संगीत को प्रायः मात्र मनोरंजन का साधन समझा जाता है। परंतु अब वैज्ञानिकों का ध्यान उसकी जीवनदात्री क्षमता की ओर गया है और शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य की विकृतियों के निराकरण के लिए संगीत के प्रयोग बड़े उत्साह के साथ हो रहे हैं। पीड़ित व्यक्ति के लिए संगीत कई बार रामबाण औषधि की तरह सिद्ध हुआ है, जिससे तात्कालिक शांति मिल जाती है। संगीत की स्वर लहरियों की कोमलता और लयबद्धता में ऐसी शक्ति है, जो शारीरिक लाभ पहुंचाने के साथ-साथ आत्मा को भी उर्ध्वमुखी बना देती है।
पाश्चात्य देशों में संगीत द्वारा रोग निवारण की दिशा में बहुत शोध कार्य हुआ है। ऐसे सूत्र ढूंढ़ निकाले गये हैं, जिनके सहारे विभिन्न स्वर प्रवाहों और वाद्य यंत्रों से विभिन्न रोगों की चिकित्सा की जाती है। इंग्लैंड के चिकित्सा विज्ञानी डॉ भीड और अमरीका के एडवर्ड योडोलास्की ने अपने अनुसंधान का सार बताया है, ‘संगीत से नाड़ी संस्थान (Nervous System) में एक विशेष प्रकार की उत्तेजना उत्पन्न होती है, जिसके सहारे शरीर के मल विसर्जन से दूषित तत्वों की शिथिलता दूर होती है।
पश्चिमी जर्मनी के डॉ रोनाल्ड डोह के अनुसार संगीत द्वारा शरीर में उत्पन्न एड्रिनेलिन की मात्रा में कमी हो जाती है। इससे रोगियों के दर्द को एकदम शांत किया जा सकता है। उन्होंने बच्चों के मानसिक रोगों को इस विधि से दूर करने में काफी सफलता पायी है। अमरीका के ही मनोचिकित्सक जार्ज स्टीवेन्सन पील ने संगीत को स्वाभाविक मानसिक तनाव के निराकरण की अचूक औषधि बताया है। संगीत के अभ्यास और श्रवण काल दोनों में मन को विश्रांति ही नहीं, आनन्द भी प्राप्त होता है।
अमरीका के संगीत चिकित्सक डॉ. हार्ल्स ढस्टले ने इस प्रक्रिया पर अनुसंधान किया है। उन्होंने लगातार बीस वर्ष इस पद्धति से उपचार किया और बताया कि एलोपैथी द्वारा रोगमुक्त होने वालों की अपेक्षा संगीत उपचार से अच्छे होने वालों का अनुपात कहीं अधिक है। विशेषतया मानसिक रोगों में तो यह अचूक काम करता है। मांसपेशियों और नाड़ी संस्थान की गड़बड़ी तो निश्चित रूप से अन्य उपायों की अपेक्षा संगीत द्वारा अधिक सफलतापूर्वक और जल्दी दूर की जा सकती है। उनके कथनानुसार जो न गाना जानते हैं न बजाना, वे अपनी शारीरिक, मानसिक स्थिति के अनुरूप उपयुक्त मात्रा में स्वरलहरी सुनकर लाभान्वित हो सकते हैं।
अमरीका के सुप्रसिद्ध वायलिन वादक राल्फ लारेन्स को संगीत से बड़ा प्रेम है। उन्होंने आर-फोर-आर नामक एक संस्था की स्थापना की है। संगीत चिकित्सा की इस संस्था की अनेक शाखाएं अमरीका एवं योरोप के कई भागों में कार्यरत हैं। इस प्रतिष्ठान की संगीत चिकित्सा ने हजारों रोगियों को अच्छा किया है। वह एक साधन सम्पन्न संस्था है, जो लोक कल्याण की दिशा में प्रवृत्त है।
डॉ लारेन्स ने इस संगीत उपचार प्रक्रिया का प्रयोग अमरीका के अस्पतालों में शुरू किया, जहां घायल सैनिकों व वृद्धोंकी भर्ती किया गया था। इससे रोगियों को जो शारीरिक तथा मानसिक लाभ मिला, इस संगीत उपचार पद्धति ने अब तक मानसिक अवसाद, निराशा, पोलियो, रक्तवाही नाड़ियों के रोगों से ग्रस्त हजारों लोगों को अच्छा कर नवजीवन प्रदान किया है।
सोवियत रूस के क्रीनिया स्वास्थ्य केन्द्र ने चिकित्सा में औषधि के उपचार के साथ-साथ संगीत को भी एक उपाय माना है। अनिद्रा, उदासी, सनक जैसे दिमागी रोगों में इस उपचार से बड़ी सफलता मिली है। वहां के वैज्ञानिक प्रो एसवी फैक ने संगीत के प्रभाव का अन्वेषण करके यह निष्कर्ष निकाला है कि इस उपचार का प्रभाव नाड़ी संस्थान की विकृतियों और मनोविकारों पर बहुत संतोषजनक होता है। डॉ वसल्टा एच वालेस के अनुसार जुकाम, पीलिया, यकृत दोष, रक्तचाप जैसे रोगों की स्थिति में उपयोगी संगीत का अच्छा प्रभाव होता है।
पश्चिमी जर्मनी के मनोरोग चिकित्सक डॉ वाल्टर क्यूम का कथन है कि पागलपन, हिस्टीरिया, अन्यमनस्कता, मेलनकोलिया जैसे मनोविकार के निवारण में संगीत का सफल उपचार के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इटली में ‘टानेन्टला’ नामक एक नृत्य है, जब अनेक मधुर वाद्य बजते हैं, उनसे अनेक पागलपन के रोगी अच्छे होते देखे गये हैं।
भारत में शास्त्रीय संगीत की शक्ति के संबंध में इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। अब इस दिशा में नई खोजें की जाने की आवश्यकता है। सामान्य व्यक्तियों को भी कीर्तन, भजन, संगीत एवं छोटे-छोटे वाद्य यंत्रों के वादन और गायन द्वारा उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का लाभ अवश्य उठाना चाहिए।
संगीत के स्पन्दन शरीर पर बड़ा अनुकूल प्रभाव डालते हैं। चेतना को लय में बांधने वाले गायन में तन्मयता आवश्यक है पर उतनी न भी हो तो भी संगीत का मनुष्य के मस्तिष्क, हृदय और शरीर पर विलक्षण प्रभाव पड़ता है। नास्तिक और रूखे समझे जाने वाले व्यक्ति भी उसकी तरंग में बहते देखे जाते हैं। अमेरिका की प्रमुख कला पत्रिका ‘दि अदर ईस्ट विलेज’ ने भारतीय संगीत की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। लिखा है कि मनुष्य की भीतरी सत्ता को राहत देने और तरंगित करने की भारतीय संगीत के ध्वनि-प्रवाह में अपने ढंग की अनोखी क्षमता है। उसकी उपयोगिता और सम्मोहिनी शक्ति अपने आप में विलक्षण और अद्वितीय है।
इस संबंध में अन्नामलाई विश्वविद्यालय के मूर्धन्य वनस्पति शास्त्री डॉ टीएल सिंह ने उल्लेखनीय परीक्षण कर सिद्ध किया है कि ध्वनि से तापीय और प्रकाशकीय ऊर्जा उत्पन्न होती है और वह प्राणियों के विकास में इतना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है, जितना कि अन्य पोषक तत्त्व और जल।
-प्राकृतिक चिकित्सा का सामान्य ज्ञान
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