Editorial

सर्व-सहमति के प्रतिनिधि नेहरू

प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में, नेहरू ने अपने मंत्रिमंडल में सभी धाराओं के प्रतिनिधियों को रखा था। इस रूप में वह एक राष्ट्रीय सर्व-सहमति की सरकार थी। नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत का संविधान बना, जो एक सर्व-सहमति का दस्तावेज है। आज भी संविधान की उद्देश्यिका (Preamble), नागरिकों को प्रदत्त मूल अधिकार एवं संविधान के नीति निर्देशक तत्व मिलकर भारतीय जन के संगठित होने का आधार बन सकते हैं।

आजादी की लड़ाई में शामिल देशभक्तों के बीच एक सर्व-सहमति बनी थी। चाहे वे भगत सिंह की धारा के हों, सुभाष चन्द्रबोस की धारा के हों या गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की धारा के हों। मोटे तौर पर यह सर्व-सहमति उन सबके उन दृष्टिकोणों से स्पष्ट होती थी, जो खाका उन्होंने भारत की आजादी के बाद नव-निर्माण के संदर्भ में प्रस्तुत किया था। वे सभी जमींदारी विरोधी, रजवाड़ा विरोधी एवं पूंजीवादी साम्राज्यवादी उपनिवेशवाद (पूंजीवादी वैश्वीकरण) के विरोधी थे। वे सभी धर्म निरपेक्षता या सर्वधर्म समभाव के प्रबल समर्थक एवं साम्प्रदायिक राजनीति के घोर विरोधी थे। लोकतंत्र, नागरिक अधिकार एवं लोक-स्वराज्य को स्थापित करने के लिए कटिबद्ध थे।


भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में जवाहरलाल नेहरू इसी सर्व-सहमति का प्रतिनिधित्व करते थे। अंग्रेजों की सरपरस्त एवं साम्प्रदायिक शक्तियां इस सर्व-सहमति की विरोधी थीं। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा द्वारा नेहरू के विरुद्ध जो दुष्प्रचार किया जा रहा है, वह वास्तव में उस सर्व-सहमति पर प्रहार है। यह चौतरफा प्रहार उस सर्व-सहमति को खत्म करने के लिए है, जो आजादी की लड़ाई में सभी धाराओं की प्रथम पंक्ति के लोगों ने सर्व-सहमति के रूप में स्वीकार की थी।


आजादी की लड़ाई में शामिल सभी धाराओं के बीच की इस सर्व-सहमति का ही प्रभाव था कि भारत के तत्कालीन प्रमुख उद्योगपतियों ने जब आजाद भारत में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति का खाका, जो बाम्बे प्लान के नाम से प्रस्तुत किया गया, खींचा, तो वह भी एक मिश्रित अर्थव्यवस्था के निर्माण का दस्तावेज था। इन उद्योगपतियों में जे. आर. डी. टाटा, जी. डी. बिरला आदि भारत के शीर्षस्थ उद्योगपति थे। बाम्बे प्लान के अनुसार संसाधनों का आवंटन (allocation of resources) एक केन्द्रीय प्लानिंग व्यवस्था के माध्यम से किया जाना था। बाम्बे प्लान ने दो तरह के उद्योगों की बात कही। एक आधारभूत एवं भारी उद्योगों का विकास, जिन पर राज सत्ता का नियंत्रण होगा एवं दूसरे उपभोक्ता उद्योग (Consumer industries), जो प्राइवेट सेक्टर के लिए खोले जायं। इस प्रकार आर्थिक नियोजन एवं आधारभूत व भारी उद्योग राजसत्ता के नियंत्रण में हो, इस विचार को बाम्बे प्लान ने बुनियादी जरूरत माना था। इतना ही नहीं, बाम्बे प्लान में भारतीय अर्थव्यवस्था को रूपांतरित करने व प्रगति के पथ पर लाने के लिए विदेशी सहायता या विदेशी पूंजी को कोई स्थान नहीं दिया गया था। यह स्वदेशी भावना के अनुकूल था।
जमींदारी व्यवस्था का उन्मूलन एवं भूमि सुधार कानून भी सर्व-सहमति की अभिव्यक्ति थी, ताकि किसी प्रकार की सामंतवादी व्यवस्था पुन: सर न उठा सके। जब भारत आजाद हुआ, उस वक्त विश्व में वित्तीय पूंजी अपना वर्चस्व बढ़ा रही थी। वैश्विक वित्तीय पूंजी के चंगुल से भारत को बचाये रखने के लिए सरकार ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एवं भारतीय जीवन बीमा निगम को माध्यम बनाया।


भारत के नव-निर्माण में एक ही कमी रह गयी थी। लोकसत्ता के निर्माण का काम पीछे रह गया तथा आर्थिक प्रगति (परिवर्तन) के कार्यक्रमों में पीपुल्स सेक्टर (लोक समुदाय सेक्टर) का विकास नहीं हुआ। वैश्विक पूंजीवाद की समर्थक सत्ता द्वारा पब्लिक सेक्टर को खत्म करना जितना संभव हो गया, लोक समुदाय सेक्टर को कमजोर करना उतना आसान नहीं था।


प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में, नेहरू ने अपने मंत्रिमंडल में सभी धाराओं के प्रतिनिधियों को रखा था। इस रूप में वह एक राष्ट्रीय सर्व-सहमति की सरकार थी। नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत का संविधान बना, जो एक सर्व-सहमति का दस्तावेज है। आज भी संविधान की उद्देश्यिका (Preamble), नागरिकों को प्रदत्त मूल अधिकार एवं संविधान के नीति निर्देशक तत्व मिलकर भारतीय जन के संगठित होने का आधार बन सकते हैं। नेहरू के ही प्रधानमंत्रित्व काल में राष्ट्रगान एवं राष्ट्रीय ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था। उस दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा को मानने वालों ने न तो संविधान, न राष्ट्रगान और न ही राष्ट्रध्वज को स्वीकार किया था।


नेहरू पर जो प्रहार है, वह वास्तव में उन सभी सर्व सहमतियों पर प्रहार है। एक विभाजनकारी एजेंडे के तहत, भारत और भारतीय समाज में ध्रुवीकरण की शक्तियों को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि राष्ट्रीय एकता कमजोर हो जाये। ऐसे में, प्रगतिशील राजनीतिक शक्तियों, प्रबुद्ध जनों एवं आमजन को मिलाकर, नये सिरे से सर्व-सहमति के एजेंडे को स्थापित करना, राष्ट्र के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है।

-बिमल कुमार

Sarvodaya Jagat

Share
Published by
Sarvodaya Jagat

Recent Posts

सर्वोदय जगत (16-31 अक्टूबर 2024)

Click here to Download Digital Copy of Sarvodaya Jagat

2 months ago

क्या इस साजिश में महादेव विद्रोही भी शामिल हैं?

इस सवाल का जवाब तलाशने के पहले राजघाट परिसर, वाराणसी के जमीन कब्जे के संदर्भ…

2 months ago

बनारस में अब सर्व सेवा संघ के मुख्य भवनों को ध्वस्त करने का खतरा

पिछले कुछ महीनों में बहुत तेजी से घटे घटनाक्रम के दौरान जहां सर्व सेवा संघ…

1 year ago

विकास के लिए शराबबंदी जरूरी शर्त

जनमन आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था।…

2 years ago

डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत थे

साहिबगंज में मनायी गयी 132 वीं जयंती जिला लोक समिति एवं जिला सर्वोदय मंडल कार्यालय…

2 years ago

सर्व सेवा संघ मुख्यालय में मनाई गई ज्योति बा फुले जयंती

कस्तूरबा को भी किया गया नमन सर्वोदय समाज के संयोजक प्रो सोमनाथ रोडे ने कहा…

2 years ago

This website uses cookies.