सीताराम शास्त्री जी का आज पुण्यतिथि है। उन्हें मैं श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके संदर्भ में कुछ बातें साझा कर रहा हूं।
सीताराम शास्त्री झारखंड आंदोलन के बौद्धिक विचारक थे।सीताराम शास्त्री का परिवार आंध्र प्रदेश के विजयनगरम का मूल निवासी था। इनके पिता का नाम सतनारायण था, जो टाटा स्टील के कर्मचारी थे। माता का नाम अप्पल नरसम्मा था। इनका जन्म 5 जनवरी 1942 को जमशेदपुर में हुआ और शिक्षा स्थानीय के एम पी एम स्कूल में हुई। इन्होंने कोऑपरेटिव कॉलेज से बीकॉम की पढ़ाई पूरी की। इन्होंने झारखंड को अपना कर्म भूमि चुना।
आज के दिन सीताराम शास्त्री को बहुत से लोग नहीं जानते हैं लेकिन मैं उनका जानकारी के लिए बताना चाहता हूं कि सीताराम शास्त्री एक ऐसा नाम है जो झारखंड आंदोलन में झारखंडी नेताओं का एक बौद्धिक नेता थे। वह नेताओं के नेता थे। झारखंड आंदोलन के एक बुद्धिजीवी, चिंतक और विचारक थे। वे जीवन भर नाम, यश, कृति, पद ,प्रतिष्ठा कमाने के स्वार्थ से बिल्कुल ही दूर होकर एक विपन्न, गरीब झारखंडी समाज के लिए उन्होंने अपने को समर्पित किया। उन्होंने 1969 में भारतीय जीवन बीमा निगम जमशेदपुर में सहायक अफसर की नौकरी छोड़कर झारखंड आंदोलन के रास्ते अपनी जिंदगी को खपा दिया।
सीताराम शास्त्री को याद करते हुए किये गये विवरण में यह छूटा है कि सीताराम शास्त्री नक्सलबाड़ी आंदोलन से प्रभावित होकर नौकरी छोड़कर झारखंड के गाँव में गये थे। वे एक स्वतंत्र छोटे समूह के रूप में सक्रिय थे । वे झारखंड आंदोलन में तो रहे ही , जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी में जुड़े और बिना संगठन में शामिल हुए कुछ वैचारिक अन्तर रखते हुये एम एल आन्दोलन के सहानुभूतिदार बने रहे। लेकिन उनकी सबसे बड़ी प्रतिबद्धता झारखंड की जनता थी। इस पर उन्होंने कभी कोई समझौता नहींं किया।
झारखंड आंदोलन को वैचारिक अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए उन्होंने झारखंड में कई पत्र – पत्रिकाएं निकाली। जिसमें से मेहनत, हिरावल ,उलगुलान और झारखंड दर्शन नाम उल्लेखनीय है। उन्होंने 1980 के दशक में “आदिवासियों के राष्ट्र की समस्या” नामक पुस्तक लिखी थी। वे झारखंड आंदोलन की रूपरेखा तैयार करते थे। वे मेरे राजनीतिक गुरु थे और साथ ही साथ झारखंड आंदोलन के भीष्म पितामह कहे जाने वाले बिनोद बिहारी महतो और गुरुजी शिबू सोरेन के भी उतना ही नजदीक थे। मुंबई से प्रकाशित तत्कालीन राष्ट्रीय साप्ताहिक Blitz में पहली बार 3 जनवरी 1981 को सीताराम शास्त्री का झारखंड राज्य के संदर्भ में एक विश्लेषणात्मक लेख प्रकाशित हुआ था। 24 अक्टूबर 2012 को उनकी मृत्यु बहुत ही दुखद रही। टाटानगर के करीब आदित्यपुर रेलवे स्टेशन के पास उनका क्षत-विक्षत शव बरामद किया गया था। मैं उनके दसवीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
शैलेंद्र महतो
पूर्व सांसद
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