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संघर्ष वाहिनी समन्वय समिति के भागलपुर सहचिंतन शिविर में लिए गये महत्वपूर्ण निर्णय

 

बोधगया वाहिनी मित्र मिलन में संघर्ष वाहिनी धारा के समूहों एवं कार्यकर्ताओं, मुद्दों और कार्यक्रमों का समन्वय बनाने के लिए एक समन्वय समिति बनायी गयी थी। इस समिति में बिहार, झारखंड, ओड़िसा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के साथी शामिल हैं। इस समिति ने जनवरी 2022 में दो उत्साहजनक पहल भी की । 26 जनवरी को बेतिया, बिहार के एक गांव में एक स्थानीय संगठन ने दशकों के अन्याय और उपेक्षा के खिलाफ एक भूमि सत्याग्रह करना तय किया था। समन्वय समिति की पहल पर इस सत्याग्रह के साथ देश भर के साथियों ने अपनी एकजुटता जाहिर की तथा डीएम को निजी एवं संयुक्त अनुरोध पत्र भेजा। इसका प्रशासन पर एक दबाव बना है। इस समिति ने 30 जनवरी को गांधी की शहादत विरासत के बतौर मनाने का कई बार आह्वान किया। इससे एक हवा बनी। ज्यादा जगहों पर ज्यादा भागीदारी से कार्यक्रम हुए। कार्यक्रमों की खबरों का आपस में व्यापक आदान प्रदान हुआ। एकजुटता और उत्साह का माहौल बना।

आगामी दिनों के लिए अपनी भूमिका और रणनीति तय करने के लिए 25-27 मार्च, 2022 को भागलपुर में संघर्ष वाहिनी समन्वय समिति का सहचिंतन शिविर हुआ। इसमें बिहार से रामशरण, पंकज, योगेन्द्र, कारू, उदय, कौशल गणेश आजाद, बागेश्वर बागी, बिशुनधारी सुमन, प्रभात, रामपूजन; झारखंड से कुमार चन्द्र मार्डी, घनश्याम, मंथन; ओड़िसा से किशोर दास व क्षेत्रमोहन शामिल रहे।

इस सहचिंतन शिविर में समन्वय समिति की दृष्टि, भूमिका और रणनीति पर कुछ निर्णय हुए। बीमार साथियों की आकस्मिक एवं गंभीर जरूरतों के समय सहयोग के लिए बनने वाले ट्रस्ट के प्रारूप, टीम और जिम्मेदारी का निर्धारण हुआ। सांस्कृतिक हस्तक्षेप और निर्माण की दिशा पर चर्चा हुई। युवा संगठन विकसित करने का कार्यक्रम बना।  किसान आंदोलन पर भी विमर्श हुआ।

भूमिका, दृष्टि और रणनीति पर चली बातचीत में कई सहमतियां सहज ही बनीं। यह समन्वय समिति सबसे पहले वाहिनी धारा के साथियों के बीच समन्वय बनाकर एक सशक्त तथा सक्रिय सामूहिकता का विकास करने के प्रयास में लगेगी। एक संतोषजनक पहलकदमी के बाद समिति अन्य लोकतांत्रिक सहधाराओं के बीच समन्वय की ओर बढ़ेगी । इस बात पर कोई मतभेद नहीं था कि गांधी, अम्बेडकर, फुले दंपति, बिरसा, भगत सिंह, खान अब्दुल गफ्फार खाँ जैसे प्रतीकों को एक साथ रखकर लोकतांत्रिक नवरचना की गतिविधियां चलायी जानी चाहिए । हमारी सक्रियता तीन चार सूत्रों पर फोकस रहे तो अच्छा होगा।

1. आजादी के 75 साल – आजादी के सपने और आजादी के मूल्य, 2. राजनीतिक सुधार – प्रशासनिक सुधार, चुनाव सुधार, न्यायिक सुधार , 3. आरक्षण की रक्षा, आरक्षण का विस्तार – इसमें निजी क्षेत्र में आरक्षण, विधायिका में महिला आरक्षण, जाति जनगणना का समर्थन तथा प्रशासनिक सेवा में लैटरल इंट्री जैसे सामाजिक न्याय विरोधी कदमों का विरोध शामिल है, 4.बढ़ती आर्थिक गैरबराबरी और सार्वजनिक संसाधनों व संस्थानों की बिक्री व लूट का विरोध।

कुछ कार्यक्रम भी तय हुए । तीन महीने के भीतर जलगांव, महाराष्ट्र में आजादी के पचहतरवें वर्ष में ‘आजादी के सपने और आजादी के मूल्य’ विषय पर राष्ट्रीय बैठक होगी। छह महीने के भीतर 2024 संसदीय चुनाव के लिए ‘हमारी रणनीति’ विषय पर जमशेदपुर या मधुपुर में समावेश होगा। अगस्त माह में विभिन्न जगहों पर आजादी की विरासत को केन्द्र में रखकर 9 अगस्त से कार्यक्रम शुरू होंगे। अभी से कॉलेजों में युवा संवाद का अभियान शुरू किया जाएगा।

ट्रस्ट के निर्माण पर चली चर्चा में यह निर्णय हुआ कि सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए आकस्मिक सहयोग ही त्रस्त का एकमात्र उद्देश्य हो , अन्य उद्देश्य न रखे जायं। ट्रस्टी के लिए ये नाम तय हुए – कुमार चन्द्र मार्डी (अध्यक्ष), सतीश कुन्दन (सचिव), किरण (कोषाध्यक्ष), पंकज, किशोर दास, कंचनबाला तथा ललित स्वदेशी। ट्रस्ट की एक सलाहकार समिति भी बनी। इसके लिए रामशरण, घनश्याम, कारू, उदय तथा कौशल गणेश आजाद का नाम तय हुआ। ट्रस्टी अपनी सहमति से सलाहकार समिति में अन्य नाम जोड़ लेंगे।

युवा संगठन के पुनर्गठन विषय पर चली चर्चा में यह माना गया कि वर्तमान हालात में युवा वाहिनी नाम से संगठन बनाना ही उचित होगा। छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का नाम रखकर उसकी सदस्यता शर्तों को ढ़ीला करना सही नहीं होगा और शर्तों को थोड़ा ढ़ीला किये बिना युवाओं को संगठनबद्ध करना आसान काम नहीं है। वाहिनी की पहचान की कमोबेश निरन्तरता भी हो तथा युवाओं को जोड़ सकने की अनुकूलता भी हो । इसे ध्यान में रखकर ही युवा वाहिनी नाम का विचार आया। भागलपुर, बेतिया, बोधगया, मधुपुर,  सिंहभूम और मयूरभंज (ओड़िसा) में युवा शिविर करने का निश्चय हुआ। इसके लिए स्थानीय साथियों की जिम्मेदारी भी निर्धारित हुई। संस्कृति के प्रश्न पर भी गहरी चर्चा हुई। विचार के कई पहलू उभरे। कुछ भिन्नता, कुछ अंतर्विरोध भी जाहिर हुए। माना गया कि इस विषय पर स्वतंत्र सहचिंतन आवश्यक है। यह सहमति बनी कि गीत, नाटक आदि विधाओं पर कार्यशालाएं हों तथा युवाओं का प्रशिक्षण एवं अभ्यास हो।

बोधगया भूमि संघर्ष के उन गांवों में, जहां जमीन हासिल हुई है, गांव और खेती के विकास की कितनी रचनात्मक संभावनाएं हैं, यह प्रश्न बैठक में अनायास उभर आया और सहज तौर पर एक मन बना कि इस संभावना के आकलन के लिए एक टीम बाहर से क्षेत्र के कुछ गांवों में कुछ दिन के लिए भेजी जाय। रामशरण, मंथन, घनश्याम और उदय इस टीम में रखे गये। अन्य साथी भी चाहें तो जुड़ सकते हैं। पिछले किसान आंदोलन की सकारात्मक समीक्षा तथा बिहार, झारखंड जैसे क्षेत्रों में किसान आंदोलन विकसित करने की चुनौती एवं रणनीति पर भी विस्तृत चर्चा हुई। संघर्ष वाहिनी के कुछ साथियों द्वारा दल बनाने की प्रक्रिया की जानकारी भी बैठक में रखी गयी।

संघर्ष वाहिनी समन्वय समिति के संचालन के संदर्भ में भी कुछ जरूरी निर्णय लिए गये। समन्वय समिति का विस्तार हुआ। समन्वय समिति के संयोजक मंडल में  दो नाम जोड़े गये। यह तय हुआ कि लगातार तीन बैठकों में अनुपस्थित रहने वाले साथी सदस्यता से स्वतः मुक्त हो जाएंगे। इस बैठक के पहले दिन यानी 25 मार्च को शाम के सत्र में गणेश शंकर विद्यार्थी की शहादत को याद किया गया। अंतिम दिन, 27 मार्च के अंतिम सत्र में हाल ही में दिवंगत हुए साथी कुमार सुरेश और जवाहर मंडल की स्मृति में एक मिनट का मौन रखा गया।– सर्वोदय जगत डेस्क

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