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सत्ता या समाज! शक्तिशाली कौन?

सत्ता इतिहास बन जाती है, पर लोक समाज अपनी शक्ति को हमेशा कायम रखता है। सत्तारूढ़ जमातें लोकसमाज से कभी शक्तिशाली नहीं हो सकती हैं। यही लोकसमाज की लोकतांत्रिक जीवन शक्ति है। इस बात को हर सत्तारूढ़ समूह को हमेशा याद रखना चाहिए।

इन दिनों मन में उठा एक सहज और बुनियादी सवाल यह है कि भारत में सबसे ताकतवर शक्ति कौन सी हैं? प्रायः इसका उत्तर शाय़द यही मिलता है कि सत्तारूढ़ जमात, उसके अनुषांगिक संगठन या समूह आज के भारत में सबसे ताकतवर शक्ति हैं, पर देखा जाय तो स्पष्ट रूप से यह सही जवाब नहीं है। यह तो एकाएक आभासी समझ वाला एक सतही उत्तर है। स्वतंत्र भारत और स्वतंत्रता के पहले के भारत में भी लम्बे अरसे से राजसत्ता को ही सबसे ताकतवर शक्ति मानने की लोक परम्परा लोकमानस में कभी रही ही नहीं है। भारत के अधिकांश लोगों का दैनिक जीवन राज्य-निर्भर न होकर खुद के मन की शक्ति पर आधारित होता है। राजसत्ता को चलाने वाली शक्तियां, कोई माने न माने, फ़िर भी अपने आप को सबसे ताकतवर शक्ति मानती रही हैं। यानी जो भी सत्तारूढ़ है, वह शक्तिशाली है ही, सत्तारूढ़ समूह की अपने बारे में सामान्य समझ प्रायः ऐसी होती ही है। यानी सत्तारूढ़ समूह को कोई कुछ सिखाये, यह नहीं हो सकता. यदि कोई सत्तारूढ़ समूह से कुछ सवाल जवाब करता है तो सत्ता के सूत्रधारों को लगता है कि यह विध्वंसक मनोवृत्ति का व्यक्ति या समूह है। यह भी कहा जाता है कि सवाल उठाने वाले देशद्रोही है। यानी राजसत्ता जितनी ताकतवर है, उतना ही अधिक असहिष्णु व्यवहार करती है।

अपने आप को सबसे अधिक ताकतवर समझने वाली जमातें देश के लोकजीवन में उभरते बुनियादी सवालों से सर्वाधिक घबराने वाली तथा समाधानविहीन जमातें होती हैं। अपने आप को सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च शक्तिशाली जमात कहने से न चूकने वाली जमातों के पास लोगों के बुनियादी सवालों के कोई समाधान हैं ही नहीं और सत्तारूढ़ जमातें किसी भी स्तर पर समाधान ढूंढना ही नहीं चाहतीं। साथ ही ऐसी जमात यह भी नहीं चाहती कि देश के लोग इन सारे बुनियादी सवालों पर आपसी बातचीत भी करें। इस सबका नतीजा यह हो गया है कि प्रचंड बहुमत से चुनी गयी सरकारें भी देश के बुनियादी सवालों पर असहाय और लाचार नजर आती हैं। गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी, महंगाई, स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव, शिक्षा में भारी भेदभाव की परिस्थिति, अशिक्षा, शोषण, भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, अन्याय, अत्याचार, छूआछूत, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक भेदभाव, गुण्डागर्दी, अपराध, माफिया राज, व्यक्तिगत और सार्वजनिक हिंसा, बिना भेदभाव जीने का हक, नागरिक अधिकारों का सम्मान और काम करने का निरन्तर अवसर, सबको इज्जत, सबको काम, आज की सरकारें इन बुनियादी सवालों को हल करने के प्रति प्रायः उदासीन मानसिकता से ग्रस्त रहती हैं। सत्तारूढ़ समूह के सामान्य कार्यकर्ता से लेकर सर्वोच्च नेता के पास महज बातूनी जमाखर्च करते रहने के अलावा कोई सकारात्मक सोच समझ और रचनात्मक पहल देश के हर हिस्से के व्यक्ति और समाज के स्तर पर दिखाई नहीं पड़ती। भारत की जनता अपनी समस्याओं से निरन्तर जूझते हुए अपने जीवन की चुनौतोयों और स्वयं की समझ से उपजे उनके समाधान के साथ ज़िन्दगी जीने की निरन्तर कोशिश कर रही है।


बेजुबान ,बेजमीन, बेरोजगार लोग अपने-अपने इलाके में जीने लायक कोई काम खोजते हुए जीते रहने की कला अच्छे से जानते समझते हैं। यदि अपने गांव में काम के अवसर खत्म हो गये तो वहीं पड़े रहने के बजाय जहां काम के अवसर हों, कुछ समय के लिए वहां चले जाते हैं। भारत का नागरिक पढ़ा लिखा हो या बिना पढ़ा लिखा, दोनों ही परिस्थितियों में जीवन यात्रा जारी रखने की जबरदस्त क्षमता रखता है। भारत की आबादी ज्यादा है, पर भारतीयों की इतनी बड़ी संख्या के बल पर हम भारत की बुनियादी समस्याओं का हल कैसे निकालें, यह सत्ताधीशों के दिमाग में आता ही नहीं! भारत की सत्तारूढ़ जमातें आबादी को ही सबसे बड़ी समस्या मानती हैं. देश की सत्तारूढ़ जमातें अपने लोगों की अनन्त शक्ति को देख समझ ही नहीं पाती हैं। भारत की सबसे ताकतवर और निरन्तर जीवनी शक्ति भारत की एक अरब चालीस करोड़ जनता है। यह जनता ऊर्जा का साकार पिण्ड है। भारत में युवा आबादी दुनिया में सबसे अधिक है। राजनैतिक सत्ता के समूह भारतीय युवा शक्ति को लेकर न तो आज़ कोई सकारात्मक सोच समझ खड़ी कर पा रहे हैं और न ही भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर इस दिशा में कुछ सोच पा रही हैं।

भारत के सत्तारूढ़ समाज ने भारत की जनता को मानसिक रूप से दो खानों में विभाजित कर रखा है। जो सत्तारूढ़ समूह में शामिल हैं या उसके निकट हैं, वे हर मामले में विशेष महत्व पाने का जतन करते हैं. जो देश के सत्तारूढ़ समूह में शामिल नहीं हैं, वे सबसे उपेक्षित और वंचित वर्गों में अपने आप मान लिये जाते हैं। देश में आज भी दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों का निवासी मात्र अपनी जरूरतों को पूरा करने में ही नहीं लगा है, विपरीत परिस्थितियों से डरे बिना, जीवन के लिए आवश्यक पोषक आहार उत्पादन की अपनी बुनियादी प्रवृत्तियों में पीढ़ी दर पीढ़ी लगे ही रहते हैं। देश के पशुधन को बिना जमीन और संसाधन के लगातार जीवित और संवर्धित करते रहना भी भारत की लोक बिरादरी का अनोखा कौशल है। भारत की इतनी बड़ी लोकबिरादरी अपनी अनोखी जीवन यात्रा में बिना किसी को परेशान किए अनगिनत उत्पादक कार्यों में बिना किसी अपेक्षा के अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल करती है। भारत के सत्तारूढ़ समूह हर काम इस अपेक्षा से करते हैं कि उनकी सत्ता और संगठन मजबूत हो, पर मूल सवाल जिसका जवाब हम खोज रहे हैं कि सत्ता हासिल तो हो गयी, अब लोकजीवन के बुनियादी सवालों का टिकाऊ व स्थायी समाधान निकालने की प्रक्रिया कैसे शुरू हो?

मूलभूत सवाल फिर वही आ खड़ा होता है कि सत्ता हासिल करने का मूल मकसद क्या है? हुकूमत की ताकत को लोगों को बताना कि देखो हम हुक्मरान हैं और आप हमारे हुक्म के पालनकर्ता हो। सत्तारूढ़ जमात इसी दृष्टिहीनता के कारण कालजयी नहीं होती है। हुकूमतों की अदला बदली तो चलती ही रहती है, पर जब भी कोई हुकूमत सत्तारूढ़ समूह में शामिल होती है तो उसे यह याद रखना चाहिए कि लोगों की ताकत से ही सत्तारूढ़ समूह को काम करने का अवसर मिला है। लोगों की ताकत ही सबसे बड़ी ताकत होती है। सत्तारूढ़ समूह लोगों के मूलभूत सवालों का समाधान यदि नहीं खोज पाये तो लोग सत्ता की सारी शक्ति वापस लेने का अधिकार रखते हैं और जरूरत पड़ने पर उसका भरपूर इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकते। सत्ता इतिहास बन जाती है, पर लोक समाज अपनी शक्ति को हमेशा कायम रखता है। सत्तारूढ़ जमातें लोकसमाज से कभी शक्तिशाली नहीं हो सकती हैं। यही लोकसमाज की लोकतांत्रिक जीवन शक्ति है। इस बात को हर सत्तारूढ़ समूह को हमेशा याद रखना चाहिए। अपने समय में हासिल सत्ता की ताकत लोकसमाज को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने में लगेगी तो लोकसमाज और राज्य की शक्ति आपसी सहयोग समन्वय से हर दिन समृद्ध होगी, अन्यथा आपसी अशांति में दोनों की शक्ति क्षीण होती रहेगी।

-अनिल त्रिवेदी

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