपनी सेवाओं से उनका दिल जीतकर भारतीय समाज की मुख्य धारा में उन्हें ले जआना होगा। यह एक ऐसी रचनात्मक सेवा है, जिसके बिना सम्पूर्ण क्रांति अधूरी रह जाएगी।
-बिहार वासियों के नाम चिठ्ठी पृष्ठ 36-37

सवर्णों को भी जहाँ तक हो सके, समझाते रहना चाहिए -जयप्रकाश नारायण

मनुष्य-मनुष्य का भेद हमें मिटाना होगा। जात-पांत, छुआछूत सभी समाप्त करने होंगे। बिहार आन्दोलन के समय मैं कहता था कि जनेऊ यदि उच्च जाति का प्रतीक माना जाता हो तो जनेऊ भी तोड़ना होगा। हिंदुस्तान में अधिकतर वे लोग बसते हैं, जिन्हें जनेऊ पहनने का अधिकार नहीं है। महर्षि दयानंद ने वेदों के हवाले से यह सिद्ध कर दिया था कि जनेऊ धारण करने का अधिकार द्विजों के अलावा और लोगों को भी है, फिर भी व्यवहार में इसका ठीक उल्टा है। अतः जातिवाद के साथ जुड़ी हुई इन सभी परम्पराओं का भी उन्मूलन करना होगा।

सम्पूर्ण क्रांति में शामिल होने वाले हर व्यक्ति को यह सब करना होगा। सबसे पहले तो आपस में जाति के व्यवहार को पूर्णतया छोड़ना होगा। खान-पान के मामलों में भी एकता का आग्रह रखना होगा। विज्ञान, टेक्नोलॉजी और औद्योगीकरण के विकास के साथ-साथ, इस प्रकार की छुआछूत की भावना कम हो जाएगी। गाँवों में हम जाते हैं, तो अक्सर स्वर्ण घरों में ठहरते हैं। इनमें कोई बुरे नहीं हैं, लेकिन कभी अवर्णों के यहाँ ठहरिये, उनके यहाँ भी खाना-पीना कीजिए। ब्राह्मण-हरिजन के सहभोज का कार्यक्रम भी एक कदम आगे बढ़ने के लिए सहायक सिद्ध हो सकता है। संक्षेप में उनको इस प्रकार का एहसास होना चाहिए कि ये सम्पूर्ण क्रांति की बात करने वाले लोग हैं, इनका दिल हमारे साथ है। ये लोग हमको अपने कलेजे से लगाकर उठाना चाहते हैं, हमारी सेवा करना चाहते हैं। उनके ऊपर आपकी ये छाप पड़नी चाहिए कि आप उनके मित्र हैं और उनकी भलाई के लिए काम कर रहे हैं। -मेरी विचार यात्रा, पृष्ठ-106

भ्रष्टाचार, मंहगाई, बेरो जगारी, शिक्षा आदि की समस्याओं के हल के लिए देश की राजनीति बदलनी होगी, अर्थनीति और शिक्षानीति भी बदलनी होगी। परिवर्तन की दिशा महात्मा गांधी की दिशा होगी। राजनीति और आर्थिक विकेन्द्रीकरण की दिशा होगी। ऐसे महान काम के वाहक बनने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से आज की युवा पीढ़ी को उठानी है। आने वाले जमाने की जिम्मेदारी नयी पीढ़ी पर है, इस देश के तरुणों पर है, युवकों पर है।
-जयप्रकाश नारायण-जयप्रभा स्मारिका पृष्ठ-39

तिलक लेकर हम शादी नहीं करेंगे, आप में यह कहने की ताकत होनी चाहिए – जयप्रकश नारायण

वैवाहिक परम्पराओं, विशेषकर तिलक दहेज़ की प्रथा को लीजिये जो बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में प्रचलित है। इस बुराई को क़ानून से दूर करने की कोशिश की गयी है, परन्तु कानून निष्प्राण अक्षर की तरह रह गया है। इस बीच रोग बढ़ता ही जा रहा है, जिसके फलस्वरूप अनेक परिवार नष्ट हुए हैं और बहुत सी लड़कियों का जीवन बर्बाद हुआ है। कल तक जो जातियां इस अभिशाप से मुक्त थीं, वे भी तेजी से इस कुरीति की शिकार हो रही हैं; क्योंकि यह सामाजिक बुराई उनकी नजर में कुलीनता का प्रतीक बन गयी है। इस बुराई का इलाज इसके विरुद्ध जोरदार सामाजिक, शांतिपूर्ण संघर्ष छेड़ने के अलावा और कुछ नहीं है।


शादी-विवाह की कुरीतियों के खिलाफ वातावरण बने। लड़के अपने मां-बाप से कहें कि लड़की के घर से पैसे आप लीजिये और लड़की हम पर लाद दीजिये, यह नहीं चलेगा। हमें मौका दीजिये कि हम चुनाव करें। तिलक, दहेज़, जात-पांत तोड़ने की शक्ति आप में है। तिलक लेकर हम शादी नहीं करेंगे, यह कहने की आप में ताकत होनी चाहिए।
-मेरी विचार यात्रा पृष्ठ 106-07, युवकों के साथ जयप्रकाश, पृष्ठ-4

-प्रभात कुमार

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