शंकरगढ़ में टंडन वन क्षेत्र के 13 गांवों के 40 किसानों पर एफआईआर दर्ज करा दिया गया था। वन विभाग का आरोप था कि ये आदिवासी वन विभाग की जमीन पर खेती कर रहे हैं। इस बात को लेकर आदिवासी किसान तमाम अधिकारियों से मिलते रहे और मांग करते रहे कि वन विभाग नाप करके स्पष्ट बता दे कि उनकी जमीन कहां तक है, लेकिन उनकी कहीं नहीं सुनी जा रही थी। अंततः मजबूर होकर आदिवासी किसानों ने शंकरगढ़ ब्लॉक परिसर में सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया। इस सत्याग्रह आंदोलन की अगुवाई कृष्ण कांत मिश्रा ने किया। सभी किसान परिवार, महिलाओं व बच्चों समेत इस कड़ाके की ठंड में त्रिपाल लगाकर बैठ गए। लगभग 5 दिनों के अनशन के बाद भी जब किसी अधिकारी ने ध्यान नहीं दिया तब 3 जनवरी को सभी किसान साथियों ने तय किया कि अगले दिन सभी डीएम कार्यालय के लिए पैदल मार्च करेंगे। 4 जनवरी को प्रयागराज सर्वोदय मंडल के साथियों ने तय किया कि वे भी घटनास्थल पर जाकर किसानों और अधिकारियों से बात करेंगे। वहां पहुंचने पर किसानों ने बताया कि एफआईआर दर्ज होने से पहले किसी अधिकारी ने किसी किसान से बातचीत कर स्पष्ट तक नहीं किया कि कौन सी जमीन वन विभाग की है और कौन सी जमीन ग्राम समाज की है। एक सच्चाई किसानों ने यह भी बताई कि वन विभाग की हजारों एकड़ जमीन भूमाफियाओं को देकर खेती कराई जा रही है, जो पूरी तरह से अवैध है।
4 जनवरी को प्रशासन से मांग की गयी कि जमीन नापी का काम पूरा करने की लिखित समयसीमा बता दें, तो हम अपना अनशन त्याग देंगे। अधिकारियों ने जब शाम तक कोई लिखित आश्वासन नहीं दिया, तब आदिवासी किसानों डीएम कार्यालय के लिए प्रस्थान कर दिया। अगले दिन यह यात्रा जसरा ब्लॉक पहुंची, पूरा प्रशासन इस यात्रा को रोकने के लिए मान-मनौवल में लगा रहा। अंततः प्रशासन ने आदिवासी किसानों को लिखित आश्वासन दिया, तब यह यात्रा रुकी और किसान वापस अपने घरों को गए।
उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष राम धीरज ने इलाहाबाद प्रशासन के इस अड़ियल रवैये की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि जो लिखित आश्वासन देने का काम प्रशासन ने आज किया, वह 1 सप्ताह पहले भी कर सकता था। लेकिन अनावश्यक रूप से उन किसानों और मजदूरों को एक हफ्ते तक खुले आसमान के नीचे बैठने के लिए मजबूर किया। यह अलोकतांत्रिक और गैर जिम्मेदाराना व्यवहार है। जनता के टैक्स से वेतन पाने वाले कर्मचारी और अधिकारी जनता का सम्मान तो छोड़ दीजिए, उनकी परवाह भी नहीं करते हैं। कितने कार्य दिवसों का नुकसान हुआ, कितनी राष्ट्रीय क्षति हुई? इसके लिए तो अधिकारियों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करना चाहिए और जितनी राशि का देश और किसानों का नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई इन अधिकारियों की तनख्वाह से की जानी चाहिए। आन्दोलनकारियों की इस टीम में राम धीरज के साथ श्याम नारायण, चंद्र प्रकाश, बृजभान सिंह, सर्वेश पांडेय, शिवम वाजपेई, विजय चितौरी तथा सत्येंद्र के साथ आसपास के और भी कोई साथी शामिल थे।
-कृष्णकांत मिश्रा
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