1990 से 2017 तक सेवाग्राम आश्रम में 27 साल अपनी समर्पित सेवा देने वाले हीरा भाई नहीं रहे. 7 जनवरी 2021 को तुमसर, जिला भंडारा, महाराष्ट्र में उनका देहावसान हो गया. गांधी जी और विनोबा के जीवन से प्रभावित होकर उन्होंने युवावस्था में ही घर छोड़कर आश्रम का जीवन चुना. सेवाग्राम गांव और वर्धा शहर के लोगों के साथ उनके जीवंत सम्बन्ध रहे. उन्होंने आजीवन साधक वृत्ति से आश्रम की चर्या अपनाई. अपने कमरे में वे रोज एक सुविचार लिखते थे और पूरे दिन उस पर अमल करने का प्रयत्न करते थे. सेवाग्राम आश्रम आने के बाद उन्होंने सिले हुए कपड़े पहनने बंद कर दिए और अंत तक धोती के दो टुकड़े लपेटकर ही जीवनयापन करते रहे.
अपने कर्तव्य और सेवा भावना के प्रति निष्ठावान हीरा भाई ने आश्रम के शौचालयों और रसोड़े की नियमित सफाई का काम अपने हाथ में ले लिया था. वे आश्रम के रसोड़े के प्रबंधन का काम भी देखते थे. स्वभाव से अत्यंत शालीन और मृदुभाषी हीरा भाई हर पल आत्मिक सुधार की चर्चा व व्यवहार मे लगे रहते थे. दिल के बेहद सच्चे थे. छोटी छोटी बातों का उन पर होता था. अपने अंदर के सुधार से ही बाहर की दुनिया में अपेक्षित बदलाव लाया जा सकता है, गांधी जी के इस आदर्श में उनका गहरा विश्वास था. उन्होंने अनेक महापुरुषों द्वारा समय समय पर कहे गये वचन इकठ्ठा करके ‘महापुरुषों की सूक्तियां’ नामक एक पुस्तिका भी सर्व सेवा संघ प्रकाशन से प्रकाशित करवाई थी. इस पुस्तक की मांग पाठकों के बीच बराबर बनी ही रहती थी.
मित्रों की सार संभाल करने में उन्हें विशेष आनंद आता था. वे हमेशा आंतरिक विकास की चर्चा से आपसी संवाद की शुरुआत किया करते थे. अपनी गलतियाँ सबके सामने स्वीकार करने की उनकी सदैव तैयारी रहती थी. चार वर्ष पहले वे तुमसर, अपने पुस्तैनी घर में रहने चले गये थे. इस बीच सेवाग्राम आश्रम और तुमसर के बीच उनका नियमित आना-जाना बना रहा. इधर कभी कभी उनके मानसिक संतुलन से सम्बन्धित समस्या रहने लगी थी. फिर भी सभी के साथ मोबाइल के माध्यम से हमेशा संपर्क में रहते थे. तुमसर में उन्होंने कुछ सहमना साथियों के साथ गरीबों की सेवा का काम भी शुरू किया था. आज अचानक उनके जाने की खबर सुनकर हम सभी बहुत मर्माहत हैं. हम उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि प्रभु ऐसे निष्ठावान साधक को अपने चरणों में स्थान दे.
-अविनाश काकड़े
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