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सर्वोदय जगत में शोक की लहर

सर्वोदय आन्दोलन के वरिष्ठ साथी विजय भाई की इकलौती बिटिया जया का हृदयाघात से निधन

अब तो बस स्मृतियाँ ही शेष रह गयीं

देश में सर्वोदय आन्दोलन से प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर जुड़ा शायद ही कोई साथी हो, जिसका विजय भाई की शख्सियत और सदा खिली रहने वाली उनकी इस मुस्कान से कोई परिचय न हो. सर्व सेवा संघ के अधिवेशनों, कार्यसमितियों, सर्वोदय सम्मेलनों, गोष्ठियों और सेमिनारों के मंचों पर अपनी गूंजती हुई आवाज़ में हर विमर्श को एक स्वस्थ दिशा देने वाले विजय भाई की यह चिर परिचित मुस्कान आज समय के अँधेरे में कहीं गुम हो गयी है. यह अँधेरा बहुत घना है. उनके जीवन की रोशनी, उनकी इकलौती बेटी जया ने 5 दिसम्बर, रविवार को अचानक उनसे, हम सबसे, इस असार संसार से विदा ले ली. आखिरी मुलाक़ात की उम्मीद लिए बिहार के आरा स्थित अपने गाँव से आधी रात इलाहाबाद भागे माता पिता उसे जीवित नहीं ही देख पाए. लगभग उसी समय एक व्हाट्सएप ग्रुप में यह पढ़कर हम सन्न रह गये. तुरंत फ़ोन मिलाया, तो विजय भाई के सूखते गले से भर्राई हुई आवाज़ में दो शब्द निकले- नहीं रही…इस वज्रपात का दूर दूर तक कोई अंदेशा भी तो नहीं था. कैसे होता! अभी अभी तो बात हुई थी उससे. खाना खाते वक़्त पिछली रात 9 बजे रोज की तरह बेटी का हालचाल पूछा था. वह खुश थी, चहक रही थी. मोतीलाल नेहरू रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज के गर्ल्स होस्टल में रहकर एमटेक फाइनल ईयर की पढाई पूरी कर रही जया की सहेलियों की आवाज़ भी आ रही थी फोन पर. पढाई, इम्तिहान, कैरियर, कैम्पस सेलेक्शन, जॉब पैकेज, भविष्य की योजनाएं… कितनी सारी बातें! बाप बेटी की बातें खत्म ही न हों. उसकी किसी सहेली का बर्थडे था- पापा, आज होस्टल में बर्थडे पार्टी है. हमलोग जा रहे हॉल में. बाकी बातें कल करेंगे न!

जब गाँव आती थी तो गरीब बच्चों का ख्याल रखती थी. छोटी सी उम्र में इन बच्चों के लिए उसके मन में बड़े अरमान और ढेरों योजनाएं थीं.



बेटी के हॉस्टल से आधी रात के बाद आये उस फोन से अचानक सारा दृश्य बदल गया. लडकियों ने बताया कि जया को चक्कर आ रहे हैं. अभी हमलोग सोने जा रहे थे, तभी. वह बहुत लो फील कर रही है. उसका ब्लड प्रेशर डाउन है. हमलोग उसे लेकर हॉस्पिटल जा रहे, आप भी आ जाइए. आनन फानन में विजय भाई गाँव घर के दो चार लोगों के साथ इलाहबाद चले. रास्ते में बेटी से बात भी हो रही थी. उसका इलाज शुरू हो चुका था. हम ठीक हैं पापा, आप आ जाइए. आरा से इलाहाबाद पहुँचते पहुँचते दिन के साढ़े दस बज गये. माता पिता भागकर बेटी के पास पहुंचे, तो सबकुछ देखकर कलेजा बाहर आ गया. नाजों से पाली बेटी वेंटीलेटर पर थी. डॉक्टरों की टीम उसे पम्प कर रही थी. कृत्रिम सांस देने और हृदयगति बनाये रखने के हज़ार जतन हो रहे थे. वेंटीलेटर पर ही ईसीजी टेस्ट के लिए पिता का अनुरोध भी डॉक्टरों ने अस्वीकार नहीं किया. लेकिन 12 बजते बजते मेडिकल टीम ने हाथ खड़े कर दिए. डॉक्टर ने इंजीनियरिंग की बेहद प्रतिभावान विद्यार्थी जया की तबीयत के बारे में उसके पिता को सर्वाधिक अप्रिय खबर दी- शी इज नो मोर……!

विस्फारित आँखों से अबतक सबकुछ चुपचाप देख रहे विजय भाई के पांवों के नीचे से धरती खिसक गयी थी. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हुआ है और क्यों हुआ है. आँखें में समुंदर था और देह में कम्पन! साथ खड़े परिजनों ने उन्हें थामकर झकझोरा…. कि बस, सामने विपत्ति ही नहीं खड़ी है, जिम्मेदारियों का पहाड़ भी खड़ा है. विजय भाई का उड़ता हुआ मन एक बार फिर यथार्थ के चित्र से टकराया. पीछे बेसुध, बेहाल पत्नी की चीत्कारें थीं और सामने बेटी की निश्चल, पार्थिव देह. साथियों से बोले, पोस्टमार्टम करायेंगे. आखिर ये सब कैसे हो गया? पता चला, शाम होने लगी थी. रात में पोस्टमार्टम नहीं होगा, शायद कल हो पायेगा. नहीं, कल तक इंतजार नहीं कर सकेंगे. आज ही होगा. डीएम की परमीशन लेनी होगी. थाने के जरिये आवेदन करना होगा. थाने से लेकर एडीएम ऑफिस तक दौड़भाग करते करते रात हो आयी. रात 9 बजे पोस्टमार्टम शुरू हुआ. कल इसी समय बेटी फोन पर चहक रही थी. 24 घंटे ही तो गुजरे हैं. क्या से क्या हो गया देखते देखते! 11 बजे के आसपास रिपोर्ट मिली- कार्डियक अरेस्ट.

पिता के साथ अंतिम तस्वीर



कलेजे पर पत्थर रखा, और हॉस्टल जाकर उसका कमरा सील करवाया. एम्बुलेंस की व्यवस्था  की गयी और इलाहाबाद में बिखरा हुआ अपना संसार समेटकर बेटी के अंतिम संस्कार के लिए विजय भाई वाराणसी चले. रास्ते से उन्होंने फ़ोन किया। हम बनारस के लिए निकल चुके हैं। हरिश्चंद्र घाट पर संस्कार होगा। उस वक़्त रात के 12 बजने वाले थे। हम 1 बजे पहुंच गए। लगभग ढाई बजे रात को जया की अंतिम यात्रा बनारस पहुंची। सारी तैयारियां करते करते भोर हो गयी। ठीक 4 बजे हरिश्चंद्र घाट पर पिता ने पुत्री को जब मुखाग्नि दी, तो अबतक रोककर रखा हुआ हृदय का बांध टूट गया और मुंह पीछे की ओर करके वे बिलख पड़े। मैंने उन्हें दौड़कर थामा तो विगलित स्वर में उनके मुंह से चार शब्द फूटे- बेटी विदा हो गयी।

यह खबर जिसे जहां भी मिली, उसे जैसे काठ मार गया हो। पूरे सर्वोदय संसार में शोक की लहर फैल गयी। सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल ने अपने शोक संदेश में कहा कि इतनी अल्प वय में इस होनहार बच्ची के आकस्मिक निधन की खबर सुनकर हम हतप्रभ हैं। यह हौसला रखने का समय है। हम सब आपके साथ खड़े हैं। दिवंगत आत्मा को शांति मिले और ईश्वर आपको यह आघात सहन करने की हिम्मत दे। सर्व सेवा संघ के मैनेजिंग ट्रस्टी अशोक शरण, प्रकाशन के संयोजक अरविंद अंजुम और उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के नवनिर्वाचित अध्यक्ष रामधीरज के अलावा गांधी शांति प्रतिष्ठान के रमेश शर्मा, महादेव विद्रोही, मधुसूदन उपाध्याय, आदित्य पटनायक, कलानन्द मणि, रवीन्द्र सिंह चौहान, लक्ष्मीदास, मो. आरिफ, ओमप्रकाश गिरि, कालिका सिंह, इंदर सिंह, सुधीर कुमार, केके दुबे, , रघुराज सिंह मगन, प्रदीप खेलूरकर, अदीप कुमार, चन्द्रशेखर चौधरी, रामशरण, चन्द्रभूषण, स्नेहवीर पुंडीर, इस्लाम हुसैन, पुष्पेंद्र भाई, डॉ रामजी शुक्ला, विजय प्रकाश, अभिमन्यु राय, रमेश पंकज, विश्वनाथ आज़ाद, रामधनी मल्ल, महावीर कुमार, सतीश मराठा, विनय कुमार, मधुकर, रमाकांत बाबू, शिवविजय सिंह, शाश्वत, प्रमोद ताले, विवेक आनंद, हरीश भाई, रमेश ओझा, सविता मालपानी, चंद्रकांत, प्रो. रघुनंदन, कुसुमलता जैन और इंदुमती साहू सहित देश भर से सर्वोदय के अनेक वरिष्ठ साथियों ने शोक की इस घड़ी में संवेदना के संदेश भेजे हैं।

Co Editor Sarvodaya Jagat

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    • खूब दुःखद। भगवान se प्रार्थना की अमर आत्मा को शांति दे।

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